कर्णाटकालीन मिथिला के चाणक्य :: चण्डेश्वर ठाकुर


कर्णाटकालीन मिथिला के चाणक्य :: चण्डेश्वर ठाकुर

मधुबनी जिलान्तर्गत बिस्फी गामक निवासी चण्डेश्वर ठाकुर विद्यापतिक पितामह के पैघ भैयारी छलथि। विद्यापति ठाकुर जे विसईवार वंश के छलथि, हुनक पूर्वज सब क्रमशः देवादित्य ठाकुर, बीरेश्वर ठाकुर आ चण्डेश्वर ठाकुर कर्णाट वंशीय राजा लोकनिक मंत्री भेल छलथि। ई सब गोटे संस्कृत आ धर्मशास्त्र के मूर्धन्य विद्वान छलथि। एहिबातक उल्लेख चण्डेश्वर ठाकुर कृत ‘‘कृत्य रत्नाकर’’ संगहि कतेको एतिहासिक पुस्तक में कयल गेल अछि। चण्डेश्वर ठाकुर कर्णाट वंशीय शासक हरि सिंह देवक दरबार में प्रधान मंत्री छलाह। हरिसिंह देव जखन किशोरावस्था में छलथि त हुनकापर राजकाजक भार आबि गेल छलन्हि, ओ राजा बनाओल गेल छलाह। राजा हरिसिंह देव के बाल्यावस्था व किशोरावस्था में परम अनुभवी मंत्रीगण क्रमशः देवादित्य ठाकुर, ओहिके बाद हुनक पुत्र बीरेश्वर ठाकुर, तदोपरांत चण्डेश्वर ठाकुर राज्य संचालनक काज सम्पादित करय में सहयोगी रहलाह। एहिके प्रमाण चण्डेश्वर ठाकुर कृत ‘‘कृत्य रत्नाकर’’ नामक ग्रंथ सँ भेटैत अछि। चण्डेश्वर ठाकुर के मंत्रित्व में हरिसिंह ने नेपाल पर चढ़ाई कयने छलथि आ ओतय के किरात राजा के हराकय सम्पूर्ण नेपाल के अपन अधिकार में लय क मिथिला क्षेत्रक विस्तार कयलथि। हरिसिंह देव आ नेपाल के किरात लोकनि के बीच भारी लड़ाई भेल छल। चण्डेश्वर ठाकुर चतुर योद्धा व संग्राम कौशल से पूर्ण सेना नायक छलथि। अपन विशिष्ट रण कौशल के बदौलत किरात सबकेँ रणनीती के तहस-नहस कय देलथि, आ अपन राजा हरिसिंह देव के महान जीतक उपहार देलनि। चण्डेश्वर ठाकुर के मंत्रित्व में राजा हरिसिंह देवक साम्राज्य क्षेत्र बहुत विस्तारित भेल आ सैनिक संगठन मजबूत होईत आगा बढ़ल ।
कर्णाट वंशीय शासन काल जे लगभग 228 वर्ष तक रहल, ई मिथिला के सांस्कृतिक आ बौद्धिक विकास लेल अत्यन्त महत्वपूर्ण रहल। एहिसँ पूर्व जनक वंशीय शासन काल सेहो मिथिला के सांस्कृतिक आ बौद्धिक विकास के दृष्टिकोण सँ महत्वपूर्ण रहल छल। कर्णाटवंशीय शासन काल में अनेक कुशल शासक भेलथि त कतेको योग्य, प्रबुद्ध आ योद्धा मंत्री सेहो भेलथि। एहने योग्य, दक्ष व रणनीतिकार मंत्रीलोकनि के बदौलत कर्णाट शासन सुचारू रूप सँ अनवरत चलल, शासन काल में जन उपयोगी प्रशासनिक नीति बनल आ ओहिपर अक्षरशः अमल होईत रहल।
कर्णाट वंशीय शासन के दूटा महान शासक के रूप में नान्यदेव (संस्थापक शासक) आ हरि सिंहदेव (अंतिम शासक) के नाम अति गौरव संग लेल जाईत अछि। हिनक समय में दरबार के विभिन्न विभाग सबमें आसीन मंत्रीगणक योग्यता कौशल आ नीति निर्धारणक क्षमता अतुलनीय छल। सब मंत्रीगण अपन राजा के अपन विशिष्ट क्षमताक आधार पर प्रशासनिक, आर्थिक आ बौद्धिक सलाह दैत छलाह जकरा तत्कालीन राजा स्वीकार कय, दैनदिनी के कार्य सम्पादित कराबैत छलाह।
तत्कालीन मिथिला समाज के दू वर्ग क्रमशः ब्राह्मण व कायस्थ कर्णाटवंशीय शासक के महत्वपूर्ण मंत्री आ परामर्शदाता छलथि। ई दूनू वर्ग अपन मेधा आ दूरदृष्टि के कारण राजालोकनि हेतु अत्यधिक महत्वपूर्ण भय गेल छलथि। अतः कर्णाट वंशीय शासन व्यवस्थाक निर्देशन आ संचालन में एहि दूनू वर्गक मंत्री आ अधिकारी लोकनिक महत्वपूर्ण भूमिका लगातार बनल रहल। ओ कर्णाट वंशीय राजा सबकें निकटता प्राप्त कयलनि आ हुनक संतान तीन-चार पीढ़ीयों तक शासन व्यवस्था में संलग्न रहलथि।
