मिथिलाक भौगोलिक सीमा

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मिथिलाक भौगोलिक सीमा

शतपथ ब्राह्मणक अनुसार नदीक बहुलताक कारणे मिथिलाक भूमि दलदल जकाँ छल। कहल जाएछ जे अग्निदेवक आज्ञासँ माथव विदेघ आ गोतम राहुगण सदानीरा (गण्डकी)क पूबमे जाकऽ बसलाह आ उएह क्षेत्र इतिहासमे मिथिला, विदेह, तीरभुक्ति एवँ तिरहुतक नामसँ प्रसिद्ध भेल। दलदल भूमिकेँ अग्निदेव सुखाकेँ कठोर बनौलन्हि आ जंगलकेँ जराकेँ एहि पूर्वी भूमिकेँ रहबा योग्य स्थान सेहो। आर्य ऋषि लोकनि ओहिठाम अगणित यज्ञक आयोजन केलन्हि आ असंख्य यज्ञ आ होम होयबाक कारणे ओहिठामक भूमि रहबा योग्य बनि सकल। नदीक बाहुल्यक कारणे संभव जे एहि क्षेत्रकेँ तीरभुक्ति कहल गेल छल। प्राचीन कालमे तीरभुक्ति समस्त उत्तरी बिहारक द्योतक छल आ एकर सीमा पश्चिममे श्रावस्तीभुक्ति आ पूबमे पुण्ड्रवर्धनभुक्तिसँ मिलैत–जुलैत छल आ एकर एहि विशालताक परिचय हमरा आयनी–अक्बरीमे वर्णित तिरहुत सरकारक महालक नाम सभसँ सेहो भेटइत अछि।
परंपरागत साधनमे मिथिलाक जे विवरण उपलब्ध अछि तकर सिंहावलोकन करब अपेक्षित। ओहि वर्णनमे ऐतिहासिकताक पुटकतबा दूर धरि अछि से नहि कहि सकैत छी तथापि पौराणिक आख्यानक महत्व तँ ऐतिहासिक दृष्टिये अछिये एहिमे संदेहक कोनो गुंजाइश नहि।
भविष्य पुराणक अनुसार अयोध्याक महाराज मनुक पुत्र निमि एहि यज्ञ भूमिमे आवि अपनाकेँ कृत्य–कृत्य बुझलन्हि आ ओहिठामक ऋषि लोकनिक तप आ यज्ञसँ लाभान्वित भेलाह। निमिक पुत्र ‘मिथि’ एक शक्तिशाली शासक भेलाह आ ओ अपन पराक्रमक प्रदशनार्थ एहिठाम एकटा नगरक निर्माण केलन्हि जे ‘मिथिला’क नामसँ प्रसिद्ध भेल। एहिमे कहलगेल अछि जे पुरी निर्माता होएबाक कारणे ‘मिथिला’क दोसर नाम ‘जनक’ पड़ल।
भविष्य पुराण:-
निमेः पुब्रस्तु तत्रैव मिथिर्नाम महान स्मृतः।
प्रथमं भुजबलैर्येन तैरहूतस्थ पार्श्वतः॥
निर्म्मितस्वीयनाम्ना च मिथिलापुरमुनमम्।
पुरीजनन सामथ्यज्जिनकः सच कीर्तितः॥
वाल्मीकीय रामायण:- राजाऽभूतिषु लोकेषु विश्रुतः स्वेनकर्मणा निमिः परमधर्मात्मा सर्वतत्व वतांवरः। तस्य पुत्रो मिथिर्नाम जनको मिथिपुत्रक कथन अछि जे जखन वशिष्ठ यज्ञाभिलाषी निमिक निमंत्रण अस्वीकार कए इन्द्रक पुरोहिताइ करबाक हेतु स्वर्ग गेलाह तखन वशिष्ठक अनुपस्थितिमे भृगु आदि अन्यान्य ऋषि मुनि लोकनिक साहाय्यसँ निमि अपन यज्ञक संपादन केलन्हि। वशिष्ठ स्वर्गसँ घुरलापर जखन यज्ञकेँ सम्पादन भेल देखलन्हि तखन क्रुद्ध भए ओ राजा निमिकेँ “विदेह” भजेबाक श्राप देलन्हि। वशिष्ठक एहि श्रापसँ चारूकात हाहाकार मचि गेल। प्रजा लोकनि घबरा उठलाह। अराजकताक स्थिति देखि उपस्थित ऋषिगण निमिक मृत शरीरकेँ मथेऽ लगलाह आ मथला उत्तर जे शरीर उत्पन्न भेल तकरे “मिथिल” अथवा “विदेह”क संज्ञा देल गेल। इ लोकनि “जनक” नामसँ सेहो प्रसिद्ध भेलाह।
