मंडन मिश्र :- अद्वैत वेदांतक महान विद्वान एवं मीमांसक


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महान मीमांसक मंडन मिश्र: एक परिचय
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आदि काल से ही मिथिला वैदुष्यपरंपरा का केन्द्र रहा है। वैदिक काल हो या स्मृति पुरानों का काल संस्कृति एवं विद्या के क्षेत्र में इसका अवदान अविस्मरणीय रहा है। षड्दर्शन की उत्पत्ति का श्रेय भी मिथिला की पवित्र भूमि को जाता है। कपिल मुनि नें सांख्य-दर्शन, कणाद मुनि नें वैशेषिक-दर्शन, गौतम मुनि नें न्याय-दर्शन एवं जैमिनि मुनि नें मीमांसा-दर्शन का प्रणयन किया। मधुबनी का न्याय-दर्शन, वैशेषिक-दर्शन और मीमांसा-दर्शन के क्षेत्र में शताब्दियों तक एकाधिकार रहा है। परंपरा के अनुसार मधुबनी का भटपुरा और भटसीमर गांव भाट्टमीमांसा के गढ़ थे। मीमांसा अध्ययन की प्रधानता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि जब 15वीं सदी के मध्य में विश्वासदेवी के शासन काल में यहाँ पंडितों की सभा बुलाई गई तो उसमें मीमांसकों की ही संख्या 1400 के करीब थी।
मिथिला के सर्वश्रेष्ठ मीमांसक पंडितमंडनमिश्र का जन्म 8वीं शताब्दी के मध्य में महिषी ग्राम में हुआ था। वे अद्वैत वेदान्ती थे। उन्हें आदिशंकराचार्य के समकालीन माना गया है। वे महान मीमांसक कुमारिल_भट्ट के शिष्य थे। उन्होंने आदिशंकराचार्य से शास्त्रार्थ किया। जब शंकराचार्य उनकी खोज में उनके गांव पहुंचे और गांव की पनिहारिन से उनके घर का पता पूछा तब पनिहारिन नें उत्तर में दो श्लोक सुनाए:-

” स्वतः प्रमाण परत: प्रमाण शुकांगना यत्र विचारयन्ति।
शिश्योपशिष्यौरूपशु यमानमवेदि तन्मण्डनमिश्र धाम।।

जगदध्रुवं स्यात्रगद ध्रुव वा कोरात्मा यत्र गिरोगिरन्ती।
द्वारस्थ नीडांगसासन्निरूद्ध जानीहि तन्मण्डन मिश्र धाम।।”

उनकी पत्नी अभयभारती साक्षात सरस्वती की अवतार मानी जाती है। किंवदन्ती के अनुसार जब मंडनमिश्र शंकराचार्य से परास्त हो गए तो भारती ने शंकराचार्य को शास्त्रार्थ में पराजित कर दिया।
इससे तत्कालीन मिथिला के विद्या-वैभव का अंदाजा लगाया जा सकता है। यहाँ की साधारण स्त्रियाँ भी संस्कृत भाषा में पारंगत थी।
मंडन मिश्र की प्रमुख रचनाएं:
1.विधि विवेक,

2.भावना विवेक,

3.ब्रह्म सिद्धि,

4.नैश्कभ्य सिद्धि,

5.वेदांत वार्त्तिक,

6.मंडन त्रिशंती,

7.गोपालिका आदि.

 

 

जटाशंकर मिश्रा

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