Pupri :: पुपरी


Image

Pupri :: पुपरी

 

पुन्य पूरी (पुपरी) का इतिहास सदैव से गौरवशाली रहा है। प्राचीनकाल से ही यह सामजिक ,धार्मिक, सांस्कृतिक और आर्थिक जाग्रति का केंद्र रहा है । यह बिहार के उत्तरी-पूर्वी सीमा पर बसा हुआ सीतामढ़ी जिले का एक प्रखंड है। इस प्रखंड में १ नगर पंचायत एवं १३ ग्राम पंचायत में कुल 45 गाँव है। पुपरी(जनकपुर रोड) रेलवे स्टेशन 1 जुलाई 1890 में दरभंगा-सीतामढ़ी मीटरगेज रेलखंड चालू होने साथ अस्तित्व में आया था। पुपरी स्टेशन का नामकरण “जनकपुर रोड” सन ।895 में किया गया था। इसके बारे में कहा जाता है कि जब मध्य भारत के टीकमगढ़(मध्यप्रदेश) की महारानी वृषभानु कुमारी द्वारा जनकपुर में भव्य जानकी मंदिर का निर्माण शुरू हुआ तो मध्य प्रदेश से जनकपुर जाने के लिए मालगाड़ी से उतरने के बाद मंदिर निर्माण में प्रयुक्त होने वाले पत्थर एवं अन्य समाग्रियों के साथ कारीगर एवं मजदुर को जनकपुर तक जाने के सुगम रास्तो का सर्वेक्षण किया गया था। सर्वेक्षण में सीतामढ़ी की अपेक्षा पुपरी से जनकपुर की कम दुरी(40km) तथा सीधा रास्ता(पुपरी –सुजातपुर-चोरौत-मधवापुर-मटिहानी-सोनापैरा-जनकपुर) होने के कारण इसी रास्ते से सभी सामान के साथ मजदुर सब जनकपुर पहुंचे थे । पुपरी से जनकपुर तक का सीधा रास्ता होने से ही पुपरी स्टेशन का नाम बदलकर जनकपुर रोड कर दिया गया था।
इतिहास के पन्नो में – पुपरी के बारे में कहा जाता है की यह पहले सीतामढ़ी से जयादा बड़ा बाज़ार पुपरी का हुआ करता था । पुरे बिहार में पुपरी ही एकमात्र शहर था जिसमे सैकड़ो एकड़ में फैले 5 राईस मिल (श्री अन्नपूर्णा राईस मिल, जानकी राईस मिल, लक्ष्मी राईस मिल, सीताराम राईस मिल एवं मिथिला राईस मिल) हजारो लोगो के जीविका का साधन हुआ करता था । इस पांचो राईस मिल से लाखो टन चावल मालगाड़ी के माध्यम से बंगाल, ओड़िसा,तमिलनाडु सहित भारत के अन्य क्षेत्रो में निर्यात किया जाता था। राईस मिल पुपरी का गौरव होने के साथ साथ आस-पास के किसान परिवारों के लिए वरदान हुआ करता था,हजारो परिवार की रोजी-रोटी राईस मिल से जुड़ा हुआ था । पुपरी बाज़ार दलहन-तेलहन मंडी के लिए भी प्रसिद्द था । धीरे धीरे यह मंडी सब्जी मंडी में तब्दील हो गया, जो अभी लोहापट्टी बाज़ार से उत्तर में स्थित है। उत्तर बिहार में मुजफ्फरपुर,दरभंगा और सीतामढ़ी के बाद पुपरी का ही स्थान है। ये शहर अतिप्राचीन होने के साथ-साथ विभिन्न धरोहरों को संजोये हुए है ।

 

साभार : आनंद मोहन भारद्वाज