श्रीमदभागवत:-
जन्मना जनकः सोऽभूद्धैदेहस्तुः विदेहजः।
मिथिलोमथनाज्जातो मिथिला येन निर्म्मिता॥
देवी भागवतसँ ज्ञात होइछ जे निमिक उन्नैसम पीढ़ीमे राजर्षि सीरध्वज जनक भेल छलाह और श्रीमदभागवतसँ इ बुझल जाइत अछि जे जनक वंशक शासक लोकनि एहेन वातावरण बना देने छलाह जे हुनक पार्श्ववर्ती गृहस्थ सेहो सुख दुःखसँ मुक्त भऽ गेल छलाह। ‘विदेह’ जे कि महत्वपूर्ण कल्पना छल आ जकर प्राप्तिक हेतु लोग ललायत रहैत छल से ओहि देशक नामक संकेत सेहो दैत अछि जाहिठाम जनक वंशक लोग अपन राज्यक स्थापना कएने छलाह। शुकदेव जी (व्यासक पुत्र) जखन अपन पितासँ तपचर्याक हेतु आज्ञा माँगलन्हि तखन हुनका योगिराज जनकक दृष्टांत दैत इ कहल गेलन्हि जे ओ घरोमे रहिकेँ तपस्या कऽ सकैत छथि। शुकदेवजीकेँ असंतुष्ट देखि व्यास हुनका राजर्षि जनकक ओतए पठा देलथिन्ह।
देवी भागवत–
वंशेऽस्मिन्येऽपि राजानस्ते सर्वे जनकास्तथा।
विख्याता ज्ञानिनः सर्वे वेदेहाः परिकीर्तिताः॥
वर्षद्वयेन मेरूंच समुल्लङ्घ्य महामतिः।
हिमालये च वर्षेण जगाम मिथिलां पति॥
प्रविष्टो मिथिलांमध्ये पश्यंसर्वर्द्धिमुतम्।
प्रजाश्चः सुखिता सर्वाः सदाचाराः मुखंस्थिताः॥
श्रीमद् भागवत–
एते वै मैथिला राजन्नात्म विद्याविशारदाः
योगेश्वरं प्रसादेन द्वन्दैमुक्ता गृहष्वेपि॥
मिथिलाक सीमाक सबंधमे देवी भागवतमे निम्नांकित विवरण अछि।
एवं निमिसुतो राजा प्राथतोजनकोऽभवत्।
नगरी निर्मिता तेन गंगातीरे मनोहरा।
मिथिलेति सुविख्याता गोपुराट्टाल संयुता
धनधान्य समायुक्ताः हर्हेशाला विराजिता॥
शक्तिसंगम तंत्र:-
गण्डकी तीरमारभ्य चम्पारण्यांतंग शिवे।
विदेहभूः समाख्याता तीरभुक्त्यमिधः सतु॥
स्कन्द पुराण:-
गण्डकी कौशिकी चैव तयोमध्ये वरस्थलम्।
बृहद् विष्णुपुराण:-
कौशिकीन्तु समारभ्य गण्डकीमधिगम्यवै।
योजनानि चतुर्विशंद् व्यायामः परिकीर्त्तितः॥
गंगाप्रवाहमारभ्य यावद्धैमवतंवनम्।
विस्तारः षोडश प्रोक्तो देशस्य कुलनन्दन।
मिथिलानाम नगरी तत्रास्ते लोक विश्रुता॥
अगस्त्य रामायण:-
वैदेहोपवनस्यांते दिश्यैशान्यां मनोहरम्।
विशालं सरसस्तीरे गौरीमंदिर मुत्तमम्॥
वैदेही वाटिका तत्र नाना पुष्प सुगुम्फिता।
रक्षितमालिकन्याभिः सर्वतु सुखदा शुभा॥
मिथिलाक उत्तरमे हिमालय, दक्षिणमे गंगा, पूबमे कौशिकी आ पश्चिममे गण्डकी अछि।
चन्दा झा:-
गंगा बहथि जनिक दक्षिण दिशि,
पूर्व कौशिकी धारा
पश्चिम बहथि गण्डकी,
उत्तर हिमवत बल विस्तारा।
