मैथिली जोगगीत मे प्रेम आ तंत्रक प्रभाव : डॉ कैलाश कुमार मिश्र

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“मैथिल विश्व-दृष्टि में इरोटिका वा कामुकता मुख्यधारा मे अछि की सबवर्ज़न ( सबवरज़न माने स्थापित मुल्य, सत्ता आ शक्ति के खिलाफ) के रुप में”?

ई प्रश्न भले सहज लगैत हो मुदा एकर उत्तर ताकब ओतेक सहज नहि छैक। तंत्रक शाब्दिक अर्थ भेल फैलब अथवा विस्तार। झनझना गेनाइ। चारुकात अपन आभाक विस्तार करब। सएह बात प्रेमोक होइत अछि। जतेक छुपाएब ततेक बात पसरि जाएत। समाज मर्यादाक नाम पर अनन्त बेड़ी कसि दैत अछि। फेर लोक, अर्थात ओ जकरा लेल बेड़ी बनैत छैक, अपन प्रेम प्रदर्शित करबाक व्योत तकैत अछि। समाजक निरंकुश संरचनाक भय यद्यपि बनल रहैत छैक! तखन की हो? उत्सव, कर्मकांड , ऋतु , परम्परा, लोक व्यवहार सँग एना जोड़ि दैत अछि जे एक केँ की कहब समस्त समाज ओहि के स्वीकार करैत अछि। फेर के दोखी आ के निर्दोष? ‘एक होई तो ज्ञान सिखाओ/कूप में ही यहां पर भाँग पड़ी है।’ आ ई बात जरूरी भ जाइत छैक, अन्यथा समाज विखण्डित भ’ जाएत। तांहि काम, केलि, श्रृंगार, इरॉटिका सब किछु लोक व्यवहारक चीज़ बनि जाइत अछि। पब्लिक स्पेस के आ पब्लिक स्फीयर केँ।

हमर जे अपन शोधक अनुभव अछि ताहि आधार पर कहि सकैत छी जे अगर मुख्यधाराक अर्थ लोक अथवा जन समुदाय अछि त’ कामुकता मुख्यधाराक चीज़ थिक आ ई मिथिला मे भारतक बहुत आन ठामक परंपरा जकां अदौं सँ विद्यमान रहल अछि, मान्य रहल अछि। खासक’ विवाहक समय आ ओकर बादक बिध व्यवहार मे गीत आ आन माध्यम सँ कामुकताक प्रदर्शन होइत अछि तकर जतेक वर्णन करी से थोड़। शायद बिध बेभारक माध्यम सँ बर आ कनिया केँ कामक प्रति परिपक्व आ एक दोसरक समीप लेबाक ई उत्तम प्रक्रिया छैक।

उदाहरणक लेल लाबा छीट’ काल लाबा जे छैक ओकरा अगर मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करब त’ कनिया अथवा बरक मन मे उठैत रंग-विरंगक प्रेम, अभिसार केर तरंग छैक। काम इच्छाक भावक प्रतीक छैक। ऊपर सँ गीतक शब्द जाहि मे महिला सब बर आ कनियाक झिझक वरक माता आ कनियाक पिता; वरक दाई आ कनियाक पितामह, वरक मामी आ कनियाक माम आदि सम्बन्ध सँ संग जोडि ओकरा आरो रमनगर आ दुनू लेल इजी गोइनिंग अथवा सहज बना दैत छैक।

एक उदाहरण देखू:

बाबू लाबा छिडियाउ धिया बीछि-बीछि खाउ
बरक बाबी कनियाक बाबा संगे सुताउ
बाबू लाबा छिडियाउ धिया बीछि-बीछि खाउ
बरक माय कनियाक बाबू संगे सुताउ
बाबू लाबा छिडियाउ धिया बीछि-बीछि खाउ
बरक बहिनी कनियाक भैया संगे सुताउ
दुनू घर गुजर चलाउ ……..
बाबू लाबा छिडियाउ धिया बीछि-बीछि खाउ

