मिथिलाक आर्थिक इतिहास

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मिथिलाक आर्थिक इतिहास

मिथिलाक आर्थिक अवस्था अति प्राचीन कालसँ अद्यपर्यंत कृषिपर आधारित रहल अछि। प्राचीन कालमे अखन जकाँ जलक अभाव नहि छल। मिथिलाक प्राकृतिक बनाबट किछु एहेन अछि जाहिसँ एहिठाम कृषिक प्रगति नीक जकाँ होइत अछि। वैदिक कालमे खेत जोतबाक, बीआ पारबाक, काटबाआ फसिल तैयार करबाक विस्तृत रूपें उल्लेख भेटइत अछि। पकला उत्तर अन्नकेँ काटल जाइत छल आ तखन ओकरा बोझ बान्हिकेँ खरिहानमे आनल जाइत छल। दाउन होइत छल तकर पश्चात् ओसौनी होइत छल आ तखन ओकरा सरियाकेँ व्यवहारक हेतु राखल जाइत छल। एहि लेल कृषक लोकनिकेँ बड्ड परिश्रम करए पड़इत छलन्हि। नापतौलक आधार छल ‘खाड़ी’। बखारीक उल्लेख सेहो भेटइत अछि। मिथिलामे चाउर, जौ, मूँग, मकई, गहूम, तिल, मसुरी, आदि वस्तु उपजैत छल। जौ के रोपनी शीतकालमे होइत छल आ गर्मी मासमे ओकरा काटल जाइत छल। धानक रोपनी बरसातमे होइत छल आ अगहनमे ओकर कटनी होइत छलैक। अनावृष्टिसँ कृषिकेँ क्षति पहुँचैत छलैक। कीड़ा–मकोड़ासँ सेहो फसिल बर्बाद होइत छल। अन्हर, बिहाड़ि, बसात, अतिवृष्टि आ अनावृष्टिक संगहि टिड्डीक प्रकोपसँ कृषिकेँ धक्का पहुँचैत छलैक। अनावृष्टिसँ अकालक संभावना सेहो रहैत छलैक। सामान्य किसानक स्थिति बढ़िया नहि छल आ हुनका मालिक लोकनिक अत्याचारसँ तबाह होमए पड़इत छलन्हि। कृषकक समूह विशाल होइतहुँ हुनका लोकनिकेँ कोनो विशेषाधिकार नहि छलन्हि आ हुनका लोकनिपर कर्जक बोझ बरोबरि बनले रहैत छलन्हि।
उपनिषदमे जे जनकक बहुदक्षिणा यज्ञक उल्लेख अछि ताहिसँ ई अनुमान लगाओल जा सकइयैजे मिथिला ताहि दिनमे एक समृद्धशाली राज्य छल। राजकोश धन–धान्यसँ अवश्ये भरल होइत अन्यथा एतेक पैघ यज्ञ ओ कइयै कोना सकितैथ। ओहि यज्ञमे हजारोक संख्यामे गाय आ सोनाक दान भेल छल। गाय बड़दपर विशेष ध्यान देल जाइत छल ताहि दिनमे। बृहदारण्यक उपनिषदक अध्ययनसँ बुझि पड़इयै जे मिथिला ताहि दिनमे सुखी सम्पन्न राष्ट्र छल आ ओतए कोनो वस्तुक अभाव नहि छलैक। ओहिमे सामानसँ लदल बैलगाड़ीक उल्लेख सेहो अछि। आवागमनक हेतु रथ एवँ नावक व्यवहार होइत छल। ‘स्वर्णपाद’क व्यवहार एहि बातक संकेत दैत अछि जे ताहि दिनमे सोनाक सिक्काक प्रचलन छल। आर्थिक निश्चिंतताक कारणे देशमे आध्यात्मिक एवँ बौद्धिक विकास संभव भेल छल। मैथिल लोकनि ताहि दिनमे स्वभावसँ शांत एवँ क्रियाशील छलाह। पढ़ब–लिखबपर विशेष ध्यान दैत छलाह तथापि सैनिकक रूपें सेहो ओ लोकनि ककरोसँ कम नहि छलाह आ तीर चलेबामे तँ अग्रगण्ये।
