मिथिला आ नेपाल

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मिथिला आ नेपाल
नेपाल शब्दक उद्गम एखन धरि रहस्यमय अछि। अति प्राचीन कालसँ नेपालक इतिहास मिथिलाक इतिहास संग निकटतम रूपें संबंधित अछि। मिथिला एहेन स्थान रहल अछि जाहिठाम नाना प्रकारक धार्मिक आन्दोलन एवँ दर्शनक उत्पत्ति भेल छैक आ नेपाल ओहि आन्दोलन सबकेँ उर्वरा शक्ति देलकै जाहिसँ वो आन्दोलन सब पुष्पित वो फलदायक भेल। नेपालमे आर्यत्वक विकास मिथिले बाटे भेलैक। एहिठाम हम मिथिला आ नेपालक मात्र राजनैतिक सम्बन्धक चर्चा करब।
किरातः- भूतकालक कुहेसक मध्य नेपालक प्रारंभिक इतिहासक विषयमे किछु विशेष ज्ञात नहि अछि। ई.पू. ५९०सँ ११०ई. धरि नेपाल किरात संस्कृतिक प्रधान केन्द्र छल। किरातक वर्णन शुक्ल यजुर्वेदमे आएल छैक। इहो कहल जाइत छैक जे अति प्राचीन कालसँ किरात लोकनि पूर्वी नेपालमे रहैत जाइत छलाह। ‘किराते’ शब्द जंगली अनार्य जातिकेँ सूचित करैछ जे पहाड़पर एवँ भारतक उत्तरपूर्वी भागमे रहैत छलाह। सिल्वाँ लेवीक विचार छन्हि जे किरातक उत्पत्ति मंगोलसँ भेल छल आ दुनू एक्के छलाह। महाभारतसँ ज्ञात होइछ जे जखन अर्जुन हिमालयमे तपस्या करैत छलाह तखन महादेव किरातक भेषमे अर्जुनक परीक्षा लेने छलाह। महाभारतक वनपर्वमे एकटा किरातपर्व सेहो अछि आ यजुर्वेद शतरूद्रीयसँ सेहो एहिपर प्रकाश पड़इयै। भारतक उत्तरी पूर्वी सीमा सेहो किरात संस्कृतिसँ सम्बन्धित छल। ओ सब पूर्वी हिमालयक वासी छलाह। अपन दिग्विजयक क्रममे भीमकेँ विदेह देश छोड़लाक पश्चात किरात सबसँ भेंट भेल छलन्हि। किरात लोकनि पीअर रंगक होइत छलाह। लेभीक अनुसार किरातक सम्पर्क चीन आ म्लेच्छसँ सेहो छलन्हि। रामायणसँ सेहो प्रमाणित अछि जे किरात लोकनि पीअर रंगक होइत छलाह। विष्णु पुराण एवँ मार्कण्डे पुराणसँ ज्ञात होइछ जे इ लोकनि पूर्वी भारतमे रहैत छलाह। वो हिमालयक दक्षिणी मार्गपर सम्पूर्ण उत्तर–पूर्वी भारतमे, नेपालसँ सटले उत्तरी बिहारमे आ गंगाक उत्तरी भागमे बसि गेल छलाह। इ उएह प्रदेश छल जाहि मध्यसँ चीनक व्यापार भारतक गंगावर्ती धरातलसँ होइत छलैक। नेपाल–मिथिलाक संस्कृतिक इतिहासमे हिनका लोकनिक महत्वपूर्ण स्थान छैक। प्रारंभमे संभवतः किरात लोकनि नेपालक स्थानीय राजवंशी छलाह।
नेपालपर किरात लोकनिक राज्य बहुत दिन धरि छलन्हि। वो लोकनि ई.पू, ६००सँ संभवतः नेपालपर राज्य करैत छलाह। हिन्दू संस्कृतिक विकासमे वो नेपालमे भारतीय मंगोलियनक प्रमुखताक हेतु सब पृष्ठाधार बनौलन्हि। प्रायः ई.पू.३१२मे जखन संभूत विजय मरि गेला तखन जैन धर्मावम्बीमे विभाजन भेल आ तकर पश्चात उत्तर भारतमे बारह वर्ष धरि अकाल रहलैक। भद्रवाहु नामक एक जैन साधु अकाल भेलापर दक्षिण दिसि चल गेला आ अकाल समाप्त भेलापर घुरला। जैन धर्मसँ छुटकारा लए ओ अपन शेष जीवन व्यतीत करबाक हेतु नेपाल चल गेला। जैनी सबहक जुटान पटनामे भेल आ हुनका तकबाक हेतु स्थूलभद्र नेपाल गेला आ ओतए हुनकासँ चौदह पर्व पओलन्हि। गौतम बुद्धक जन्म तँ नेपाल क्षेत्रमे भेल