मिथिला लोकचित्रकलाक अग्रदूत :: पद्मश्री सीता देवी

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मिथिला लोकचित्रकलाक अग्रदूत: पद्मश्री सीता देवी
प्रचीन काल सँ मिथिलाक महान् भूमि कला आ सांस्कृतिक दृष्टि सँ बहुत उर्वर रहल अछि। एहि उर्वर भूमि पर एक गोट अत्यंत सुन्दर आ असाधारण लोकचित्रकला शैली निरंतर पल्लवित- पुष्पित होइत आबि रहल अछि। एहि कला शैली कें समस्त संसार मिथिला लोकचित्रकला शैली कें रुप मे जनैत अछि। आइ परिवार आ समाजक स्त्रीगण सभ द्वारा बनाओल जाय बला ई विलक्षण कला मिथिलाक सांस्कृतिक आ कलात्मक अस्मिताक पहिचान बनि चुकल अछि ।
साबिक सँ ल कए आइ धरि हमरा लोकनिक जीवन मे होमय बला हरेक सामाजिक, धार्मिक आ लौकिक अनुष्ठानक अबसर पर स्त्रीगण सभ द्वारा विशेष प्रकारक आकृति घर-आंगन मे बनाओल जाइत रहल अछि। एहि आकृति सभक धार्मिक महत्व जे किछु हो, मुदा निश्चित रुप सँ ई कहल जा सकैछ जे ई चित्रकृति सभ मैथिल आ मिथिलाक कलात्मक सुरुचि सम्पन्न्ताक प्रतीक अछि। शुरु मे ई लोकचित्रकला घर-आंगन धरि सीमित छल। मात्र पाबनि-तिहार आ अन्यान्य महत्वपूर्ण अबसर पर स्त्रीगण सभ द्वारा बनाओल जाइत छल।
आगू चलि कय एहि कला मे अभिव्यक्तिक एक गोट एहन युग आयल जाहि मे माटि आ गोबर सँ बनल घर-आंगन मे बनाओल जाय बला एहि कला केँ अभिव्यक्तिक आधुनिक माध्यम कागत पर उतारल गेल आ तत्पश्चात धीरे-धीरे एहि लोकचित्रकला केँ कला आ संस्कृतिक संसार मे अद्भूत आ अद्वितीय स्थान भेटल।
लोककलात्मक सम्प्रेषणक एहि शुद्ध आ समृद्ध परंपरा मे स्त्रीगण लोकनि अप्पन कल्पना आ विचार कें कागत पर बनाबय लगलीह। सीता देवी एहि विशिष्ट लोकचित्रकला परंपराक अग्रणी प्रतिनिधिक रुप विश्वविख्यात छथि। ओ सृजनशीलताक साक्षात् प्रतिमूर्ति छलीह। हुनक बनाओल कलाकृति सभ बहुत सुन्दर, सरल आ जीबंत होइत छल। मिथिलाक एहि महान् विभूतिक जन्म मई 1914 ई मे भेल छलनि । हिनका जीवनक आरम्भिक बर्ख आर्थिक संघर्ष मे बितलनि। नेनपन मे हिनक अभिव्यक्ति पहिल साधन बनल छल कोयला। जरल लकड़ीक कोयला सँ पौराणिक कथा सभ पर आधारित कतेक रास चित्र अपना घर-आंगनक देबाल पर खेल-खेल मे बनौलनि। बारह बर्खक अवस्था मे हिनक बियाह भेलनि आ अप्पन सासुर जितवारपुर आबि गेलीह। इएह गाम जीवनक आखिरी दिन धरि हिनक कर्मस्थली बनल रहलनि ।
सासुर मे सेहो बड्ड गरीबी रहनि । मुदा अप्पन साहस आ इच्छाशक्तिक बल पर ओ अप्पन कलात्मक सोंच के मूर्त्त रुप दैत रहलीह। लौकिक आचार-व्यवहार, पौराणिक कथा-पिहानी आ जनजीवन पर कतेक रास एहन कलाकृति बनौलनि जे एहि लोकचित्रकला केँ असीमित ऊंचाई धरि लय गेल ।
रंग संयोजन, सरल आ जीबंत आकृति बनयबा मे सीता देवी लाजवाब छलीह । हिनक बनाओल राधा-कृष्ण, सीता-राम इत्यादि कलाकृति देखैत काल ओहने भाव मोन मे अबैछ जेहन मैथिल कोकिल कविपति विद्द्यापतिक गीत सभ सुनैत काल। हिनक कलाकृति सभ मे रंगक अद्भूत प्रयोग पाओल जाइत अछि। विशेष रुप सँ लाल, हरियर, नारंगी, नीला आ पीयर रंगक अद्वितीय आ सन्तुलित प्रयोग हिनक कलाकृतिक विशेषता जाइत अछि। इएह असाधारण रंग संयोजन आ सरलता ओ विशिष्टता अछि जाहि सँ संसार भरिक कलाप्रेमी हिनक कलाकृति केँ हजारों कलाकृतिक मध्य अनमोल रत्न मानैत अछि।
