श्राद्धक भोज :: अनिल झा, खड़का-बसंत

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श्राद्धक भोज

हमरा गर्व अछि जे हम ओहि समाजक् अंग छी, जत’ भविष्य मतलब जीवन के अहि पार आ ओहि पारक् समय सेहो बुझल जाइत छकि। हमरा ओहु पर गर्व अछि जे हमर पुरखा वैदिक काल सँ अखन धरि श्राद्धकर्मक निर्वहन ओहिना करैत एला है। अखनो केरा के डमख़ौर आ कटहरक पात पर तिल, कुश, दुभि, धान, बाउलक, आ भातक, पिंड सँ होइत अछि श्राद्धकर्म। यह कर्म अछि जाहि मे कोनो परिवर्तन नहि भेलै। ने त’ वियाह, मुरण, उपनयन सभ त’ बदैलिये गेल।
आब आउ श्राद्धकर्म के विषय मे धर्मशास्त्र की कहैत अछि। त’ शास्त्र मे वर्णित अछि जे एकादशा द्वादशा के 11टा महापात्र केँ घाट पर आ 11टा ब्राह्मण के घर पर खुआ लीय। अहाँक ई कर्म भ गेल सम्पन्न। मुदा ओहि के बाद आबैत छकि #रीति_रिवाज जे सभ समाज मे सभ तरहक छकि। आब जे अहाँक मृतक के अंतिम संस्कार मे गेल छलैथ, हुनका की नहि खुएबनि ?? जे अहाँक अहि शोक सँ शोकाकुल छथि हुनका नहि पुछबनि ?? ओहि के बाद मृतक जे अपना जीवन मे धन संपदा अर्जित केलाह ओहि सभटा पर की अहींक हक अछि समाजक गामक लोक के किछु नहि ?? कर कुटुंब, बंधु बांधव केँ किछु नहि ?? पुरुषार्थी मनुष्य वैह होइत अछि जे अपन पुरुषार्थ सँ धन अर्जित करै।
आर जँ भीतरिया उदेश्य मैथिल के आर्थिक बचाव करबाक अछि त’ आन आन ठाम हुनकर पाइ बचा सकैत छि। जेना बर्थ डे पार्टी, किट्टी पार्टी , मैरेज एनिवर्सरी पार्टी, रिसेप्शन पार्टी, लक्जरी अपार्टमेंटक् कर्ज, वियाहक् आडंबर आर बहुत रास खर्च अछि जे वेवजह लोक दोसर के सभ्यता संस्कृति के अनुकरण मे बढोने जा रहल छथि। आब त’ सुनैत छी जे साधारण शहरी परिवार में बेटी वियाहक लहंगा 50 हजार सँ लाख टका मे अबैत अछि। टेंट, होटल आ फटक्का के खर्च अलग। इ सभ दहेज के अलावा के खर्च अछि ताहि लेल हुनका सभके आहि किया ने अबैत छनि ???
हुनका सभके आहि अबैत छनि मय बापक श्राद्ध के भोजक् खर्च लेल। जे अहि सँ मिथिला के विकास अवरुद्ध भ’ रहल अछि । हो बाबु मिथिला मे धन सँ धर्म आ कर्म के सदैव बेसी महत्व रहलै । अतुका लोक साग खा क’ प्रशिद्धि पेलाह नहि की धन अर्जित क’ । धन्य छी बाबु ! प्रणम्य छी !!

 

Imageअनिल झा
खड़का-बसंत

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