Saharsa :: सहरसा


saharsa

Saharsa :: सहरसा

स्थापना दिवस, सहरसा !!

सहरसा
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सहरसा भारत के बिहार प्रान्त का एक शहर है। जिले के रूप में सहरसा की स्थापना 1 अप्रैल 1954 को हुई थी जबकि 2 अक्टुबर 1972 से यह कोशी प्रमण्डल का मुख्यालय है। यहाँ कन्दाहा में सूर्य मंदिर एवं प्रसिद्ध माँ तारा स्थान महिषी ग्राम में स्थित है। प्राचीन काल से यह स्थान आदि शंकराचार्य तथा यहाँ के प्रसिद्ध विद्वान मंडन मिश्र के बीच हुए शास्त्रार्थ के लिए भी विख्यात रहा है।

द्वितीय पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री बिहार श्री बिन्देश्वरी प्रसाद मंडल का जन्मस्थल ।

नामकरण और गठन
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सहरसा नाम संस्कृत के शब्द स+हर्षा से लिया गया है, जिसका मतलब होता है ‘हर्ष से भरा हुआ’.पहले सहरसा जिला मुंगेर और भागलपुर जिले का हिस्सा हुआ करता था. 1 अप्रैल 1954 को इसे एक स्वतंत्र जिला बनाया गया.

इतिहास
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सहरसा मिथिला राज्य का हिस्सा था| बाद में मिथिला मगध साम्राज्य के विस्तारवाद का शिकार हो गया। बनमनखी-फारबिसगंज रोड पर सिकलीगढ में एवं किशनगंज पुलिस स्टेशन के पास मौर्य स्तंभ मिलने से यह बात प्रमाणित है। 1953में प्रसिद्ध इतिहासकार आर के चौधुरी के निर्देशन में हो रहे खुदाई के दौरान गोढोघाट एवं पटौहा में आहत सिक्के मिले हैं। मगध साम्राज्य में बिम्बिसार के समय बौद्ध धर्म के राजधर्म बनने पर यहाँ भी बौद्ध प्रभाव बढने लगा। जिले का बिराटपुर, बुधियागढी, बुधनाघाट, पितहाही और मठाई जैसी जगहों पर बौद्ध चिह्न मिले हैं।

7वीं सदी में जब आदि शंकराचार्य भारत भ्रमण पर निकलकर शास्त्रार्थ द्वारा हिंदू धर्म की पुनर्स्थापना करने लगे तब उनका आगमन सहरसा जिले के महिषी ग्राम में हुआ। कहा जाता है जब आदि शंकराचार्य ने यहाँ के प्रसिद्ध विद्वान मंडन मिश्र को हरा दिया तब उनकी पत्नी, जो कि एक विदुषी थीं, ने उन्हे चुनौती दी तथा शंकराचार्य को पराजित कर दिया।

भूगोल एवं जनसांख्यिकी

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सहरसा जिले की भौगोलिक स्थिति

बाउंड्री (चौहद्दी)
उत्तर में-मधुबनी और सुपौल जिला
दक्षिण में- खगरिया जिला
पूर्व में – मधेपुरा जिला
पश्चिम में- दरभंगा और समस्तीपुर जिला

सहरसा जिला कोशी प्रमंडल एवं जिला का मुख्यालय शहर है। इसके उत्तर में मधुबनी एवं सुपौल, दक्षिण में खगड़िया, पूर्व में मधेपुरा एवं पश्विम में दरभंगा और समस्तीपुर जिला स्थित है। जिले का कुल क्षेत्रफल 1,661.3 वर्ग कि०मी० है।

नेपाल की ओर से आने वाली नदियों में प्रायः हर साल आने वाली बाढ और भूकंप जैसी भौगोलिक आपदाओं से प्रभावित होता रहा है। बाढ के दिनों में नाव दुर्घटना से प्रतिवर्ष दर्जनों लोग काल के गाल में समा जाते हैं।वर्ष 2008 में कोशी बाँध टूटने से उत्पन्न बाढ लाखों लोगों के लिए तबाही एवं मौत का पर्याय बन गयी।

प्रमुख नदियाँ:
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कोशी, धेमरा एवं कोशी की वितरिकाएँ
प्रमुख शहरी अधिवासः सहरसा, सिमरी बख्तियारपुर, महिषी, सोनबरसा राज, सौरबजार एवं नौहट्टा,
बागमती और गंडक नदी.