ओना त’ ऊपर वर्णित गीत सहज लगैत छैक। मुदा अपन गायकी आ लोकक समर्पण, बिधक उद्देश्य आ लाबा छिडियाएब केर क्रिया आ लड़की सब द्वारे ओकरा लेल छीना-झपटी सब नव बर आ कनिया केँ अभिसार हेतु सहज क’ दैत छैक। धखेनाईक बात समाप्त भ’ जाइत छैक। अहि पूरा गीत मे बरक दाई, माय, आ बहिन सब आ कनियाक पितामह, पिता, आ भाई सब पात्र भ’ जाइत छैक जकरा बीच परिहासक सम्बन्ध उचित आ समाज सम्मत मानल जाइत छैक।

अहिना एक विध पटिया समेटब आ ओछाएबाक होइत छैक। अहु बिधक उद्देश्य बर आ कनियाक अभिसार आ रति-रभस लेल तैयार करब, सम्बन्ध केँ प्रगाढ आ सहज करब थिक। एक छोट सन गीत देखब त’ एकरो अर्थ बुझबा मे कोनो भांगठ नहि हएत। गीत देखू:

सब रंग पटिया समटू सोहबे
दुलहा सं ओछबाउ हे
पटिया ओछयबामें कसमस करता
मारब चाट घुमाय हे
टेढ़-तूढ जुनि पटिया ओछाएब
रूसि रहती सुकुमारि हे
हँसी-ख़ुशी पटिया ओछाएब
हँसती सिया सुकुमारि हे ..

कतेक आनंद, उल्लास, रंग आ वैविध्य सँ भरल ई छोट सनक गीत छैक! नाम लेल पटिया छैक मुदा छैक बहुरंगी। सखी सब गीतक मादे कनिया केँ केलि-कीड़ा केर प्रैक्टिकल ज्ञान देमक यत्न क’ रहलि छथि। बर केँ कोना सोसिअलाइज करी से युक्ति बता रहलि छथिन। पटिया ओछायबाक हेतु बर केँ कहथिन से बता रहल छथिन। अगर त्रुटि होइत छनि त’ प्रेमक चाट मरबा लेल उकसबैत छथिन। प्रेमक चाट दुनू मे साम्पिय स्थापित करबा मे सहायक हेतनि तखन ने बात आगा बढ़तनि? रुसब-बौंसबक कलाक ज्ञान द’ रहल छथिन हँसब-बाजबक गुण बता रहल छथिन। सब सँ पैघ बात ई जे कोनो बात छुपल नहि, चोराएल नहि। सब स्त्रिगन – दाई, माय, पितियाइन, भौजी, जेठ बहिन सबहक समक्ष आ सबहक अनुमति सँ। एक बात इहो, सब सखी सब ओहि पर पिहकारी मारैत प्रहसन केँ आरो अनुरंजक बनबैत रहैत छथि। एकर स्पष्टीकरण निम्लिखित गीत मे अछि:

सबरंग पटिया समटू हे सोहबे
दुलहा देता ओछाय
टेढ़-टूढ जों पटिया ओछाओता
रुसि रहब सुकुमारि हे
हे कसार मसरने पटिया ओछोता
मारबनि चाट घुमाए हे
हँसी-खुशी सं पटिया ओछोता
तखन हंसथि सुकुमारि हे

आब गीतक एक-एक शब्द केँ देखब त’ लागत जे समाज कतेक उदार भाव सँ इरोटिकाक स्वीकृति द’ रहल अछि। लेकिन एहि इरोटिका मे यौनाचार अथवा यौन विकृतिक सम्बाद अथवा प्रतीक नहि छैक। मर्यादित इरोटिका जकरा लोकक भाषा मे हँसब-ठेठायेब सेहो कहि सकैत छी। एहेन इरोटिका जे श्रृंगार, शब्द व्यंजना, भाव, विध-बेभार, आ संस्कार सँ सुसज्जित अछि। जकरा मर्यादित स्वरुप मे समाज मान्यता प्रदान करैत छैक।

