हमरा सबकें ह्रदय सं जुड्बाक प्रयास हेबाक चाहि :: डॉ लक्ष्मण झा

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” हमरा सबकें ह्रदय सं जुड्बाक प्रयास हेबाक चाहि “

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हम एहि फेसबुक कें सदेव एकटा रंगमंच बुझलहूँ ! नव -नव परिधान आ भंगिमा सं सुज्जजित अपना कें करि एहि रंगमंच पर उतरि जाइत छी ! पहिने आभास नहि छल …नहि ज्ञान छल .आ .अभिनय करय मे संकोच होइत छल ! प्रकाश क तीब्र किरणआंखि मे प्रहार करैत छल ! पर्दा कखन उठत कखन खसत तकर अनुमान नहि छल ! हम एहि रंगमंच क नव कलाकार रही ! प्रयास निरंतर चलैत रहल आ हम अपन अभिनय क प्रदर्शन निर्भीक तरहें करय लगलहूँ ! एहि फेसबुक क हम आजन्म ऋणी रहब कियाक त हम बहुत किछु सिखलहूँ ! साहित्य क रसास्वादन ..कविता क शीतल फुहार ..हास्य व्यंग क प्रहार ..राजनीतिक समालोचना ..संक्षिप्त टिप्पणी ..आदर सत्कार .खिस्सा पिहानी ..संस्कृति सभ्यता क व्यंजन पाबि हम तृप्त भ गेलहुं ! शालीनता शिष्टाचार आ माधुर्यता क पाठ सेहो पढ्लहूँ ! अप्रिय भंगिमा क प्रयोजन क सेहो यदा -कदा खलनायक क अभिनय मे काज होइत अछि मुदा अशिष्ट भाषा ..कटु आलोचना मर्म भेदी अभिनय सं सदेव फराक रहबाक प्रयास केलहुं ! अभिनय क पराकाष्ठा पर त पहुँचबा क लालसा अखनो धरि अछि मुदा एहि नाट्य मंचक दर्शक बहुत कम्मे छथि ! आ प्रायः-प्रायः दर्शक जे अप्पन उपस्थिति दर्ज करौने छथि ओ हारल- थाकल निंद्रा देवी कें आँचर तर नुका जाइत छथि ! हुनका समय नहि छैनि जे पढ़ताह ..मनन करताह ..आ समालोचना करताह ! नींद जखन टुटैत छैनि आन दर्शक कें देखि तालि मात्र बजा देत छथि ! मित्र सूचि मे मात्र जुडी गेलहुं ..कार्य सम्पन्य भेल ..मित्र क बटालियन बना लेलहूँ ..इ अवधारणा छोडि हमरा सबकें ह्रदय सं जुड्बाक प्रयास हेबाक चाहि नहि त ” डिजिटल मित्रता “क उपनाम कें माथ पर उघैत रहू !
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डॉ लक्ष्मण झा

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