अर्थव्यवस्था- कृषि और उत्पाद
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1.कृषि :
सहरसा जिले में उगाये जाने वाले प्रमुख फसल हैं- मखाना, धान, आम, लीची, बांस, सरसों, मकई, गेहूं और ईख. यहां पर सागवान के पेड़ भी वृहद पैमाने पर उगाये जाते हैं.

2.उद्योग

ईट निर्माण सहरसा जिले का महत्वपूर्ण उद्योग है. पूरे कोसी क्षेत्र में इसे ईट उत्पादन का सबसे बड़ा केंद्र माना जाता है.

3.अन्य उद्योग-

जिले के लोगों को रोजगार प्रदान करने वाले अन्य उद्योगों की बात करें तो यहां पर जुट ,साबुन, चॉकलेट और बिस्किट ,पेपर निर्माण के कारखाने और प्रिंटिंग का काम होता है.लोग खुद का व्यवसाय भी स्थापित कर रहे हैंं . जिले की अर्थव्यवस्था में दुकानदारों और व्यवसायियों का बड़ा योगदान है.एक अच्छे साक्षरता दर के कारण यहां के युवा सरकारी और कॉर्पोरेट सेक्टर के नौकरियों में भी जा रहे हैं.

प्रशासनिक सेटअप
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●प्रमंडल: कोसी

●अनुमंडल: सहरसा जिले के अंतर्गत दो अनुमंडल आते हैं-सहरसा सदर और सिमरी बख्तियारपुर.
प्रखंड
●सहरसा जिले को 10 प्रखंडों में बांटा गया है.

●सहरसा सदर अनुमंडल में कुल 7 प्रखंड है: कहरा, सत्तर कटैया, नौहट्टा, महिषी, सोनबरसा, सौर बाजार और पतरघट.

सिमरी बख्तियारपुर अनुमंडल में कुल 3 प्रखंड आते हैं: सिमरी बख्तियारपुर, सलखुआ और बनमा इटहरी.

●सहरसा जिला में कितना पंचायत है?

●पंचायतों की संख्या :151
सहरसा सदर अनुमंडल में पंचायतों की संख्या: 111
सिमरी बख्तियारपुर अनुमंडल में पंचायतों की संख्या: 40

●गांवों की संख्या : 468

●निर्वाचन क्षेत्र
लोकसभा
●लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र की संख्या: 2 ,मधेपुरा और खगड़िया.
विधानसभा
●विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या: 4 ,सोनबरसा, सहरसा, सिमरी बख्तियारपुर और महिषी.

पर्यटन स्थल
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चौसठ यौगनी रक्त काली मंदिर मतस्यगंधा सहरसा (शिवपुरी) पुरे कोसी भर में यह मंदिर प्रसिद्ध हैl यहाँ सैकड़ों लोग प्रति दिन इस मंदिर में पूजा और संध्या कल में घुमने आते हैंl इस मंदिर के अंदर एक स्थान पर 108 मूर्तियाँ स्थापित किया गया हैl इस मंदिर के अंदर बहुत सार भगवान का परतिमा स्थापित हैl इस में माँ काली की एक बहुत बड़ी प्रतिमा स्थापित हैlइस मंदिर के उत्तर दिशा में एक पुरानी झील का निर्माण किया गया था जो वर्षो से वीरान पड़ा था।पिछले वर्ष 2017 में तत्कालीन जिला पदाधिकारी के द्वारा झील का पुनर्निर्माण करवाया गया,जिससे मंदिर के सौन्दर्यता में चार चांद लग गया।पर्यटकों को झील में बोटिंग की सुविधा भी प्रदान की गई।