प्राचीन मिथिलामे आधुनिक दरभंगा, मुजफ्फरपुर, मोतिहारी, (दरद–गण्डकी देश), सहरसा, पुर्णियाँ, बेगूसराय, कटिहार, विहपुर, एवँ नेपालक दक्षिणी भाग सम्मिलित छल। नदीक प्रधानता हेवाक कारणे मिथिलाकेँ तीरभुक्ति सेहो कहल गेल छैक–
वृहद् विष्णु पुराण:-
गंगा हिमवतोर्मध्ये नदी पञ्च दशांतरे।
तैरभुक्तिरिदति ख्यातो देशः परम पावनः॥
तीरभुक्ति नाम होएबाक निम्नलिखित कारण बताओल गेल अछि।
i.) शाम्भकी, सुवर्ण एवँ तपोवनसँ भुक्तमान
होएबाक कारणे इ तीरभुक्ति कहाओल।
ii.) कौशिकी, गंगा आ गण्डकीक तीरधरि
एकर सीमा छलैक तैं एकरा तीरभुक्तिक संज्ञा देल गेलैक।
iii.) ऋक्, यजु आ साम तीनहुक वेद सभसँ
आहुति देवऽबला ब्राह्मण समूहक निवाससँ
त्रि–आहुति अर्थात तिरहुतक नामसँ
इ स्थान प्रख्यात भेल।
१६–१७म शताब्दीक तिब्बती यात्री लामा तारनाथक विवरणमे तिरहुतकेँ “तिराहुति” कहल गेल अछि। आ आयनी अकबरीमे तँ सहजहि एक विस्तृत विवरण भेटिते अछि। ऐतिहासिक दृष्टिकोणसँ भुक्ति शब्द प्रयोग गुप्त युगसँ प्रारंभ भेल आ शिलालेखमे एकर उल्लेख भेटइत अछि। वैशालीसँ प्राप्त कैकटा मोहरपर तीरभुक्ति शब्दक उल्लेख अछि आ संगहि कटरासँ प्राप्त अभिलेख, नारायण पालक भागलपुर अभिलेख, वनगाँव ताम्रपत्र अभिलेख आदिसँ ‘तीरभुक्ति’पर प्रकाश पड़इयै आ इ बुझि पड़इयै जे ताहि दिनमे तीरभुक्ति समस्त उत्तर बिहारक द्योतक छल जकरा पश्चिममे छल आधुनिक उत्तर प्रदेश और पूबमे बंगाल। महानंदाक पश्चिम आ गण्डकीक पूबक समस्त भूमि तीरभुक्ति कहबैत छल, एहिमे कोनो संदेह नहि। जातकमे मिथिलाक क्षेत्र जे वर्णन अछि आ आयनी अम्बरीमे वर्णित तिरहुत सरकारक विवरण हमर उपरोक्त मतक समर्थन करइयै। देशक भूगोल आ सीमा राजनैतिक उथल-पुथलक कारणे बदलैत रहैत छैक आ मिथिलाक राजनैतिक इतिहासमे सेहो एहेन कतेक परिवर्तन भेल छैक तथापि एकर जे एकटा साँस्कृतिक स्वरूप अछि से आविच्छिन्न रूपें चलि आवि रहल अछि आ उएह रूप एकर भौगोलिक सीमाक स्पष्ट आभास दैत अछि। प्राचीन साहित्यमे मिथिला आ जनकपुर नाम भेटैछ परञ्च गुप्तयुगसँ तीरभुक्ति नाम प्रशस्त भऽ गेल।
___ “प्राग्ज्योतिषः कामरूपे तीरभुक्तिस्तु निच्छविः
विदेहा चाश्य कश्मीरे”
लिंग पुराण:-
“तीरभुक्ति प्रदेशेतु हलावर्त्ते हलेश्वरः”
प्राचीन मिथिलाक पुरातात्विक विश्लेषण एवँ अध्ययन अखनोधरि अपेक्षिते अछि। नेपालक सीमा जे सम्प्रति जनकपुर अछि तकरे प्राचीन विदेह मानल गेल अछि। सुरूचि आ गाँधार जातकमे विदेह एवँ मिथिलाक भौगोलिक सीमाक विवरण भेटइत अछि। विदेहक चारू मुख्य फाटकपर चारिटा बाजार छल। महाजनक जातकमे तँ विदेहक राजधानी ‘मिथिला’क भव्य वर्णन अछि–मिथिलाक नगरीक सोभा, बाजार आ राज दरबारक शोभा, सामान्य लोगक पहिरब–ओढ़ब, खान–पान, रहन–सहन, सैनिक–संगठन, रथ, हाथी, घोडा, आदि एहेन कोनो अंश छुट्ल नहि अछि जकर वर्णन ओहिमे नहि भेटइत हो। अयोध्यासँ मिथिला पहुँचबामे विश्वामित्रकेँ चारि दिन लागल छलन्हि परञ्च राजा दशरथक ओतए जनक जाहि दूतकेँ पठौने छलाह तकरा मात्र तीन दिन लगलैक। दशरथ चारि दिनमे अयोध्यासँ मिथिला पहुँचल छलाह। महावीर एवँ बुद्धक समयमे विदेहक सीमा एवँ प्रकारे छल–
