“मातृभाषाक महत्व” :: राजकुमार झा, मुंबई

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“मातृभाषाक महत्व”
– राजकुमार झा, मुंबई ।
– दिनांक : ११ जुलाई, २०२०
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कोनो क्षेत्रक भाषा, जाति अथवा धर्म विशेष द्वारा मानि लेब लोकक भाषा नञि होइत छैक । भाषा समाजक होइत छैक । तैं समाजक लोक अपन भाषाक प्रतिनिधित्व करैत छथि । जेनाँ बंगला भाषी बंगाली कहबैत छथि, मराठी भाषा बजनिहार मराठी कहबैत छथि, तहिना मैथिली बजनिहार मैथिल कहाबैत छथि । मुदा दुर्भाग्य जे आइयो कतिपय मैथिली भाषीकें अपन भाषाक प्रति गौरवक बोध नञि होइत छन्हि । ओतबे नञि हुनका अपनाकें मैथिल किंवा मिथिलाक छी, कहबामे हीनताक बोध होइत छन्हि । एहि प्रकार विषमता मिथिलाक नियति बनि चुकल अछि । अन्य भाषा पढ़ब, जानब वा लिखब अधलाह बात नञि मुदा अपन भाषा छोड़ि देब संगहिं अवहेलना करब कदमपि उचित नञि थिक । अपन मायकें सम्मान देबाक अर्थ ई किन्नहुँ नञि जे आनक मायकें अनादर करब । अपन मायक कोरामे दुग्ध पान करब, ओकर स्नेह-सुधासँ सिंचित होयब, ममता आ दुलार-मलारमे जे सीखल जाइत अछि वएह “मातृभाषा” थिकैक । कहल गेल छैक मातृभाषाक अनादर मायक अनादर थिक । मैथिलीक संबंधमे मणिपद्मजी’क मंतव्य छन्हि – पिताक देल उत्तराधिकार सदृश ऐश्वर्य, मायक दूध सन माधुर्य भरल व्यक्ति भाषाक अवहेलना अथवा तिरस्कार कोना कS सकैत छथि ? जँ से करी तS ई अनुचिते टा नञि, बल्कि मायक प्रति कृतघ्नता होयत । साहित्य रत्नाकर मुन्शी रघुनंदन दास अपन मिथिला नाटकमे सुशुप्त मिथिलावासीकें जागरूक करैत लिखैत छथि – मैथिल भS मिथिलाक गौरव आ विनाश देखि जँ चुप्प रही एहिसँ बढ़ि कोनो कुकर्म नञि । कहबाक अभिप्राय अछि जे प्रत्येक मैथिल अपन भाषा, साहित्य, संस्कृति एवम् गौरवमय परम्पराकें प्रति गौरवक बोध करथि ।

एक दृष्टान्तक माध्यमें भाषाक महत्वक उल्लेख करय चाहब । १९१७ ई० मे रूसी क्रान्तिक बाद लेनिन देशक बागडोर सम्हालनि । ओ सम्पूर्ण देशमे मातृभाषाक माध्यमसँ शिक्षाकें अनिवार्य कS देलथिन । रूसी क्रान्तिमे रूसी भाषा-भाषीक अवदान सर्वाधिक छलन्हि । जँ ओ चाहितथि तS सम्पूर्ण देशके रूसीकरण कS सकैत छलाह । जाहि क्षेत्रक भाषाक अपन लिपि नञि छलैक तकरा अनुसंधान द्वारा उपयुक्त लिपि दS ओहि भाषामे शिक्षाक माध्यम बनाओल जा सकैत छैक । मुदा मिथिलामे ? बिहार सरकारकें आइयो मैथिली नञि सोहाइत छैक । पटना उच्च न्यायलयक स्पष्ट आदेशक पश्चातो मिथिलामे प्राथमिक शिक्षाक माध्यम मैथिली आइयो धरि नञि भS सकल अछि । जखन कि देशक प्रत्येक राज्यमे शिक्षाक माध्यम मातृभाषा छैक ।

ई स्थिति मिथिलाक विशाल जनमानसकें बौद्धिक एवम् साहित्यिक शोषण थिक ।

कविवर सीताराम झा, भाषाक स्थिति देखि खौझाकें लिखने छथि – “पायब निज अधिकार कतहु की बिना झगड़ने…..”