परञ्च ओ नेपाल भ्रमण केने छलाह अथवा नहि से कहब कठिन। अशोकक प्रयाससँ नेपालमे बौद्ध धर्मक प्रसार भेल। कहल जाइछ जे कौटिल्यकेँ सेहो नेपालक पूर्ण ज्ञान छलन्हि। अशोकक समकालीन नेपालमे छलाह स्थुमिको। नेपाल उनक हेतु विशेष प्रसिद्ध छल। लुम्बिनीमे अशोक ४८ गोट स्तूपक निर्माण करौने छलाह आ स्थुमिकोक शासन कालमे वो स्वयं नेपालो गेल छलाह। अशोकक समयमे नेपालक शासन किरात लोकनिक हाथमे छलैक। अशोकक पुत्री आ जमाय नेपालमे छलाह। अशोकक बादो दशरथक प्रभाव नेपालमे बनल छलैक। नेपाल आ मिथिलाक सम्पर्क मौर्य साम्राज्यक ह्रासक समय धरि बनल छलैक। शूंग कालक मुद्रा पश्चिमी नेपालसँ प्राप्त भेल अछि जाहि आधारपर इ अनुमान लगाओल जाइत अछि जे शुंग लोकनिक एक प्रकारक दुर्बल नियंत्रण नेपालपर छलन्हि। कुषाण लोकनिक शासन चम्पारण धरि छल आ तिरहूतोपर हुनका लोकनिक प्रभाव छलन्हि। नेपालपर कुषाण शासन हेबाक समर्थन स्वर्गीय जायसवाल महोदय केने छथि। कुषाण मुद्राक पता काठमाण्डु लग सेहो लगलैक अछि तैं जायसवाल महोदयक विचारकेँ मान्यता भेटइत छैक। ‘रधिया’ नामक ग्रामसँ सेहो कतेक रास ताँमाक मुद्रा विम कैडफिसेज आ कनिष्कक भेटल छैक आ जँ एहि प्रमाणपर किछुओ विश्वास कैल जाइक तँ कुषाण शासनक प्रमाण सिद्ध होइत छैक।
कैक शताब्दी धरि नेपालपर शासन करैत काल किरात सबकेँ जखन–तखन अनायास विड़रो सबसँ संघर्ष करए पड़लन्हि। राजनैतिक अस्थायित्वक रहितहुँ ओ सांस्कृतिक जीवन आ राजनीतिक नियमक स्थापनामे बहुत किछु केलन्हि। किछु विद्वानक मत छन्हि जे इण्डो मंगोलाइड सब सर्वप्रथम भारतपर शासन केलन्हि आ तब नेपाल गेला। सुसंस्कृत इण्डो मंगोलाइडक रूपमे नेपालक नेवारक उल्लेख भेल छैक। नेवार लोकनि प्रायः ई.पू. तेसर शताब्दीमे एला। ताधरि अशोक पाटनमे बहुत रास बौद्ध चैत्यक निर्माण कऽ चुकल छलाह। तहियासँ ओहि क्षेत्रमे बौद्ध धर्मक प्रसार बनले रहल आ बादमे महायान सम्प्रदायक पद्धति ओ विचार सेहो बिहारेसँ ओतए गेल। ओहिठामक शैव, शक्ति आ वैष्णव धर्मक सम्बन्धमे सेहो इएह कहल जा सकैत अछि। इ सभ आंशिक रूपमे उत्तरी बिहारक आरंभक मंगोलाइडक प्रतिक्रिया स्वरूप छल। आर्यीकरणक पूर्व मिथिला सेहो किरात संस्कृतिक प्रधान केन्द्र छ्ल। इण्डो मंगोलाइड एकटा सामूहिक संस्कृतिक विकासमे पैघ योगदान देलन्हि।
११०ई.क आसपास किरात वंशक अंत नेपालमे भेल आ तखनसँ लऽ कए २०५ ई. धरि नेपालक इतिहास अन्धकारपूर्ण अछि। एहि बीच कोनो लिखित प्रमाण नहि भेटइयै। गुणाढ़यक ‘बृहत्कथा’मे नेपाल देशक शिव नामक नगरमे राजा यशकेतुक शासन करबाक उल्लेख भेटइयै। कखन आ कोन प्रकारे किरात लोकनिक ह्रास भेल से हमरा लोकनि नहि जनैत छी आ ने तकर कोनो ठोस सबुते भेटइत अछि। इहो कहल जाइत अछि जे ‘निमिष’ नामक एक गोट राजा नेपालमे विजय प्राप्त केने छलाह आ निमिष राजवंश करीब १४५ वर्ष धरि ओतए शासन केने छलाह आ एहि वंशमे पाँच गोट राजा भेल छलाह– निमिष मनाक्ष, काकवर्मन, पशुप्रेक्ष देव, आ भास्कर वर्मन। एहि राजवंशक समयमे आर्य लोकनिकेँ नेपालमे शरण भेटलन्हि। पशुप्रेक्ष देव नेपालमे पशुपतिनाथक मन्दिरक स्थापना केलन्हि आ भारतसँ आर्यसबकेँ अनलन्हि। एकर बाद नेपालमे लिच्छवी वंशक शासन शुरू होइत अछि।