___ लम्बाइमे कौशिकीसँ गण्डक धरि २४ योजन।
___ चौड़ाइमे हिमालयसँ गंगा धरि १६ योजन।
___ मिथिलासँ वैशाली ३५ मील उत्तर पश्चिम दिसि छल।
___ जातकक अनुसार विदेह राज्यक सीमा ३००० लीग छल आ राजधानी मिथिलाक ७ लीग।
___ मिथिला जम्बुद्वीपक एकटा प्रधान नगर छल।
___ सदानीरा नदी बुढ़ी गण्डकक द्योतक छल।
___ तीरभुक्ति नामक संदर्भमे भृंगदूतमे कहल गेल अछि–
“गंगा तीरावधिरधिगता यदभुओ
भृङ्गभूर्क्तिनामा सैव त्रिभुवन तले विश्रुताः तीरभुक्ति”
आ शक्तिसंगम तंत्रमे–
गण्डकीतीरमारभ्य चम्पारण्यांतकं
शिवे विदेहभूः समाख्याता तीरभुक्तिमिधोर्मनु।
’भुक्ति’ शब्दसँ प्रान्तक बोध होइछ आ गुप्त युगमे समस्त मिथिला तीरभुक्ति नामसँ प्रसिद्ध छल आ एहिसँ समस्त उत्तर बिहारक बोध होइत छल। भोगौलिक दृष्टिये मिथिलाक निम्नलिखित नाम सेहो महत्वपूर्ण अछि–विदेह, तीरभुक्ति, तपोभूमि, शाम्भवी, सुवर्णकानन, मन्तिली, वैजयंती, जनकपुर इत्यादि परञ्च एहि सभमे विदेह, मिथिला, तीरभुक्ति आ तिरहुत विशेष प्रचलित अछि। चारिम शताब्दीमे तीरभुक्ति नाम प्रसिद्ध भऽ चुकल छल। त्रिकाण्डशेष, गुप्त अभिलेख आ बारहम शताब्दीक एकटा अभिलेख एवँ अन्यान्य अभिलेख सभमे ‘तीरभुक्ति’क नाम भेटइत अछि।
iv.मिथिला भूमि:-सम्प्रति जे मोतिहारी, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, सहरसा, पूर्णियाँ, बेगूसराय, आदि क्षेत्र अछि सैह प्राचीनकालमे मिथिला, विदेह, तीरभुक्ति, कहबैत छल आ वैशाली एकर अंतर्गत छल। गण्डकीसँ महानंदा आ हिमालयसँ गंगाधरक क्षेत्रक अंतर्गत मिथिला छल। मिथिलाक सीमा लगभग २५००० वर्ग मील छल। हियुएन संग जे ‘पूरा भारत’क वर्णन कैने छथि ताहिमे मिथिलोक उल्लेख अछि। मिथिलाक नाम उत्पत्तिक सम्बन्धमे निम्नलिखित श्लोक प्रसिद्ध अछि–
“निमिः पुत्रस्तु तत्रैव मिथिनर्मि महान स्मृतः
प्रथमं भुजबलेर्येन त्रैहूतस्य पार्श्वतः।
निर्म्मितंस्वीय नाम्नाच मिथिलापुरमुत्तम्
पुरीजनन सामर्ध्यात् जनकः सच कीर्तितः॥
(शब्दकल्पद्रूम-iii.७२३)
वृहद विष्णुपुराणक मिथिला महात्म्य खण्ड–
मिथिला नाम नगरी नमास्ते लोक विश्रुता
पंचभिः कारणैः पुण्या विख्याताजगतीत्रये॥
पाणिनिः-
मन्थते शत्रवोयस्यां=मथ+“मिथिलादयश्च”
इतिदूलच अकारस्येत्वं निपात्यते स्वनाम
ख्यातनगरी। सातु जनकराज पुरायथा। विदेहा