सीता देवीक विलक्षण रंग आ रेखाकृतिक विदेशी कलाप्रेमी सभ पर सेहो बहुत नीक प्रभाव पड़ल। ई कतेको देश यथा अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, जापान आदिक यात्रा कएलनि आ एहि देश सभ मे हिनक कलाकृतिक प्रदर्शनी आयोजित कएल गेल। ई प्रदर्शनी सभ अत्यंत सफ़ल रहल आ विदेशक सामान्य जनमानस मिथिलाक सांस्कृतिक आ कलात्मक धरोहर कें देखि मंत्रमुग्ध रहि गेल ।
अप्पन अमेरिका यात्रा कें पश्चात सीता देवी कलात्मक सम्वेदनशीलता सँ ओत- प्रोत कलाकृतिक एक गोट एहन श्रृंखला बनौलनि जाहि मे अमरीकी जनजीबन, लैन्ड्स्कैप आ रहन- सहनक स्पष्ट छवि देखबाक हेतु भेटैत अछि। एहि श्रृंखला केँ देखि अमरीकी नृ विज्ञानी (Anthropologist) आ एहि कलाक बहुत पैघ मर्मज्ञ डा रेमंड ली ओवेन्स (Dr. Raymond Lee Owens) एकर नाम रखलनि सीता देवीक स्वर्गयात्रा ( Sita Devi visits heaven)।
हिनक कलाकृति सभक एक गोट विशाल संग्रह अमेरिकाक सैनफ्रान्सिस्को नगरक एशियाई कला संग्रहालय ( Asian Art Museum) मे विद्द्यमान अछि। एकर अतिरिक्त विश्वक कतेको अन्य नगर मे सेहो हिनक कलाकृतिक नीक संग्रह उपलब्ध अछि।
सीता देवी ओहि कोटिक कलाकार छलीह जिनक व्यक्तित्व कोनो पुरस्कार आ सम्मान सँ पैघ होइत अछि। जिनक अस्तित्त्व मात्र कोनो गाम, नगर, क्षेत्र वा राज्यक लेल गरिमाक बात होइत अछि। समय- समय पर कतेक रास छोट- पैघ पुरस्कार सँ हिनका सम्मानित कएल गेलनि। सन् 1975 ई मे भारतक राष्ट्रपति दिस सँ देल जाय बला राष्ट्रपति पुरस्कार सँ हिनका सम्मानित कएल गेलनि । सन् 1981 मे नागरिक अलंकरण पद्मश्री सँ सम्मानित कएल गेलनि। सन् 1984 मे बिहार सरकार दिस सँ कलाक क्षेत्र मे देल जाय बला सर्वोच्च पुरस्कार शिल्प रत्न प्रदान कएल गेलनि। एतेक सफलता आ सम्मानक बादो हिनक व्यक्तित्व आ स्वभाव मे कोनो परिवर्तन नहि भेलनि आ अनवरत् जमीन सँ जुड़ल रहि क अप्पन कला साधना मे लागल रहलीह ।
बर्ख 2005 केँ अवसान काल मे 14 दिसंबर केँ मिथिलाक कलात्मक सृजनशीलताक साक्षात् प्रतिमूर्ति सीता देवी परम् तत्व मे विलीन भ गेलीह । मुदा, मिथिला लोकचित्रकला मे जाहि स्वर्णिम युगक शुरुआत केलनि ओ अनवरत् आगू बढि रहल अछि । आइ ओ हमरा सभहक मध्य नहि छथि मुदा एहि लोकचित्रकला मे जे महान् योगदान ओ केलनि ओ सदैव अक्षुण्ण रहत। जहन- जहन हम सभ हुनक कलात्मक कृति केँ देखब त कलात्मक सम्प्रेषणक ओहि युगक स्मरण होइत रहत!
‘मिथिला दर्शनक’ जुलाइ- अगस्त 2018 अंक मे प्रकाशित Neeraj Jha केँ ई आलेख

1 Comments

  1. मिथिला की परंपरा को आगे बढ़ाने हेतु आपका जो समर्थन और साथ “और आशिर्वाद मिला है। इसके लिए नारी निधि के छात्र छात्राएं” सदा आभारी हैं। जिन्हें नई ऊमीद के किरण के साथ मिथिलांचल का नाम विदेशो में पंचम लहराने का अवसर प्राप्त हुआ है”।🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

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