तारा स्थान (महिषी)-
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सहरसा से 16 किलोमीटर पश्विम स्थित महिषी ग्राम में स्थित अति प्राचीन तारा स्थान लोगों की श्रद्धा का सबसे बड़ा केंद्र है। यहाँ माँ तारा के साथ एकजटा और नील सरस्वती प्रतिमाएँ पूजित हैं।

मंडन-भारती स्थान (महिषी)-
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महिषी प्रखंड में स्थित यह स्थान अद्वैतवाद के प्रवर्त्तक शंकराचार्य एवं मंडन मिश्र और उनकी पत्नी भारती के बीच हुए शास्त्रार्थ का गवाह है।

सूर्य मंडिर (कन्दाहा)-
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*भारत प्राचीन काल से ही सांस्कृतिक विविधताओं वाला देश रहा है। इस संस्कृति के कुछेक पहलू अभी भी अच्छी तरह से ज्ञात नहीं है। इन्ही में से एक प्राचीन सूर्य मंदिर के रूप में सहरसा जिले के कन्दाहा गाँव में मौजूद है।
मिथिलान्तार्गत कोशी एवं धर्ममूला नदी के बीच अवस्थित एक छोटा सा गाँव कन्दाहा की पुण्यमयी धराधाम धराधाम में अवस्थित संपूर्ण विश्व की अद्वितीय सुर्यमूर्ती जो कि द्वापर युगीन है, की एक अनोखी गाथा है | सर्वप्रथम इस प्राचीन धरोहर को संजोकर रखनेवाला कन्दाहा गाँव का प्राचीन नाम कंदर्पदहा था, जिसका शाब्दिक अर्थ है- कंदर्प (कामदेव) का जहां दहन हुआ हो| पुराणों के अनुसार श्री शिवजी के द्वारा कामदेव का दहन इसी कन्दाहा की धरती पर किया गया था ,अतः इस जगह का नाम कंदर्पदहा पड़ा जो कालांतर में कन्दाहा में परिणत हो गया |

मूर्तिपरिचय:-
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कन्दाहा की सूर्यमूर्ति प्रथम राशि मेष की है, जिसका प्रमाण सिंहाशन पर मेष का चिन्ह होना है | पांच फीट की सूर्यमूर्ति आठ फीट के सिंहाशन में सात घोड़ों के रथ पर अपनी दोनों पत्नियाँ , संज्ञा एवं छाया, जिनको विभिन्न पुरानों में विभिन्न नाम दिया गया है , के साथ विराजमान हैं, जिसका संचालन सारथी अरुण कर रहें हैं , साथ hi बाएं भाग में संवत्सर चक्र भी विद्यमान है | भगवन सूर्य के दो हाथ हैं ,जिसमें कमल का फूल दृष्टिगोचर होता है ,जिसमे बायाँ हाथ मुग़ल आतताइयों द्वारा खंडित कर दिया गया था | सिंहाशन की अद्भुत कलाकृति तो देखते ही बनता है | सूर्यमूर्ति के दायें भाग में अष्टभुज गणेश एवं बाएं भाग में शिवलिंग और सामने श्री सुर्ययंत्र रखा हुआ है | गर्भगृह के द्वार पर चौखट पर उत्कीर्ण कलाकृति एवं लिपि भी अपने आप में बेमिशाल है |लेकिन दुर्भाग्यवश सभी मूर्तियों को मुगलों द्वारा कुछ न कुछ क्षति पहुचाई गयी है |

स्थापना:-
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पुराणों के अनुसार द्वापर युग में श्री कृष्ण की पटरानी जाम्बवती के पुत्र साम्ब अतीव सुन्दर थे जिनके द्वारा श्री कृष्ण से मिलने आये महर्षि दुर्वाशा का तिरस्कार कर दिया गया और क्रोधित महर्षि दुर्वाषा साम्ब को कुष्ठ रोग से रूपक्षीण होने का श्राप दे बैठे |अब संपूर्ण यदुवंशी परिवार व्यथित हो गए | दैवयोग से नारद जी के आने पर उनके द्वारा साम्ब से सूर्य का तप करने को कहा गया और तत्पश्चात