लिच्छवी वंशक इतिहास:- लिच्छवीक सम्बन्ध मनु लिखैत छथि–
“द्विजातयः सर्वणासु जनयन्त्य व्रतांस्तुयान्।
तांसावित्री परिभ्रष्टान् व्रात्यानितिविनिर्हिशेत्॥
व्रात्यातु जायते विप्रात्पापात्मा भूजकण्टकः।
आवंत्यवाट धानौच पुष्पधः शैख एवचः॥
झल्लोमल्लश्च राजन्यांद् व्रात्यन्निच्छिविरेवच।
नरश्य करणश्चैव खसाँ द्रविड् एवच”॥
(एहि सम्बन्धमे देखु हमर “व्रात्यज इन एंसियेंट इण्डिया”)
लिच्छवी लोकनिक सम्बन्ध नेपालसँ बड्ड घनिष्ट छलैक। किछु विद्वानक विचार छन्हि जे इहो लोकनि मंगोलाइडसँ अद्भुत छलाह। नेपालक मल्ल, खस आदिक कोटिमे मनु लिच्छवी (निच्छवी)केँ रखने छथि। लिच्छवी लोकनिक प्रभाव मिथिलामे अत्यधिक विकसित छलैक आ ओतहिसँ इ लोकनि नेपाल धरि अपन शक्तिक प्रसार केलन्हि। नेपालमे किरात शासनक अवसान भेलापर सोमवंशी एवँ सूर्यवंशी लोकनिक शासनक संदिग्ध प्रमाण अछि। निमिष वंशकेँ सोमवंशी कहल गेल अछि आ ओकर बादे सूर्यवंशी राज्यक स्थापना भेल।
लिच्छवी लोकनि निमिष वंशकेँ उखाड़ि फेकलन्हि आ तकर बाद लगभग ५००वर्ष धरि नेपालपर शासन केलन्हि। नेपाली संवत जे १११ई.सँ आरंभ छैक सैह संभवतः लिच्छवी लोकनिक राज्यारोहणक संकेत दैत अछि। ओहुना अखन इएह मान्य अछि जे लिच्छवी लोकनि नेपालमे इस्वी सन् प्रथम शताब्दीक समीप अपन साम्राज्यक स्थापना केने छलाह आ अपन संवतक प्रारंभ सेहो। सूर्यवंशी शासनक स्थापनाक पश्चाते नेपालमे यथार्थ एतिहासिक कालक प्रारंभ मानल जाइत अछि। दुनू राजवंश मिथिलासँ आएल छल एहि सब राजवंशक समयमे नेपाल आ मिथिला नियमित रूपें राजनैतिक आ साँस्कृतिक सन्दर्भ बनल रहलैक। प्रथम ऐतिहासिक राजा भेलाह जयदेव। हुनका आ जयदेव द्वितीयक बीचमे 33टा राजा भेल छलाह।
समुद्रगुप्तक समयमे नेपाल गुप्त साम्राज्यक चाङ्गुरमे पड़ल छल। प्रयाग प्रशस्तिसँ एकर स्प्ष्टीकरण होइछ– नेपालक सीमांत शासकक सेवा प्राप्त करबाक संदर्भ अछि। सूर्यवंशी लिच्छवी कोनो शासक नेपालमे तखन रहल होएताह जनिका हेतु “प्रत्यन्त नेपाल नृपति” शब्दक व्यवहार कैल गेल अछि। मिथिलासँ नेपाल धरि तखन लिच्छवी लोकनिक विस्तार छलन्हि आ समुद्रगुप्त लिच्छवी दौहित्र छलाह तैं एहि घटनाकेँ मात्र घरेलु घटना मानल जा सकइयै। एहि युगमे नेपालमे वैष्णवबादक प्रवेश भेल। मान देवक चंगुनारायण मन्दिरक शिलालेख एवँ आन–आन शिलालेखसँ इ ज्ञात होइछ जे लिच्छवी राजा लोकनि बौद्ध धर्म, ब्राह्मण धर्म, शैव धर्म, वैष्णव धर्म, शाक्त आदि सबकेँ प्रोत्साहन दैत छलाह। नरेन्द्र देवक शासन कालमे मत्स्येन्द्र नाथ नामक संप्रदायक प्रचलन भेल। लिच्छवीक समयमे महायान शाखा सेहो अपन आकार ग्रहण केलक। लिच्छवी लोकनि ३५०सँ ८९९ धरि शासन केलन्हि–बीचमे मात्र अंशुवर्मन आ जिश्नुगुप्त छोड़िकेँ जे स्वतंत्र शासन केने छलाह।