मिथिलाप्रोक्ता। इति हलायुधः-
मिथिला भूमिक विशेषता इ अछि जे एहिठाम नदीक बाहुल्यक कारणे जमीन उपजाउ अछि आ सभ प्रकारक अन्नक खेती एतए होइत अछि। एहिठामक जनसंख्याक विशेष भाग अहुखन खेतीपर निर्भर करैत अछि। प्रतिवर्ष एहिठाम नदीक बाढ़ि अबैत अछि, गाम घर दहा जाइत अछि, लोग वेलल्ला भऽ जाइत अछि तथापि अपन माँटि-पानिक प्रति एहिठामक लोककेँ ततेक प्रेम आ आसक्ति छैक जे ओ एकरा तैयो छोड़वा लेल तैयार नहि अछि आ ओहि माँटि-पानिसँ सटिकेँ रहब अपन जीवनक सार बुझैत अछि। गण्डक, वाग्मती, बलान, लखनदेइ, कमला, करेह, जीवछ, कोशी, तिलयुगा, गंगाक मारि मिथिलाक लोग जन्म-जन्मांतरसँ सहैत आबि रहल अछि। नदीक बिना मिथिलाक भूमिक कल्पने नहि भऽ सकइयै। नदीक कारणे तँ मिथिलाक नामो तीरभुक्ति पडल छल कहियो। नदीमे सप्तगण्डकी आ सप्तकौशिकीक उल्लेख अछि आ एकर स्त्रोत नेपालमे अछि। आब दुनू नदीकेँ नियंत्रित करबाक हेतु कोशी आ गंडक योजना बनल अछि आ आन-आन नदीकेँ पालतु बनेबाक प्रयास भऽ रहल अछि।
मिथिला भूमिक बनावट एकरा कैक अर्थमे सुरक्षा प्रदान करैत छैक। एक दिसि हिमालय पर्वत छैक तँ तीन दिसि नदी आ तैं एहिठामक लोक किछु विशेष स्वभावक होइत छथि जकर संकेत विद्यापतिक पुरूष परीक्षामे अछि। नदीक पूजा एहिठाम ओहिना होइछ जेना कोनो देवी देवताक आ सभ नदीक पूजाक गीत सेहो उपलब्ध अछि। पावनि तिहारपर नदीमे स्नान करब आवश्यक बुझना जाइत अछि। अक्षय-तृतीया (वैशाख शुक्ल)क दिन नदीमे स्नान करबाक परम धार्मिक मानल गेल अछि। मिथिलाक लोग अपन देश, संस्कृति, भाषा आ संस्कारक प्रति बड्ड कट्टर होइत छथि। भौगोलिक दृष्टिये मिथिलाक क्षेत्र एकटा राजनैतिक इकाइक रूपमे प्राचीन कालहिंसँ बनल रहल अछि आ तैं एकर सांस्कृतिक वैशिष्टय अखनो बाँचल छैक।
v.मिथिलाक निवासीः- जे केओ मिथिला अथवा मैथिल संस्कृतिसँ अपरिचित छथि हुनका ‘मिथिला’सँ मात्र मैथिल ब्राह्मणक बोध होइत छन्हि परञ्च इ बोध हैव भ्रामक थिक, कारण मिथिला एकटा भौगोलिक सीमाक द्योतक थिक आ ओहि सीमाक अंतर्गत रहनिहार प्रत्येक ओहि भौगोलिक इकाइक अंग भेलाह चाहे हुनक जाति, वर्ण, अथवा वर्ग जे हो। मिथिलाक रहनिहार प्रत्येक व्यक्ति मैथिल कहौता एहिमे कोनो संदेह नहि रहबाक चाही। धार्मिक क्षेत्रक प्रधान आ आध्यात्मिक रूपें प्रभुत्व रहलाक कारणें ब्राह्मणक प्रधानता रहलन्हि आ लगातार ७००–८०० वर्ष ब्राह्मण राजवंशक शासन रहबाक कारणें ब्राह्मणक राजनैतिक महत्व सेहो बनल रहल। इ फराक कथा जे सामान्य ब्राह्मण गरीब छथि परञ्च इ बातक सोंच जे ब्राह्मणक राज्य रहलासँ राजनीतिमे ब्राह्मणकेँ विशेष प्राधिकार भेटलन्हि आ ओ लोकनि सामंतवादी युगसँ अद्यावधि सभ क्षेत्रमे नेतृत्व केलन्हि। स्मरणीय जे आनवर्णक तुलनामे मिथिलामे ब्राह्मणक जनसंख्या बहुत कम अछि।
