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परिचय: एक अनुशीलन
पेशा सँ प्राथमिक शिक्षक आ मैथिलीक नवोदित कवि दीनानाथ प्रसाद ‘जुवराज’ केर व्यक्तित्व आओर कृतित्व बहुआयामी अछि। हुनक व्यक्तित्वमे आओर सदाशयता, सहजता, आत्मीयता आ मिलनसारिताक संग विद्रोही स्वभावक चलते अधिकांश रचनामे व्यंगवाण आ कटाक्ष सँ परिपूर्ण देखाईछ। पल्लवी प्रकाशन निर्मली सँ 2019 में सद्यप्रकाशित परीचय मैथिली काव्य संग्रह सँ मातृभाषाक साहित्यसेवामे हिनक फरिच्छ योगदान भेलैक। परीचयमे संग्रहित सब (51) कविताक आखरिमे अर्थ विशेष सेहो देल गेल छैक, जाहिसँ पाठक आ विद्यार्थीगणके सहजे विषयक गम्भीरता बुझबामे आवि जाइछ। एहिपोथीमे परिवारिक पृष्ठभूमिक परिचय सेहो भेटैछ। एही पोथीक स्वीकार्यता वृहद स्तर पर होयत जेना कि श्री रघुवीर मोची जीक अभिमत आ अर्धनारीश्वर उर्फ श्री गिरजा नंद झा जी सेहो लिखने छथि। क्रम 26 पर परिचय कवितामे प्रस्तुत रचना सँ कवि जीक अन्तर आत्माक पुकार सेहो परिलक्षित होइछ।तेँ एहि संदर्भ में कवि महोदय विशेष मेहनत कय फेर श्रमसाध्य मैथिली सेवामे लागि अपन एक पोथीक ‘व्याख्याटीका’ रूपे प्रकाशित करेबामें जुटि गेलाह अछि। हिनक व्यक्तित्वक विशेषता थीक जे काव्य शिल्पके प्रांजल, भावप्रवण, ओजपूर्ण आ माधुर्यमय बनाबैछ। हुनक शिल्पके भावकेर अभिव्यक्त सहज संप्रेषणीय भेलासन्ता स्वयं दैनिक जीवनमे सेहो अत्यन्त सरल व निश्चल आ वैष्णव छथि।
कवि दिनानाथजीक पहिल पुष्प “परिचय” काव्य संकलन पढ़वाक सौभाग्य प्राप्त भेल ओहिसँ पूर्व कोसी संदेश मैथिली त्रिमासिकमे बहुतो कविता पढ़ि चुकल छी।मंच पर सेहो हिनक कविताक गोयात्मक राग आ भाव-भंगिमा देख चुकल छी। पोथी प्रकाशनसँ पूर्व सेहो पाण्डुलिपि हमरा देखेने रहथि, जाहिमे किछु मार्गदर्शन सेहो पौवने छथि।ओना हम पोथीक आखरि कभर पर सेहो अपन संक्षिप्त कलम चलेनहिं छी जे पाठक सहजे पोथीक आवरण देखैत काल ओहि अभिमत केँ एक झलक पाबि सकताह। पोथीक ई प्रतीक विश्वमे लोक संख्याके सेहो संदेश देत ‘हम दू हमर दू’ जेकाँ नाराक संग आजादीक दिवाना शहिदे आजम सरदार भगत सिंह जीक टोपी शैलीके अपनाबैत लेखक कवि जुवराज जीके राष्ट्रीय चरित्र बना देने छैक। मैथिली पोथीमें की-की छपल छैक से पाठक स्वयं पढ़ि अपन भुखपिपासाक पूर्ती कए सकैत छथि। हम एतबे कहब जे मैथिलीमें आबै सँ पूर्व ओ हिन्दी में रचना गढ़ैत छलाह आ फेर संभावना इयह जे ओ बाबा महर्षि मेंही जीके आश्रमक गुरु जीक सीख अनुसारे हिन्दीमें कलमक रफ्तार बढ़ेताह। तकर कारणों छैक जे मैथिलीमें किछु बुझक्कर बन्धुके ई नहिँ अरघैत छैथ, से मंचीय नजारा देखल गेल छल। परीचयमें कुल पृष्ट-183 दाम 250 टाका छैक, पाठकके कविता पसीन्न पड़त। हम रचनाकार केँ कोटीश: बधाई दैत ईश्वर सँ कामना करैत छी- साहित्य क्षेत्रमे ई बुलन्दि पर धरि पहूँचय आ अपन लेखनी सँ मानव समाजके कृत कृत्य करय।
– लालदेव कामत
( लेखक एवं स्वतंत्र पत्रकार)
MOB NO 7631390761