अंशुवर्मन:- महासामंत अंशुवर्मन सातम शताब्दीक पूर्वार्द्धक एकटा महत्वपूर्ण शासक भेल छथि। वो अपनाकेँ महासामंत कहने छथि। वो बेश शक्तिशाली शासक छलाह आ तराइ राज्यक विशिष्ट भागकेँ अपना राज्यमे मिला लेने छलाह। अपन राज्यक विस्तार ओ बेतिया धरि कऽ लेने छलाह जतए हुनक साम्राज्यक सीमा हर्षक साम्राज्यसँ मिलैत छल। प्रसिद्ध व्याकरणाचार्य चन्द्रवर्मन एवँ नालन्दा विश्वविद्यालयक प्रसिद्ध शिक्षक अंशुवर्मनक दरबारक शोभा बढ़ौने रहथिन्ह। अंशुवर्मन जाहि नेपाल राज्यक स्थापना केलन्हि ताहि परम्पराकेँ जिश्नुगुप्त रखलन्हि आ बढ़ौलन्हि। ६४३मे अंशुवर्मनक मृत्युक पश्चात नरेन्द्र देवक नेतृत्वमे नेपालमे लिच्छवी शासनक पुनर्जन्म भेलैक।
लिच्छवी शासन नेपालमे किछु अवधि धरि रहलैक एकर प्रमाण हमरा मंजूश्री मूलकल्पसँ भेटइत अछि–
“भविष्यति तदाकाले उत्तरां दिशिमाश्रृतः।
नेपाल मण्डले ख्याते हिमाद्रे कुक्षिमाश्रिते॥
राजा मानवेन्द्रस्तु लिच्छवीनां कुलोद्भवः।
सोऽपि मंत्रार्थ सिद्धस्तु महाभोगी भविष्यति॥
पतनक कारण–
“उदयः जिहनुनोह्यंते म्लेच्छानां विविधास्तथा।
अभ्योधे भ्रष्ट मर्यादा बहिः प्राज्ञोपभोजिनः॥
शस्त्र सम्पात विध्वस्ता नेपालाधिपतिस्तदा।
विद्या लुप्ता लुप्तराजानो म्लेच्छ तस्कर सेविनः”॥
(राहुलजी द्वारा सम्पादित)
मानदेव लिच्छवी छलाह आ तकर बादो कैकटा लिच्छवी शासक भेलाह। लिच्छवी शासनक प्रसंगक उल्लेख हियुएन संग सेहो केने छथि। अंशुवर्मन ‘महासामंत’ कहबै छथि जाहिसँ मान होइयै जे जो ६३३ई.धरि लिच्छवी राजाक प्रभुत्वक स्वीकार करैत छलाह। नेपालक वैवाहिक सम्बन्ध सेहो बिहारसँ चलैत छल। सोमदेवक विवाह मौखरी भोगवर्मनक पुत्री ओ आदित्य सेनक प्रपौत्री वत्स देवीसँ भेल छलन्हि।
अहीर:-मंजूश्री मूलकल्पमे मानदेव द्वितीयक पश्चात राज विप्लवक वर्णन भेटइयै जाहिसँ ज्ञात होइछ जे नेपालमे गोलमाल भेल छल। अहीर लोकनिक आक्रमणसँ नेपाल आक्रांत छल। वंशावलीक अनुसार वो लोकनि भारतक समतलसँ आएल अहीर छलाह। हिनका लोकनि अहीरगुप्त सेहो कहल गेल छन्हि। ५००सँ ५९०क बीच एहिमे पाँचटा शासक भेलाह जाहिमे परमगुप्त पराक्रमी छलाह आ ओ लिच्छवी लोकनिकेँ शिकस्त केने छलाह। हुनक एकटा पौत्र सिमरौनगढ़मे शासन करैत छलाह। ओहि राजवंशक दोसर शाखा तराइमे शासन करैत छल। जयगुप्त द्वितीयक मुद्रा चम्पारण आ मगधमे भेटल अछि।
६४३–४४मे जिश्नुगुप्तक पश्चात अहीरवंश दू भागमे बटि गेल छल आ लिच्छवी लोकनि पुनः अपन राज्यकक स्थापना कऽ लेने छलाह। तकर बाद नेपालकेँ तिब्बतमे मिलि जेबाक संभावना बुझि पड़इयै आ मंजूश्री मूलकल्पमे एकर अप्रत्यक्ष प्रमाण अछि। इ उएह समय छल जखन तिब्बती राजा चीनी राजदूतकेँ तिरहूतपर आक्रमण करबाक हेतु साहाय्य देने रहथिन्ह आ संभव जे ओहिक्रममे नेपालपर तिब्बती प्रभाव बढ़ि गेल हो। मंजूश्री मूलकल्पसँ ज्ञात होइत अछि नेपाल शासन अन्यायी म्लेच्छपर निर्भर रहए लागल छल तथा राज्यक प्रथा समाप्त भऽ गेल छलैक। तिब्बती शासक श्राँगक विवाह अंशुवर्मनक बेटीसँ भेल छलैक। ७०३क बाद नेपाल विदेशी शासनसँ मुक्ति पेवाक हेतु माथ उठौलक। धर्मदेवक पुत्र