कृषि मनुष्यक मुख्य कार्य छल। लोक सब विशेष कए गामेमे रहैत छल। गाममे ३०–४०सँ लऽ कए १०००परिवार धरि रहैत छल। गामक समीपहि गाछी–बिरछी सेहो रहैत छल। गामक अध्यक्ष अथवा गण्यमान्य व्यक्ति गामभोजक होइत छलाह। गामक हेतु इ सर्वश्रेष्ठ एवम महत्वपूर्ण पद छल। राजाक हेतु कर वसूल करब, कृषि व्यवस्थाक निरीक्षण करब, ग्रामीण झगड़ा–झंझटकेँ फरिछैब हिनका लोकनिक मुख्य कर्तव्य छल। जँ उपजा नहि होइत छल तँ ग्रामीण लोकनिक भोजनक व्यवस्था हिनके करए पड़इत छलन्हि। उपजनिहार खेतमे पहरूदार सेहो राखल जाइत छल। उत्पादनक साधन मूल रूपें धनीमानी लोकक हाथमे छल तैं साधारण कृषकक स्थिति दयनीय रहब स्वाभाविके छल। जँ कोनो कारणे अन्न नहि उपजल तँ हिनका लोकनिकेँ अपार कष्टक सामना करए पड़इत छलन्हि। अकाल पड़बाक उल्लेख प्राचीन साहित्यमे भेटइत अछि। महावस्तुमे एहि बातक स्पष्ट उल्लेख अछि जे वैशालीमे एक बेर भीषण अकाल पड़ल छल। भूखसँ पीड़ित भऽ असंख्यलोक मुइल छल आ मुर्दाक दुर्गन्धसँ समस्त नगरक वातावरण दुर्गन्ध पूर्ण भऽ गेल छल। एहि युगमे बाढ़िक प्रकोपक उल्लेख सेहो भेटइत अछि। गण्डकसँ पूर्वक क्षेत्रमे जलक बाहुल्य रहैत छल। मौर्यकालीन अभिलेखमे अकाल आ अभावक उल्लेख भेटइयै। मिथिलाक अंतर्गत विदेह, वैशाली, चम्पारण, अंगुतराप, पुण्ड्र, कौशिकी कक्ष, आदि स्थान सब कृषिक हेतु प्रसिद्ध छल आ एहि समस्त प्रदेशकेँ अन्नक भण्डार कहल जाइत छल। अंगुतरापक आपण गाम सुखी सम्पन्न छल। खेती करबाक हेतु खेतकेँ छोट–छोट टुकड़ीमे बाटल जाइत छल आ खेतक बीच सबमे आड़ि सेहो होइत छल। मिथिलामे इ प्रथा अद्यपर्यंत अछिये।
ताहि दिन मिथिलामे जमीनपर स्वत्वाधिकारक प्रश्न लऽ कए विद्वानमे मतभेद बनल अछि। अखन जतवा जे साधन उपलब्ध अछि ताहि आधारपर कोनो निर्णयात्मक मतक प्रतिपादन करब कठिन अछि कारण जमीनपर दुनू पक्षक विचारक हेतु सामग्रीक अभाव नहि अछि। व्यक्तिगत रूपें हमर अपन मंतव्य तँ इ अछि जे प्राचीन कालमे औपचारिक रूपें समस्त जमीनक अधिकारी राजा होइत छलाह किएक तँ परम्परागत विचारे ‘सवै भूमि गोपाल की” मानल जाइत छल आ राजा ईश्वरक प्रतिनिधि हिसाबे जमीनक मालिक सेहो होइत छलाह। विद्वान लोकनि तीनटा मत प्रतिपादन केने छथि–व्यक्तिगत, सामूहिकआ राजकीय स्वत्वाधिकार आ तीनू मतक पक्ष–विपक्षमे एक्के रंग तर्क देल जा सकइयै। फाहियान लिखने छथि जे केओ राजकीय जमीन जोतैत छथि हुनका ओहिमे सँ किछु अंश राजाकेँ देमए पड़इत छन्हि। अर्थशास्त्रमे राज्य नियंत्रित कृषि व्यवस्थाक विवरण अछि। जातकमे सामूहिक स्वत्वाधिकारक विवरण भेटइत अछि।