चन्दा झा हिन्दीक लोक छलाह । जार्ज अब्राहम ग्रियर्सनक सम्पर्कमे आबि मैथिली दिशि उन्मुख भेलाह । विद्यापतिक पुरूष परीक्षाक अनुवाद मैथिलीमे कयलनि मुदा हिन्दीसँ मोह भंग नञि भेलन्हि । ओकर भूमिका तथा पाद-टिप्पणी हिन्दीमे लिखलनि । पछाँति रामायणक रचना मैथिलीमे कयलनि तखन कवीश्वर कहौलनि ।

बाबू भोलालाल दास सेहो प्रारम्भमे हिन्दीक लोक छलाह । मुंशी रघुनंदन दासक प्रेरणासँ मैथिली दिशि उन्मुख भेलाह । फलस्वरूप फाँड़ बान्हि मैथिलीके पटना विश्वविद्यालयमे प्रवेश करौलनि आ मैथिलीक दधीचि कहौलनि ।

डॉ. रामधारी सिंह ‘दिनकर’ आजीवन हिन्दीक सेवा कयलनि । अपन प्रतिभाक बलें राष्ट्रकवि कहौलनि । मुदा मिथिला-मैथिलीक दुःखद आ दुःस्थितिसँ मर्माहत भS अपन कविता हिमालयमे लिखलनि –

“पैरों पर पड़ी हुई है मिथिला भिखारिणी सुकुमारी,
ऐ गण्डकी बता ! विद्यापति के गान कहाँ ? आदि ।”

१९६४ ई० मे अखिल भारतीय मिथिला संघ द्वारा आयोजित विद्यापति स्मृति पर्व समारोह केर अवसर पर प्रधान अतिथिक रूपमे भाषणक दरम्यान दिनकरजी गछलनि जे – आब जे किछु रचना करब वा लिखब ओ मैथिलिएमे लिखब ।

रामवृक्ष बेनीपुरी मैथिलीक कट्टर विरोधी छलाह । विद्यापतिक किछु पदक संकलनहिन्दी टीकाक संग कयलनि । मुदा अपन पत्नीक देहान्तक उपरान्त हुनका मैथिली भाषाक प्रति पूर्वाग्रहक प्रति पाश्चाताप भेलनि एवम् अपन संस्मरण जे पत्नीके समर्पित “मेरी रानी” मे दू गोट पाँति लिखने छलाह ओ हुनक परिवर्तित मनोभावकें दिग्दर्शित करैत अछि ।

हमर बात हमरे मोन मे
अहाँक बात अहींक मोन मे

एकरे कहैत छैक मातृभाषाक प्रति लगाव व खिंचाव । यात्रीजी एवम् आरसी प्रसाद सिंह सेहो हिन्दीक शीर्षस्थ कवि छलाह । मुदा सम्मान भेटलनि मैथिलीक सेवा केर माध्यमें । मैथिली भाषामे अपन काव्य कृतिक हेतु साहित्य अकादेमी’क पुरस्कारसँ सम्मानित भेलाह ।

हमरा कहबाक अभिप्राय अछि जे सभ भाषाक परम विद्वान भेनाई बड्ड खुशीक गप्प थिक । मुदा निज जननीक भाषा, पवित्र माइट-पाइनक भाषाकें प्रति सर्वोच्च सम्मान देब हमरालोकनिक मूल कर्तव्य बनैत अछि । तैं निज भाषाकें हमरालोकनि सम्मानक संग हृदयमे धारण कय कंठक भाषा बनाबी, इएह विनम्र निवेदन करैत छी । जय श्री हरि ।

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