मानदेव तृतीय विजयक चारिटा स्तंभ निर्मित केने छलाह। लिच्छवी लोकनिक पुनरागमनसँ नेपालक सवतोमुखी विकास भेल। ७०५ ई. मानदेव तृतीयक चंगुनारायण अभिलेखसँ ज्ञात होइछ जे ओ मल्ल सबहिक संग युद्ध कएने छलाह आ गण्डक धरि पहुँचि गेल छलाह। स्वंयभुनाथ शिलालेखसँ तत्कालीन संविधानपर सेहो प्रकाश पड़इत अछि। एहिठाम इ स्मरणीय थिक जे नेपालक लिच्छवी बरोबरि मिथिलासँ सम्पर्क बनौने रखैत छलाह। शिवदेवक विवाह आदित्यसेनक पौत्रीसँ छलन्हि। शिवदेवक जयदेव गद्दीपर बैसलाह आ हुनक पदवी छलन्हि ‘परचक्रकाम’। जयदेव शक्तिशाली शासक छलाह। शिवदेव अपना शिलालेखमे अपनाकेँ–“भट्टारक महाराज लिच्छवी कुलकेतु” कहने छथि। जयदेवकेँ कश्मीर धरि विजयक श्रेय देल जाइत छन्हि। जयदेव मिथिलाक सीमा धरि अपन राज्यक विस्तार केने छलाह आ हुनक सम्पर्क पाटलिपुत्र आ गौड़सँ सेहो बढ़िया छलन्हि। ८७९–८८०मे राघव देव नेपालक संवत चलौलन्हि मुदा हिनका जयदेवसँ कोन सम्बन्ध छलन्हि से हमरा लोकनि नहि जनैत छी।
लिच्छवीक पश्चात नेपालक ठाकुरी राजवंशक सम्पर्क अपना सबहिक क्षेत्रसँ बढ़िया छलैक। नेपालमे महायानक प्रधानता छल आ ओहिठामक विद्यार्थी नालंदा (आ बादमे विक्रमशिला)मे पढ़बाक हेतु अबैत छलाह। पालवंशक समयमे इ सम्बन्ध आ घनिष्ट भऽ गेल। रमेश चन्द्र मजुमदारक मत छन्हि जे इमादपुर (मुजफ्फरपुर)मे जे पाल अभिलेख भेटल अछि ताहिपर जे संवत ४८मे पढ़ल गेल अछि से भ्रामक अछि आ ओकरा नेपाली (नेवारी) संवत–१४८ बुझबाक थिक जे १०४८ई.क बरोबरि होइत अछि आ जखन मिथिलापर महिपाल प्रथम शासन करैत छलाह। सब तथ्यक स्पष्ट अध्ययन केला उत्तर हुनक मंतव्य छन्हि जे मूर्तिक समर्पित केनिहार व्यक्ति नेपाल वासी रहल होएताह आ तैं ओ नेवारी संवतक व्यवहार कएने छथि। १०३८मे नेपाली लोकनि मिथिला बाटे विक्रमशिला गेल छलाह आ ओतएसँ अतीश दीपंकरकेँ लऽ कए तिब्बत घुरल छलाह। अतीशक नेपाल पहुँचलाक बाद नेपाली महायानमे तंत्रक प्रवेश भेलैक। एग्यारहम शताब्दीमे नेपाल आंतरिक रूपें बटि गेल तीन राज्यमे–पाटन, काठमाण्डु आ भातगाँव आ ओहिठाम केन्द्रीय सत्ताक सर्वथा अभाव भऽ गेल आ एहिसँ लाभ उठाकेँ विभिन्न राज्यक आक्रमण नेपालपर शुरू भऽ गेलैक। चालूक्य, कलचुरी, यादव, जैतुंगी आदिक शिलालेखसँ ज्ञात होइछ जे इ सब नेपालपर आक्रमण कएने छलाह। एहि स्थितिसँ लाभ उठाए नान्यदेव सेहो नेपालपर आक्रमण केलन्हि। नान्यदेव नेपालपर मिथिलाक आधिपत्य स्थापित करबामे समर्थ भेलाह। राजकरैत शासक सबकेँ पदच्युत कऽ ओ अपन राजधानी भातगाँवमे बनौलन्हि। नेपाली परम्पराक अनुसार वो काठमाण्डुक जगदेव मल्ल एवँ पाटन–भातगाँवक आनंद मल्लकेँ बन्दी बनौलन्हि आ जे सब हिनक प्रभुत्व स्वीकार केलन्हि हुनका इ माफ कऽ देलथिन्ह। नेपालमे नान्यदेवकेँ कहियो चैन नहि भेटलन्हि आ बरोबरि किछु ने किछु खटपट होइते रहलैन्ह। एकमत इहो अछि जे नान्यदेवकेँ पुनः दोसर बेर (११४१मे) नेपालपर आक्रमण करए पड़लन्हि। नान्यदेवक प्रभुत्व तँ नेपालपर बनल रहलैन्ह मुदा हुनक उत्तराधिकारी लोकनि ओकरा रखबामे