जमीन प्राचीनकालक आर्थिक जीवनक नींव छल जाहिपर समस्त आर्थिक रूपरेखा ठाढ़ छल। जातकमे भोगगाम आ अर्थशास्त्रमे ‘आयुधीय’ गामक उल्लेख भेटइयै। एहि सभक व्याख्या प्रत्येक विद्वान अपना–अपना ढ़ँगे करैत छथि। अर्थशास्त्रमे कौटिल्य कर्मचारीकेँ नगद वेतन देबाक व्यवस्था केने छथि मुदा ‘आयुधीय’ गामक उल्लेख किछु विद्वानकेँ दोसर अर्थ लगैत छन्हि। जखनसँ प्रचुर मात्रामे जमीनक दान शुरू भेल तखनसँ सामंतवादक वीजारोपण सेहो भेल आ भारतक अन्य प्रांत जकाँ मिथिलामे सेहो सामंतवादी प्रथाक विकासक सूत्रपात भेल। सामंतवाद मिथिलामे मध्ययुगमे अपन चरमोत्कर्षपर छल। सामंतवादक प्रभावे जमीनक टुकड़ी–टुकड़ीमे बटब बढ़ए लागल आ बेगार प्रथाक श्रीगणेश सेहो भेल। गुप्त युगसँ जे प्रथा प्रारंभ भेल से मिथिलामे बनल रहल आ सामंतवादी व्यवस्थाक प्रभाव हमरा लोकनिक दैनन्दिन जीवनपर सेहो पड़ल।
सिक्का एवँ कर व्यवस्था:- एहि प्रसंगमे कर व्यवस्था एवँ सिक्काक प्रसंगपर विचार करब अप्रांसगिक नहि होएत। टाका–पैसाक व्यवहार होइत छल अथवा नहि से निश्चित रूपसँ कहब असंभव मुदा वैदिक साहित्यमे हिरण्य, अयस, श्याम, लौह, शीशा, कार्षापण आदिक उल्लेख भेटइत अछि। चानीक टाकाकेँ ‘निष्क’ कहल जाइत छल। सिक्काकेँ कृष्णल, सतमान, हिरण्य, पिण्ड, आ कार्षापण सेहो कहल जाइत छल। ‘स्वर्ण’ सेहो सिक्काक हेतु व्यवहार होइत छल। कतहु–कतहु सिक्काकेँ ‘पाद’ सेहो कहल गेल छैक।
राजाजनक अपन यज्ञमे प्रत्येक गामपर दश–दश ‘स्वर्ण पाद’ लगौने छलाह। ओहिमे प्रत्येक ब्राह्मणकेँ तीन–तीन सतमान सेहो देल गेल छलन्हि। बौद्ध साहित्यमे सेहो एहि हेतु बहुत शब्दक व्यवहार भेल अछि। चानी आ तामाक प्राचीन सिक्का प्रचुर मात्रामे मिथिलाक विभिन्न क्षेत्रसँ प्राप्त भेल अछि–हाजीपुर, चम्पारण, वैशाली, असुरगढ़, गोरहोघाट, पटुआहा, बहेड़ा, जयमंगलागढ़, पुर्णियाँ, बलिराजगढ़, मंगलगढ़ इत्यादि। एहि सभ स्थानसँ तँ घैलक–घैल सिक्का बहराएल अछि। जातक कथामे वस्तुकदाम ‘पण’क माध्यमसँ देल गेल जाइत छल। सिक्काकेँ पण सेहो कहल जाइत छल। साधारणतः सिक्काक तीन नाप छल–२४, ३२ आ ४०रत्ती। ‘पाद’ १००रत्तीक चौथाई भाग होइत छल।
लोककेँ राजाकेँ किछु कर सेहो देमए पड़ैत छलैक। डी. आर. भण्डारकरक अनुसार जनक कालीन आ बौद्धकालीन मिथिलामे “पाद” करक व्यवहार विशेष प्रचलित छल। राजस्व प्रशासनक जे मान्य सिद्धांत छल तदनुसार मिथिलाक शासक लोकनि कर संचय आ ओसूली करैत छलाह। ‘षडभाग’ सिद्धांत तँ सर्वमान्य छल। राजा प्रजाक रक्षा करैत छलाह आ तकरा बदलामे प्रजा राजाकेँ कर दैत छल। ‘कर’क रूपमे जमीनसँ प्राप्त कर सभसँ प्रमुख छल। समाहर्त्ता राजस्व प्रशासक होइत छल। हुनका सहायतार्थ गोप तथा स्थानिक सेहो होइत छलाह। पतञ्जलिक अनुसार क्षेत्रकर नामक एकटा पदाधिकारी महत्वपूर्ण व्यक्ति होइत छलाह जे कृषियोग्य भूमिक सर्वेक्षण कए ओहिपर कर लगेबाक अनुशंसा करैत छलाह। बलि, भाग, भोग, कर, हिरण्य, उदक भाग, उद्रंग, सीतआदि कैक प्रकारक कर होइत छल। एहिमे किछु कर तँ बड्ड कष्टकर छल। उपरोक्त शब्दक विश्लेषण करबामे विद्वान लोकनिक बीच मतभेद छन्हि तथापि उपरोक्त सबटा कर प्रचलित छल सेहो मान्य अछि। एकर अतिरिक्त शुल्क, क्लिप्त, उपक्लिप्त, प्रणय, विष्टी, उत्संग आदि सेहो करेक विभिन्न नाम छल आ इ राजकीय आयक मुख्य श्रोत मानल जाइत छल। इ सब प्रकारक कर मिथिलामे व्याप्त छल आ ओहि ठामसँ प्राप्त शिलालेख आ तत्सम्बन्धी प्राचीन साहित्यमे सेहो एकर उल्लेख अछि।