मिथिला मे विवाहक संग एक क्रिया जोगक होइत छैक। जोग केँ प्यूरिस्ट सब योग कहि सकैत छथि। दुनू’क अर्थ एक भेल – जुड़ब अथवा जोड़ब। बर केँ कनिया सँ आ कनिया परिबारक बरक परिवार सँ। लेकिन मुख्य रूप सँ बर-कनियाक जुडब – मानशिक, शारीरिक आ सामाजिक स्तर केँ संग-संग मनोवैज्ञानिक स्तर पर सेहो महत्त्व रखैत छैक। जोग मे बर आ कनिया केँ गीत सँ बिध-बेभार सँ आ तांत्रिक क्रिया सँ सेहो जोड़क परंपरा रहल छैक। तांत्रिक क्रिया मे परिहास आ गीतक चासनी लागल रहैत छैक। नैना जोगिन के बिध में मानल जाइत छैक जे बंगाल, अथवा हिमालय अथवा कामख्या सँ एक हाँकल योगिन/जोगिनी अबैत छैक। गीत मे कखनो काल गीतगाइन सब अपना आप केँ तिरहुतक एक नंबरक फेरल जोगिन प्रमाणित करैत छथि। जोगक एक उद्देश्य बरक ध्यान अपन माय-बहिन सँ अधिक कनिया दिस आकर्षित करब सेहो छैक। जोग मे गीत गेबाक शैली पूरा तंत्रमय भ’ जाइत छैक। कखनो काल क’ धरती, अकास, समुद्र, पहार सब चीज़ केँ बान्हब आ अधिन करबक चर्च होइत छैक। जोग द्वारे असंभव काज केँ संभव करक बात होइएत छैक। निम्नलिखित जोग गीत देखू:

माइ हे सात बहिन हम जोगिन नैनहु थिकी जेठ बहिन
माइ हे तिनकहूँ सं जोग सिखल तिन भुवन जोग हाँकल
माइ हे समुद्रहु बान्ह बन्हाओल तैं हम जोगिन कहाओल
माइ हे तरहथ दही जनमयलहूँ तैं हम जोगिन कहाओल
माइ हे सुखाएल गाछ पन्हगेलहु तैं हम जोगिन कहाओल
माइ हे बांझिक कोखि पलटलहूँ तैं हम जोगिन कहाओल
माइ हे भनहि विद्यापति गाओल जोगिनिक अंत न पाओल ….

एहि जोग गीत मे जोगिन अपन कला अथवा तंत्रक ज्ञानक महिमा मंडित क’ रहल छैक। एकरा जखन स्त्रीगन सब गबैत छथि त’ लागत जे अथर्ववेद वेदक मन्त्र’क कल्लोल भ’ रहल अछि। तंत्र सँ केहनो असंभव काज भ’ सकैत अछि; धरती, अकास आ पाताल केँ हाँकल जा सकैत अछि, समुद्र केँ बान्हि सकैत छी, तरहत्थी मे दही जमा सकैत छी, सुखाएल ठुठ गाछ मे प्राण आनि ओकरा हरियर कचोर क’ सकैत छी, केहनो बाँझिनक कोखि मे संतान डालि सकैत छी। आ ई सब क’ सकैत छी ताहि त’ हमर सबहक नाम जोगिन अछि। विद्यापति कहैत छथि, “एहि जोगिन सभक अंत कियोक नहि पाबि सकैत अछि!”