समर्थ भेलाह कि नहि से एकटा संदिग्ध विषय। परम्परानुसार नान्यदेवक एकटा पुत्र नेपालपर शासन करैत छलाह। संभवतः मल्लदेव एहिठामक शासक छलाह आ भीठ भगवानपुर धरि हिनक राज्यक प्रसार छल। नरसिंह देवक समयमे मिथिला आ नेपालमे फेर खटपट भेलैक आ दुनू राज्य अलग भऽ गेल। मिथिलासँ नेपाल पृथक भऽ गेल। नान्यदेवक बादहिसँ नेपालमे कर्णाट शासन दुर्बल भऽ गेल छलैक आ नेपालमे कर्णाट शासनकेँ ठाकुरी राजा लोकनि उखाड़ि फेकने छलाह। एहि आस पासमे नेपालमे मल्ल लोकनिक उत्थान सेहो देखबामे अवइयै। इ वंश अरि मल्लदेवसँ शुरू होइछ। नीलग्रीव स्तंभ अभिलेखसँ ज्ञात होइछ जे धर्ममल्ल आ रूपमल्ल नेपालक मल्ल लोकनिक पूर्वज छलाह। एहि वंशक प्रमुख शासक छलाह अरि मल्लदेव।
मल्ल लोकनिक प्रभुत्वक कालमे मिथिलाक मंत्री चण्डेश्वर नेपालपर आक्रमण केलन्हि आ नेपालक राजाकेँ पराजित केलन्हि। चण्डेश्वरक ‘कृत्य रत्नाकर’मे सेहो एकर विवरण अछि। वाग्मतीक तटपर एहि उपलक्ष्यमे तुलापुरूष दानक उल्लेख सेहो अछि। १३१४मे नेपालपर दक्षिणसँ (मिथिला) चढ़ाइक प्रमाण स्पष्ट अछि। हरिसिंह देव पराजित भेला उत्तर नेपाल गेला आ नेपाली शासक बिना प्रतिरोध आत्मसमर्पण कऽ देलखन्हि। हरिसिंह देवमे भातगाँवमे सूर्यवंशी राजवंशक परिपाटी स्थापित केलन्हि। ओ अपन शक्तिकेँ नेपालमे पुनः संगठित केलन्हि आ कर्णाट प्रभुत्वक स्थापना सेहो। भातगाँवसँ ओ शासन करैत छलाह आ ओतहि ओ तुलजादेवीक मन्दिरक स्थापना केलन्हि। नेपालमे हुनक सार्वभौम होएबाक निम्नलिखित अभिलेखसँ स्पष्ट अछि–
“जातः श्रीहरिसिंह देव नृपति प्रौढ़ प्रतापोरयः।
तद्वंर्श विमले महारिपुहरे गाम्भीर्यरत्नाकरः॥
कर्त्तायः सरसामुपेत्य मिथिलां संलक्ष्य लक्षप्रियो।
नेपाले पुनरोद्य वैभवयुते स्थैर्यं विधते चिरम्॥
हरिसिंह देवक नेपाल आक्रमणक प्रश्नपर इतिहासकारक मध्य काफी मतभेद अछि। लुसिआनो पेतेकक विचार छन्हि जे मल्ल लोकनि स्वतंत्र छलाह आ अपनाकेँ महाराजिधराज परमेश्वर परमभट्टारक कहैत छलाह जाहिसँ इ भान होइछ जे हुनका लोकनिपर कोनो विदेशी सत्ताक शासन नहि छलन्हि। मिथिलापर चण्डेश्वर द्वारा आक्रमणक बातकेँ ओ मनैत छथि परञ्च ओ इहो कहैत छथि जे ओहि आक्रमणक फले मिथिलाक आधिपत्य नेपालपर नहि भेलैक। मिथिलासँ भागलापर ओ नेपालमे अपन राज्य बनौलन्हि तकरा वो नहि मनैत छथि। एकटा वंशावली पोथीक आधारपर इहो सिद्ध कएने छथि जे हरिसिंह देव नेपाल पहुँचलाक बाद मरि गेला आ रजगाँवक माँझी भारो हुनक पुत्रकेँ गिरफ्तार कए बंदी बना लेलकन्हि आ धन–वित्त छीनि लेलकन्हि। एवँ प्रकारे हरिसिंह देवक वंश एहिठाम समाप्त भऽ गेलैन्ह।
लुसिआनो पेतेकक मतकेँ हम ओहिना राखि देने छी जेना वो लिखने छथि। इहो कहल जाइत अछि जे ओहि समयमे पश्चिमी नेपालसँ आदित्यमल्लक आक्रमण सेहो भेल छल। तिरहुतिया जगतसिंह सेहो किछु दिनक हेतु नेपालमे राज्य केने छलाह। एक विद्वानक अनुसार हरिसिंह देवक परिवार एवँ हुनक उत्तराधिकारी हुनका बादो नेपालपर शासन केलक। उत्तराधिकारी लोकनिक नाम एवँ प्रकारे अछि–