प्रशासन के संचालन में एहि मंत्रीगण के सलाहनुसार राजा पथ निर्देशन के कार्य करैत छलथि, पूर्ण विश्वास व दृढ़ता के साथ एहि मंत्रीगण के न्याय संगत नीति आधारित सलाह के आधार पर राजालोकनि द्वारा अमल के कारण राज्य के प्रशासन उत्तरोत्तर आर विकसित होईत गेल।
कर्णाट शासन काल में प्रायः सब राजा मंत्री अथवा प्रधान मंत्री राखय छलथि जे राजा के प्रशासनिक काजसबमें आ राजनीतिक समस्यासबकें समाधान हेतु परामर्श/सलाह दैत छलखिन्ह। जेना नान्यदेव अपन शासन काल में श्रीधर दास के अपन प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्त कयने छलथि। नान्यदेवक पुत्र गंगदेव के शासन काल में सेहो श्रीधर दास एहि जिम्मेदारी के निर्वहन कयने छलथि। श्रीधर दास के पूर्वज कर्णाट वंश सँ पूर्व सेन वंश के शासन काल में सेना के अनेकोन पद पर रहल छलथि।
कर्णाट वंश के अंतिम महान शासक हरिसिंह देव काल में राजदरबार में एक ‘‘परामर्शदात्री परिषद’’ छल; जहिमें विभिन्न विभागक मूर्धन्य सलाह कार ‘‘मंत्री/ प्रधानमंत्री/महमत्तक’’ पद पर आसीन छलथि। एहि मंत्रीलोकनि/प्रधानमंत्री/महमत्तकलोकनि के बहुत अधिक अधिकार प्रत्यायोजित छल।
एहि मंत्री सबमें सँ एक छलथि – चण्डेश्वर ठाकुर। ई तत्कालीन युग के उदभट्ट राजनीतिज्ञ, अर्थशास्त्री आ युद्ध कौशल के पुरोधा छलथि। हिनका पास विशाल ज्ञानक भण्डार आ अनुभव छलनि। अपन बौद्धिक कौशल, चतुर राजनीति के बदौलत वर्षों वर्ष विभिन्न विभाग के प्रधानमंत्री पद के सुशोभित कयलनि।
एहन किंवदंती अछि कि शक्ति सिंह देव, कर्णाट वंशीय शासन काल में सबसँ निरंकुश आ स्वच्छन्द प्रवृत्ति के शासक छलथि। हुनक भोग आ विलासिता पूर्ण जीवन आ फिजूल खर्च कयनाई पसंद छलनि। एहिसँ मिथिलाक प्रजा आ खासकर प्रबुद्ध जन असंतुष्ट छलथि। परामर्शदात्री परिषद के अनेको मंत्री आ महमत्तक हिनक निरंकुशता पर नियंत्रण चाहैत छलथि परन्तु ओ सब सफल नै भ पाबि रहल छलथि। एहिसँ मंत्रीगण आ महामत्तकलोकनि के बीच समर्थक आ विरोधी गुटक गठन भय गेल छल। शक्ति सिंह देवक विलासिता पूर्ण जीवन आ फिजूलखर्ची पर विरोधीगुट नियंत्रण करय चाहय छलथि, जबकि समर्थक गुट राजा के साथ मजा करैत छथि। गुटबाजी राज भवन में विद्रोह के रूप धारण कय लेलक। चण्डेश्वर ठाकुर मंत्रित्व में विरोधी गुट आ राजा के निरंकुशता पर नियंत्रण पाबय में सफल भेलथि। राजभवन में विद्रोह के बाद चण्डेश्वर ठाकुर चातुर्य प्रभाव से प्रभावित परामर्शदात्री परिषद और मजबूत भय गेल। हरिसिंह देव जाबेतक वयस्क नहीं भेलाह ताबेतक चण्डेश्वर ठाकुर के मंत्रित्व का प्रभाव बहुत महत्वपूर्ण रहल, राज-काजक व्यवस्था पर हिनके सलाह व परामर्श का प्रभाव सबसँ बेसी रहल। संगहि हरिसिंह देव एक योग्य व कुशल शासक बनलाह,

 

 

Imageशंकर झा
एम.एस.सी. (कृषि अर्थशास्त्र), एल.एल.बी.
{छ.ग. राज्य वित्त सेवा}
नियंत्रक (वित्त)
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर (छ.ग.)