ब्राह्मणक अतिरिक्त मिथिलामे क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र (सभ प्रकार), कायस्थ, मुसलमान, इसाइ आदि सब वर्णक लोग रहैत छथि। मिथिलाक विशाल क्षेत्रमे सूरी, तेली, कलवार, यादव, राजपूत, वर्णसँ कम धनी आ शक्तिशाली नहि छथि। मिथिलामे कतेक वर्णक लोग मध्य युगमे रहैत छलाह तकर विश्लेषण ज्योतिरिश्वर ठाकुरक वर्णरत्नाकरसँ भेटैछ। मुसलमानोमे सैयद, पाठान, मोमिन, शेख, आदि शाखा सम्प्रदायक लोगक वास छन्हि। जमीन्दारमे ब्राह्मणक अतिरिक्त, भूमिहार ब्राह्मण, राजपूत, आ यादव लोकनि एक्को पैसा कम नहि छथि। यत्र-तत्र कायस्थ लोकनिकेँ सेहो जमीन्दारी छलन्हि मुदा ओ लोकनि आब विशेषतः कलमफरोसीमे रहि गेल छथि। मिथिला क्षेत्रमे मुसलमानो जमीन्दार कैकटा छलाह।
वर्गक हिसाबे मिथिलामे मूलरूपेण दूटा वर्ग अछि–गरीबक वर्ग आ धनिकक वर्ग। जे केओ धनमान छथि (चाहे जाति कोनो होहि) ओ धनी वर्गमे छथि–आ गरीबक वर्ग। दुनू वर्गक बीच संघर्ष चलि रहल अछि। जमीन्दारी उठलाक उपरांत इ संघर्ष आ तीव्र भऽ गेल अछि कारण आर्थिक हिसाबें मिथिला तुलनात्मक दृष्टिये विशेष शोषित आ पीड़ित अछि। उत्तर भारतक अन्नागारक पदवीसँ विभूषित रहितहुँ मिथिलाक सामान्य लोगकेँ अहुँखन पावभरिक अन्न आ पाँच हाथक वस्त्र नहि भेटइत छैक आ ओ अपन पेट भरबाक लेल चारू कात बौआइत रहैत अछि। मिथिलाक निम्नवर्गक सामाजिक श्रृखंला करीब-करीब टुटि चुकल अछि आ ओ शोषण यंत्रमे नीक जकाँ पीसा रहल अछि। इ स्थिति आब क्रांतिक आह्वान जहिया करे।
मिथिलाक उत्तरी आ उत्तर-पूर्वी सीमापर इण्डो-मंगोलाइड जातिक लोग सेहो बसैत छथि जे थारू कहबैत छथि। हुनका लोकनिकेँ रहन-सहन अहुँखन पुराने छन्हि यद्यपि ओ लोकनि परिश्रम करबामे ककरोसँ कम नहि छथि। शूद्रमे शुद्ध आ अशुद्ध (अछूत) दुनू तरहक लोग अबैत छथि। डोम, चमार, दुसाध, मुशहर, हलालखोर, धानुक, अमार्त, केओट, कुरमी, कहार, कोइरी आदि सेहो पर्याप्त संख्यामे मिथिलामे बसैत छथि। जनसंख्याक हिसाबे यादव सभसँ आगाँ छथि। दुसाध, कोइरी, चमार, कुरमी आदिक जनसंख्या जोड़ि देलासँ तथाकथित पिछड़ावर्गक जनसंख्या तथाकथित अगुआवर्गक जनसंख्यासँ बेसी अछि। जनगणनाक आधारपर निम्नलिखित जातिक ज्ञान होइछ–
गोप (यादव), ब्राह्मण, राजपूत, दुसाध, कोइरी, चमार, शेख, भूमिहार, कुर्मी, मल्लाह, जोलहा, तेली, कान्दु (कानू), नोनिया, धानुख, मुशहर, तांती, कायस्थ, कमार, हजाम, धुनिया, कुम्हार, धोबी, कलवार, केओट, सोनार, कहार, कुँजरा, सुनरी, पठान, हलवाइ, तमौली, इत्यादि।

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