i. मतिसिंह–(१३१५–६९)–सिमरौनगढ़क राजगद्दीपर सेहो राज्य केलन्हि आ नेपालपर सेहो। चीनक सम्राट सिमरौनगढ़ शासककेँ मान्यता दैत छलथिन्ह। शमशुद्दीन इलियास जखन नेपालपर आक्रमण करबाक हेतु बढ़लाह तखन ओ सिमरौन गढ़क शासककेँ सेहो परास्त केलन्हि आ ओहि बाटे नेपाल गेलाह। मतिसिंहक नामपर मोतिहारी अछि।
ii.शक्ति सिंह
iii.श्यामसिंह– हिनका कोनो पुत्र नहि भेल आ हुनक पुत्रीक विवाह मल्लवंशक राजकुमारसँ भेल। मतिसिंहक ओतए चीनक दूत आएल छल। चीनक सम्राटक ओहिठामसँ एकटा मोहर सेहो आएल छलैक आ शक्तिसिंहक ओहिठाम सेहो एकटा चीनी सम्राटक मोहर आ पत्र आएल छलैक। श्यामसिंहक राज्यारोहणक चीनी सम्राटक हाथे भेल छल। एहि तथ्य सबसँ प्रत्यक्ष अछि चीनी सम्राट एहि कर्णाटवंशीकेँ नेपालक सार्वभौम राजा बुझैत छलाह। अहु सम्बन्धमे पेतेकक मत अछि जे इ सब बात गलत थिक। १३८२ ई. क इथाम बहाल अभिलेखसँ स्पष्ट होइयै जे मदन रामक पुत्र शक्तिसिंह नेपाली अनेक रामक वंशज छलाह ने कि कर्णाट वंशीय। नेपालक इतिहासमे अहुखन कतेको मतभेद अछि आ रहत।
रज्जलदेवीक पति जयार्जुनक शासनकालमे जयस्थिति मल्ल द्वारा राज्य शासनमे नियम विरूद्ध विप्लव कैल गेल। जयस्थितिकेँ सिमरौनक हरिसिंह देवक वंशज कहल गेल अछि। नायक देवी आ जगतसिंहक पुत्री रज्जलादेवीसँ जयस्थिति विवाह केलन्हि। जयस्थिति जयार्जुनकेँ पराजित कए नेपालक राजा भेलाह। ओ सूर्यवंशी कर्णाटक योग्य प्रतिनिधि सिद्ध भेलाह। पृथ्वीसिंहक आधिपत्य स्थापित होयबाक समय धरि हुनक वंश शासन करैत रहल। जयस्थितिमल्लक संग रज्जल्ला देवीक विवाह भेलासँ तीनटा शक्तिशाली शासक परिवार–ठाकुरी, कर्णाट ओ मल्ल संयुक्त भऽ गेल। जयस्थितिमल्ल शक्तिशाली शासक छलाह। हुनक उत्तराधिकारी यक्षमल्ल अपन अधिकार मिथिला धरि बढ़ौलन्हि। ओ अपन प्रतिद्वन्दीकेँ हराय राज्यकेँ चारि भागमे विभक्त केलन्हि।
i. भातगाँव– अपन ज्येष्ठ पुत्र राज्यमल्लकेँ
ii. बनेपा– रणमल्लकेँ
iii.काठमाण्डु– रत्नमल्लकेँ
iv.पाटन– अपन पुत्रीकेँ।
एकर परिणाम भेल नेपालक सर्वनाश। सत्रहम शताब्दीमे नेपाल अनेकानेक जागीरमे बँटि गेल। सबसँ पूबमे किरात प्रदेश छल जाहिमे दूध कोशीक समतल, ओकर शाखा तथा सून कोशीक पूबमे तराइक किछु भाग सेहो छलैक।
मुसलमानी आक्रमणः- ऐतिहासिक सम्पर्क पकड़बाक हेतु पुनः इस्वीसन् चौदहम शताब्दीक चर्चा करए पड़इत अछि। कहल जाइछ जे अलाउद्दीन खलजी सेहो अपन प्रभाव नेपाल धरि बढ़ौने छलाह यद्धपि एकर कोनो ठोस प्रमाण हमरा लोकनिकेँ उपलब्ध नहि अछि। १३४६–४७मे बंगालक शासक शमसुद्दीन हाजी इलियास नेपालपर आक्रमण केलन्हि आ एहिबातक उल्लेख स्वयंभूनाथक अभिलेखमे अछि। एहि शिलालेखक अनुसार हाजी इलियास काठमाण्डुकेँ घेर लेलक, शहरमे आगि लगादेलक, लूट पाट मचौलक एवँ मूर्त्ति सबकेँ ध्वस्त केलक। शिलालेखक तिथि अछि नेवारी ४९२=१३७१–७२इ.–मन्दिर पुनः निर्मित भेलैक आ स्तूप पुनर्स्थापित भेल आ ओकर समारोह मनाओल गेल। एहि शिलालेखक संपादन के.पी.जायसवाल केने छथि। तकर बादसँ पुनः कोनो आक्रमणक उल्लेख नहि भेटइत अछि।