साम्ब ने मित्रवन में चंद्रभागा नदी के किनारे सूर्य का कठोर ताप किया और जिसके फलस्वरूप भगवान् सूर्य प्रसन्न होकर उन्हें रोगमुक्त कर दिए| रोगमुक्त करने के साथ ही भगवान् भास्कर ने साम्ब को बारहों राशि में सूर्यमूर्ति की स्थापना का आदेश भी दिया | इसी क्रम में प्रथम मेष राशि के सूर्य की स्थापना हेतु तत्कालीन ज्योतिषियों की गणना के द्वारा श्री शिवजी की तपस्थली इसी कन्दाहा गाँव का चयन हुआ और द्वापर युग में श्रीकृष्ण पुत्र साम्ब के द्वारा कन्दाहा (कन्दर्पदहा ) में प्रथम राशि मेष के सूर्य की स्थापना हुई और ऋषि मुनियों द्वारा युगांतर से इनकी पूजा होती आ रही है |

युगों बाद चौदहवीं सदी में जब मिथिला राज्य के क्षितिज पर ओईनवार वंशीय ब्राह्मण भवसिंहदेव राजा के रूप में उदित हुए और और दैवयोग से रोगग्रस्त हो गए तो उनके दरबारपंडित (लेखक रुद्रानंद झा के पूर्वज) पंडित बेचू झा की सलाह पर सूर्य भगवान् का पूजन एवं अनुष्ठान आरम्भ हुआ ,इस क्रम में महाराजा द्वारा सूर्यमंदिर के प्रांगन में अवस्थित सूर्य-कूप के औषधीय गुण संपन्न जल से स्नान एवं सेवन किया गया जिससे महाराज पूर्ण स्वस्थ हो गए एवं सुयोग्य दो पुत्र नरसिंहदेव एवं हरिसिंहदेव को प्राप्त कर अत्यंत हर्षित होकर जीर्ण पड़े मंदिर का जीर्णोद्धार एवं मूर्ती की पुनर्स्थापना कर भगवान् आदित्य के नाम से अपना नाम जोड़कर भवदित्य सूर्य का नाम दिया और तब से भवादित्य सूर्य के नाम से कंदहा में भगवान् सूर्य की पूजा अर्चना होने लगी | कंदहा गाँव सहरसा मुख्यालय से पश्चिम १२ किमी पर सतरवार (गोरहो) चौक से तीन किमी उत्तर पक्की सड़क से जुड़ा हुआ है जहाँ हजारों भक्तजन आते है और भगवान् भास्कर की पूजा अर्चना कर मनचाहा फल पाते हैं | महाभारत और सूर्य पुराण के अनुसार इस सूर्य मंदिर का निर्माण ‘द्वापर युग’ में हो चुका था। पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान कृष्ण के पुत्र ‘शाम्ब’ किसी त्वचा रोग से पीड़ित थे जो मात्र यहाँ के सूर्य कूप के जल से ठीक हो सकती थी। यह पवित्र सूर्य कूप अभी भी मंदिर के निकट अवस्थित है। इस के पवित्र जल से अभी भी त्वचा रोगों के ठीक होने की बात बताई जाती है। यह सूर्य मंदिर सूर्य देव की प्रतिमा के कारण भी अद्भुत माना जाता है। मंदिर के गर्भ गृह में सूर्य देव विशाल प्रतिमा है, जिसे इस इलाके में ‘ बाबा भावादित्य’ के नाम से जाना जाता है। प्रतिमा में सूर्य देव की दोनों पत्नियों ‘संग्य’ और ‘kalh’ को दर्शाया गया है। साथ ही 7 घोड़े और १४ लगाम के रथ को भी दर्शाया गया है। इस प्रतिमा की एक बड़ी विशेषता यह है कि यह बहुत ही मुलायम काले पत्थर से बनी है। यह विशेषता तो कोणार्क एवं देव के सूर्य मंदिरों में भी देखने को नहीं मिलती। परन्तु सबसे अद्भुत एवं रहस्यमयी है मंदिर के चौखट पर उत्कीर्ण लिपि जो अभी तक नहीं पढ़ी जा सकी है। परन्तु दुर्भाग्य से इस प्रतिमा को भी औरंगजेब काल में अन्य अनेक हिन्दू मंदिरों की तरह ही क्षतिग्रस्त कर दिया गया। इसी कारण से प्रतिमा का बाँया हाथ, नाक और जनेऊ का ठीक प्रकार से पता नहीं चल पाता है। इस प्रतिमा के अन्य अनेक भागों को भी औरंगजेब काल में ही तोड़कर निकट के सूर्य कूप में फेंक दिया गया था, जो १९८५ में सूर्य कूप की खुदाई के बाद मिले हैं। १९८५ के बाद यह मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अधीन आ गया। पुरातत्व विभाग ने मंदिर की देख रेख के लिए एक कर्मचारी को नियुक्त कर रखा है। परन्तु सरकार की तरफ से इस मंदिर के जीर्णोधार एवं विकास के प्रति उपेक्षा ही बरती गयी है। वह तो यहाँ के कुछ ग्रामीणों की जागरूकता एवं सहयोग के कारण मंदिर अपने वर्तमान स्वरुप में मौजूद है। इनमे नुनूं झा एवं जयप्रकाश वर्मा समेत अनेक ग्रामीणों का सहयोग सराहनीय रहा है। इस मंदिर को बिहार सरकार के तरफ से प्रथम सहयोग तब मिला जब अशोक कुमार सिंह पर्यटन मंत्री बने। उन्होंने इस मंदिर के विकाश के लिए २००३ में ३००००० (तीन लाख) रु० का अनुदान दिया। परन्तु यह रकम मंदिर के विकास के लिए प्रयाप्त नहीं थी। फिर भी इस रकम से मंदिर परिसर को दुरुस्त किया गया। साथ ही मुख्य द्वार का निर्माण हो सका। परन्तु अभी भी इस मंदिर एवं इस पिछड़े गाँव के लिए बहुत कुछ किया जाना बाकी है, जिससे कि इस अद्भुत मंदिर की गिनती बिहार के मुख्य पर्यटन स्थल के रूप में हो सके।