सामूहिक आर्थिक जीवन:- बौद्ध साहित्यसँ इहो स्पष्ट होइछ जे मिथिलामे मिलि जुलिकेँ रहबाक व्यवस्था आ श्रेणीबद्ध भऽ काज करबाक आदत बहुत पुराण अछि। जातक कथासँ इ ज्ञात होइत अछि जे विदेहक निवासी बंगाल होइत समुद्रक मार्गसँ विदेश जाए व्यापार करैत छलाह। ओ लोकनि एहि हेतु सामूहिक व्यवस्था करैत छलाह–आ नावआ जहाज सेहो बनबैत छलाह। विदेहमे बाहरोसँ व्यापारी लोकनि अबैत छलाह। एहि मानेमे पूर्व–पश्चिम दुनूसँ मिथिलाक घनिष्ट सम्बन्ध छल। आर्थिक जीवनक क्षेत्रमे एहि प्रकारक सामूहिक संगठन लाभदायक सिद्ध होइत छल आ मैथिल लोकनि एहिसँ विशेष लाभान्वित होइत छलाह। बृहदारण्यक उपनिषदसँ एकर प्रमाण भेटइत अछि। सामूहिकताक हेतु गण, व्रात, पूग, संघ, जाति, श्रेणीआदि शब्दक व्यवहार होइत छल। ‘श्रेणी’ मूलतः व्यापारी लोकनिक संगठन छल। व्यापारी लोकनि वणिक कहबैत छलाह। व्यापारक संचालनक हेतु व्यापारी लोकनि अपन ‘श्रेणी’आ संघ बनबैत छलाह। किछु गोटए एकरा गणक संज्ञा सेहो दैत छथि। रामायण–महाभारतमे सेहो व्यापारी संघक उल्लेख भेटइत अछि। रामायणमे ‘नैगम’ शब्दक व्यवहार भेल अछि। वैदिक साहित्यक ‘श्रेष्ठी’आ उपनिषदक ‘श्रेष्ठिन’ शब्दो सेहो सामूहिकताक परिचायक थिक। मनु आ पाणिनिमे सेहो श्रेणी शब्दक उल्लेख अछि।
बौद्ध साहित्य तँ श्रेणी शब्दसँ भरले अछि। लोहार, सोनार, कुम्हार, तेली, व्यापारी, मछुआ, कमार इत्यादि लोकनिक अपन अलग–अलग श्रेणी होइत छलैक। हुनका लोकनिक अपन नियम कानून सेहो भिन्ने छलन्हि। ओ लोकनि अपन नियम अपने मिलिकेँ बनबैत छलाह। हिनका लोकनिक मध्य जे कोनो मतभेद होइत छलन्हि तँ ओकरो निपटारा ओ लोकनि अपन संघेक द्वारा करैत छलैथ। संघ श्रेणीक प्रधान लोकनिकेँ राजदरबारमे समादर होइत छलन्हि आ कानून इत्यादि बनेबा काल हुनका लोकनिक राय–विचार लेल जाइत छलन्हि। मिथिलाक महत्वक वर्णन एहि दृष्टिकोणे महाउमग्ग जातकमे अछि जाहिसँ ई ज्ञात होइत अछि जे नगरक चारू कोनमे निगमक संगठन छल।
श्रेणीक प्रधानकेँ प्रमुख, प्रधान, जेट्ठक अथवा सेठी कहल जाइत छलैक। कमार, सोनार, लोहार, मालाकार, ताँती, कुम्हार आदि सभ वर्गक अपन–अपन प्रधान होइत छलैक। श्रेणीक अंतर्गत काज केनिहार पदाधिकारीक वेतन इत्यादि श्रेणीसँ देल जाइत छलैक। समय–समयपर राजा श्रेणीक प्रधानकेँ विचार–विमर्श करबाक हेतु बजबैत छलथिन्ह। व्यापारी वर्गक प्रतिनिधिकेँ बरोबरि राजदरबारसँ सम्पर्क राखे पड़इत छलैक। श्रेणीकेँ बहुत रास वैधानिक