आई काल्हि लड़की सब रैंप पर उतरैत छथि, बिलाईक चालि चलैत छथि अर्थात कैट वाकिंग करैत छथि। लटका-मटका झारैत छथि। शरीर आ वस्त्रक कमोतेजक सौन्दर्य सँ दर्शक केँ अपना दिस आकर्षित करैत छथि। करक चाही। एहि मे कोनो हर्ज नहि। ठीके त’ कहल जाइत छैक, “सोच बदलबाक जरुरत छैक, वस्त्र नहि”। जोग गीत मे एहने भाव बल्कि अहू सँ रमनगर, आ कामोत्तेजक भाव नव व्याहित कनिया द्वारा प्रदर्शित होइत छैक। स्त्रीगन सब गीत गबैत छथि कनिया कमर मटकबैत, नव वस्त्र सँ झापल अपन देहक उभार केँ देखबैत, आभुषण सँ पैर के छम-छम करैत, चूड़ी आ कंगना केँ खनखन करैत चलैत छथि। नख-शिख सिंगार सँ एहि तरहेँ पाहून केँ अपना दिस मोहित करैत रहैत छथि। पाहुनक ध्यान कनिया छोडि ककरो लग नहि जाइन ताहि हेतु कनियाक माय पितियाइन तांत्रिक क्रिया क’ देने छथिन। पाहुन केँ नोन पढि खुआ देल गेल छनि, हुनकर पागक ताग निकालि ओकरा तांत्रिक क्रिया द्वारा खन्तीक तर मे गारि देल गेल छनि। आब ओ आपादमस्तक कनियाक अधिन छथि। कनि एक एहेन जोग गीत जे एहि तरहक बात कहैत अछि केँ देखैत छी:

जोग जतिन हम जानल पहचानल
गुनगर कैल जमाय अधिनक राखब
रुनुकि-झुनुकि धिया चलतीह’ पहु देखताह’
पागक फेंच उघारि ह्रदय बीच राखल
जखन धिया मोरी चलतीह’ पहु तकताह’
नागरि कैल जमाय अधिन क राखल
हमर जोग नागर’ गुण आगर’
सात खण्ड नव दीप जोग अवतारल
भनहि विद्यापति गाओल फल पाओल
गुनगर कैल जमाय अधिन क राखब….

बाह रे प्रेम। तंत्र सँ बान्हल सिनेहक डोरी। गीत मे एक सँग कमनीयता, सौन्दर्य, दैहिक सौष्ठव, आ स्त्रीगनक अधिकार पुरुख पर देखार भ’ रहल अछि। धियाक चलब, धियाक देखब, पहुक ताकब, जोगिनक अधिकार सब एक संगे प्रबल बेग सँ प्रमाणित होइत।
एक जोगक गीत मे त’ जोगिन ताल ठोकि कहैत छथि जे “आब अतेक क्रिया आ तंत्र सँ पहुँ केँ बाँधि देने छियैन्ह जे ओ कतहु जाथि, अंततः घुरि- फिर क’ हमरे लग एताह। जेता कत?

माइ हे हमरहु जँ पहुँ तेजताह फल बुझताह
माइ हे बान्हि देबनि बनिसार अधीन भय रहताह
माइ हे चान सुरुज जकाँ उगताह उगि झपताह
माइ हे नैन नैन जोड़ल सिनेह फलक नहि छोड़ताह
माइ हे नाव डोरी जकाँ घुमताह घुमि अओताह
माइ हे मकरी देबनि ऐंठि देहरि धेने रहताह
माइ हे भनहि विद्यापति गाओल फल पाओल
माइ हे गौरी के बढ़नु अहिबात सुन्दर बर पाओल।।

कहक तात्पर्य भेल जे गीत जे गाबि रहलि छथि तिनका अपना तंत्र पर गुमान छनि। जेना सुरुज-चना आँखि मिचौनी करैत रहैत अछि; तहिना नायक आ नायिकाक नैन सँ नैन मिल गेल छनि आ ओकरा तंत्रक मन्त्र सँ बान्हि देल गेल छैक। ककर मजाल जे ओहि डोरी केँ तोड़ि सकए? बर त’ कनिया सङ्गे नावक डोरी जकाँ जुड़ल छथि, कतहु जाथि अंततः वापस आबहे पड़तनि। आरो बहुत उपमा छैक जकरा बुझनाई कुनो मुश्किल नहि।
अतेक तंत्रक बात होइत अछि। किछु एहनो लोकक तंत्र पर काज होबाक चाही। बात बहुत किछु अछि। एखन एतबे।।।

पेंटिंग साभार: Mukti Jha

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