चंडिका स्थान पांडवों के अज्ञातवास का स्थल
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देवी चंडी का यह प्राचीन मंदिर सोनबरसा प्रखंड के बिराट पुर गांव में स्थित है. ऐसी मान्यता है कि यह गांव महाभारत काल के राजा बिराट से जुड़ा हुआ है. यहां पर महाभारत काल में अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने सालों तक समय बिताया था और मां चंडी की पूजा अर्चना की थी.

दुर्गा मंदिर ,औकाही, सत्तर कटैया
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यह गांव सत्तर कटैया प्रखंड प्रखंड में स्थित है. खुदाई के दौरान यहां पर देवी दुर्गा की एक प्राचीन मूर्ति निकली थी. कहा जाता है कि मां दुर्गा ने सोने नाल झा नाम के एक ब्राह्मण को सपने में एक विशेष जगह की खुदाई करने को कहा था. यह मूर्ति उसी स्थान पर खुदाई के दौरान प्राप्त हुई थी.

देबन बन मंदिर
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इस स्थान का वर्णन श्री पुराण में मिलता है. यह मंदिर नोहटा प्रखंड के शाहपुर-मंझौल में स्थित है. ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग को 1009 में राजा शालिवाहन ने स्थापित किया था.

संत बाबा कारू खिरहरि मंदिर
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यह मंदिर महिषी प्रखंड कार्यालय से 2 किलोमीटर दूरी पर है. ये जगह महिषी गांव के पास पूर्वी कोसी तटबंध के नदी किनारे स्थित है. ऐसी मान्यता है कि बाबा के भभूत मात्र से पशुओं में होने वाले रोगों का नाश होता है. यहां पर सालों भर पशुपालकों की भीड़ लगी रहती है. यहां पर बिहार के विभिन्न जिलों और नेपाल के पशुपालक पशुओं के प्रथम दूध बाबा को चढ़ाने आते हैं.