मल्लक शासनः- जयस्थितिक चर्च हमर पूर्वहि कचुकल छी। हुनक उत्तराधिकारी छलाह जगज्योतिमल्ल। ओ मैथिल वंशमणिक मिलिकेँ ‘संगीत भास्कर’ नामक पुस्तकक रचना केने छलाह। हुनक उत्तराधिकारी ज्योतिमल्ल भेला आ हुनक यक्षमल्ल। यक्षमल्ल अपन अधिकारक विस्तार समतल भूमि दिसि सेहो केलन्हि। यक्षमल्लक तृतीय पुत्र रत्नमल्ल मैथिल ब्राह्मणक प्रभावक अधीन छलाह। रत्नमल्लक उत्तराधिकारी छलाह अमरमल्ल आ हुनक महेन्द्रमल्ल जे चानीक मुद्राक व्यवहार शुरू केलन्हि। ओ तिरहूतसँ हानी मंगवैत छलाह।
एम्हर आबि मिथिला आ नेपालक बीचक सम्बन्ध खूब बढ़िया नहि रहल। खण्डवला कुलक राजा महिनाथ ठाकुर अपन राज्य विस्तारक क्रममे मोरंगकेँ जीति लेलन्हि। मिथिला, तिरहूति गीतक प्रचार एहि राजाक समयमे भेल छल। नेपाल तराइक लोग सब खटपट करैत छल आ तै मोरंगक जमीन्दार सबकेँ दबेबाक हेतु औरंगजेब गोरखपुरक फौजदार आ मिथिलाक फौजदारकेँ पठौलन्हि। सत्रहम शताब्दीमे मिथिला आ नेपालमे खटपट होएबाक एकटा कारण मकवानी राज्य ते तराइ वो घाटीक उपहिमालय मार्गक सटले दक्षिण आ दक्षिण–पश्चिममे रहैक। एहिठाम एकटा प्रमुख शासक छलाह राजा हरिहर जे बड्ड महत्वाकाँक्षी छलाह। राघवसिंह जखन मिथिलाक राजा भेलाह तखन फेर एहि राज्यकेँ लऽ कए नेपालसँ खटपट शुरू भेल। नेपाल तराइक पंचमहलाक राजा भूपसिंहकेँ युद्धमे हरौलन्हि आ भूपसिंह ओहिमे मारल गेला। दरभंगाक खण्डवला राज्यक सीमा मकवानी राज्य धरि पहुँचल। मोरंग राजाक ओतए सेहो मिथिलाक धाख बनल। बंजर सब सेहो तराइक क्षेत्रमे शरणलेने छलाह आ अलीवर्दी हुनका सबहिक विरूद्ध उचित कारवाइ केने छलाह। बंजर लोकनि भपटिआटी टीसनसँ मकवानी राज्यक सीमा धरि पसरल छल।
१७६५मे नेपालमे गोरखा लोकनि शक्तिशाली भऽ गेलाह। १८०२ई.सँ नेपालक सम्पर्क इस्ट इण्डिया कम्पनीक अधिकारीसँ भेल जखन कि नेपाली लोकनि हुनकासँ भेंट करबाक हेतु पटना अबैत गेल। नेपाल आ इस्ट इण्डिया कम्पनीक सम्बन्ध मधुर नहि भऽ सकल आ दिनानुदिन झंझट बढ़ि गेल। अंग्रेज आ नेपालीक बीच युद्ध भइयैकेँ रहल आ ओ युद्ध भेल मिथिला भूमिपर। युद्धमे नेपाली लोकनि अपन अधिकारक विस्तार तराइमे छपड़ा (सारन) धरिक चुकल छलाह। चारूकात लड़ाइ प्रारंभऽ छल। सारनसँ कोशी धरि आ वीचमे मकवानी होइत अंग्रेजक एकटा टुकड़ी नेपालक राजधानी दिसि बढ़ल। लड़ाइक भीषण रूप देखि गजराज मिश्र शांतिक वार्त्ता चलौलन्हि। १८१५मे एक समझौताक अनुसार इ निश्चित भेलैक जे नेपालकेँ ओहिभूमि पर अधिकार छोड़ि देवाक चाही जाहिपर ब्रिटिशक कब्जा भऽ गेल छलैक। एहि संधिसँ कोनो संतोषजनक परिणाम नहि बहरेलैक। १८१६मे पुनः मकवानीपुर लग फेर भिड़ंत भेलैक आ गोरखा पराजित भेल १८१४ई.२८ नवम्बरक सुगौलीक संधिकेँ जखन गोरखा लोकनि बिना कोनो शर्त्त स्वीकार केलन्हि तखनहि अंग्रेज युद्धवंदी घोषणा १८१६मे केलन्हि। एवँ प्रकारे अंग्रेज आ नेपालक बीच संघर्षक मुख्य स्थल मिथिले रहल आ सुगौलीक सन्धिक पश्चात दुनू राज्यक बीचक सम्बन्ध सुधरल।

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