मत्स्यगंधा मंदिर
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चौसठ योगिनी रक्त काली मत्स्यगंधा मंदिर पूरे कोसी और मिथिला क्षेत्र का एक प्रसिद्ध मंदिर है. इस मंदिर के अंदरूनी दीवारों पर 64 देवताओं (चौसठ योगिनी के रूप में जिन्हें जाना जाता है) को उत्कीर्ण किया गया है.

1.कारु खिरहरी मंदिर
2.लक्ष्मीनाथ गोंसाई स्थल (बनगाँव)
3.देवन वन शिव मंदिर(देवन)
4.शिव मंदिर (नौहट्टा)
5.दुर्गा मंदिर (उदाही)
6.बाबा बटेश्वर धाम (बलवाहाट)
7.नीलकंठ मंदिर (चैनपुर)
8.यातायात सुविधाएँ

सहरसा जिले की डेमोग्राफी( जनसांख्यिकी)
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सड़क और रेल माग दोनो से ये जुडा़ हुआ है ।
यह राष्ट्रीय और राज्य सड़क मार्ग से भी जुड़ा हुआ है। सहरसा भारतीय रेलमार्ग की बड़ी लाइन द्वारा देश की राजधानी दिल्ली , कोलकाता, अमृतसर ,रांची जैसे बड़े शहरों से जुड़ा हुआ है। भारत की सबसे पहली गरीब रथ ट्रैन तत्कालीन रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव द्वारा सहरसा से ही चलायी गयी थी।

●सहरसा जिले की डेमोग्राफी( जनसांख्यिकी)
2011 की आधिकारिक जनगणना के अनुसार:
●कुल जनसंख्या :19 लाख 661
●पुरुष :9.97 लाख
●महिला: 9.03 लाख
●जनसंख्या वृद्धि (दशाकीय): 26.02%
●जनसंख्या घनत्व (प्रति वर्ग किलोमीटर): 1127
●बिहार की जनसंख्या में अनुपात: 1.83%
●लिंगानुपात (महिलाएं प्रति 1000 पुरुष) : 906

●औसत साक्षरता: 53.20 %
●पुरुष साक्षरता : 63.56%
●महिला साक्षरता: 41.68%

●शहरी और ग्रामीण जनसंख्या
●शहरी जनसंख्या: 8.24%
●ग्रामीण जनसंख्या: 91.76%

धर्म
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अधिकारीक जनगणना 2011 के अनुसार सहरसा जिला हिंदू बहुसंख्यक जिला है. यहां हिंदू धर्म मानने वालों की जनसंख्या 85.72% है. मुस्लिमों की जनसंख्या 14.03% है. अन्य धर्म की बात करें तो यहां पर ईसाई 0.07%, सिख 0.01% और जैन 0.01% हैं.

कैसे पहुंचे सहरसा
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हवाई मार्ग
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सहरसा में कोई हवाई अड्डा नहीं है. निकटतम हवाई अड्डा जयप्रकाश नारायण एयरपोर्ट (Code: PAT) है. यह सहरसा जिले से 201 किलोमीटर दूर पटना में स्थित है.

सहरसा से शीघ्र ही हवाई सेवा शुरू की जाएगी। इस दिशा में पहल की जा चुकी है। कोसी प्रमंडल मुख्यालय सहरसा में हवाई पट्टी रहने के कारण यह सुविधा जिलेवासियों को पहले मिलेगी। डे बेस्ट रिसर्च प्राइवेट लिमिटेड, अररिया, की यह कंपनी निजी क्षेत्र में हवाई सेवा शुरू करने जा रही है।

रेल मार्ग
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रेल मार्ग से आप आसानी से सहरसा आ सकते हैं . देश के अन्य प्रमुख शहरों से सहरसा के लिए नियमित ट्रेन ट्रेने चलती है.
रेलवे स्टेशन: सिमरी बख्तियारपुर (SBV) और सहरसा जंक्शन (SHC).

सड़क मार्ग
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सहरसा, राज्य और देश के प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग से अच्छे से जुड़ा हुआ है . यहां के लिए नियमित बसे चलती हैं. आप चाहे तो अपने निजी वाहन कार या बाइक से भी यहां आ सकते हैं.

 

साभार :: सुनील कुमार झा सहरसा के फेसबुक पोस्ट
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