अधिकार सेहो प्राप्त छलैक। सामूहिक जीवनक सभसँ पैघ प्रमाण हमरा वैशालीक उत्खननसँ प्राप्त अवशेष सबसँ भेटइत अछि। सार्थवाह, कुलिक, निगम आदि शब्दक व्यवहार ओहिठाम प्रचुर मात्रामे भेल अछि। नगर शासनमे हिनका लोकनिक बड्डपैघ हाथ छलन्हि। ओहिठामक बहुत मुद्रापर “श्रेष्ठी निगमस्य” उल्लिखित अछि आ ओहिपर बहुत गोटएक नाम सेहो भेटइत अछि–जेना हरि, उमा भट्ट, नाग सिंह, सालिभद्र, धनहरि, उमापालित, वर्ग्ग, उग्रसेन, कृष्ण दत्त, सुखित, नागदत्त, गोण्ड, नन्द, वर्म्म, गौरिदास इत्यादि–इ सभ गोटए कुलिक छलाह। सार्थवाहमे डोड्डकक नाम आ श्रेष्ठिमे षष्ठिदत्त आ श्रीदासक नामक उल्लेख अछि। बेगूसरायसँ प्राप्त एकटा माँटिक मुद्रापर ‘श्री समुद्र’आ दोसरपर ‘सुहमाकस्य’ लिखल भेटइत अछि। वैशालीमे बैकिंग प्रथाकेँ चालू रखबाक श्रेय हिनके लोकनिकेँ छन्हि आ वैशाली व्यापारी एवँ सम्पत्तिधारी लोकनिक केन्द्र छल। एहि युगमे मैथिल लोकनि अपन आश्चर्यकारी साहसिक भावनाक परिचय देने छलाह।
उद्योग– व्यापारक स्थानीयकरणक कारण श्रेणीकेँ बल भेटल छलैक आ व्यापारक उत्कर्षक कारणे सेट्ठी लोकनिक उत्थान भेल छल। अपन संगठनकेँ मजबूत कऽ कए रखबाक आवश्यकता अहू लेल छलैक जे हुनका लोकनिपर कोनो–कोनसँ कोन प्रकार घातक आक्रमण नहि आ हुनका लोकनिक स्वार्थपर आँच नहि आबे। सामूहिकताक भावनासँ जे बल भेटइत छैक तकर अनुभव ओ लोकनिक लेने छलाह आ ओकर लाभकेँ देखि चुकल छलाह। हुनक संगठित शक्तिकेँ नजरअन्दाज आब शासको नहि कऽ सकैत छलाह। प्रत्येक व्यवसायक पृथक–पृथक संघ छल। मुग्ग–पक्क–जातकमे १८टा श्रेणी (गिल्ड)क उल्लेख अछि। रमेश मजुमदार २७टा श्रेणी (गिल्ड)क उल्लेख केने छथि। एकटा जातकमे मिथिलाक चारिटा श्रेणीक उल्लेख अछि। श्रेणी कैक प्रकारक अर्थ व्यवस्थाक सहायक छलः–
i)बैंकिंग प्रणालीकेँ जीवित राखब।
ii) सब तरह वस्तुकेँ न्यास रूपमे सुरक्षित राखब।
iii) कर्ज देबाक व्यवस्था करब।
iv) अपना क्षेत्रक अंतर्गतक भूमिक व्यवस्था करब।
v) राजस्व ओसुलीक काजमे सहायता देब।
vi)आपसमे सद्भावना बनाके राखब।
vii) अपना सदस्यक दिसि ठीका, पट्टा इत्यादि लेबाक व्यवस्था करब।
viii) बिक्री व्यवस्थाकेँ नियमित करब।
ix) अपना सदस्यकेँ अनुशासित राखब आ समय–समयपर सामयिक कर लगाएब।
x) सामूहिक कार्यक व्यवस्था करब।
xi)आवश्यक वस्तुजात पैदा करब।
xii) विज्ञापन प्रसारित करब।
xiii)आवश्यकता भेलापर स्थानीय तौरपर व्यवहारक हेतु सिक्का बाहर करब।
श्रेणीकेँ समाज आ राज्यमे प्रतिष्ठित स्थान प्राप्त छलैक। जातकक अनुसार भाण्डागारिकक कार्यक्षेत्र श्रेणीक निरीक्षण धरि सीमित छल। श्रेणीक नियमक मान्यता राजाकेँ देमए पड़इत छलन्हि। प्राचीन कालक सामूहिक जीवनमे एकर विशेष महत्व छलैक आ जातकक अनुसार मिथिलामे सेहो श्रेणीबद्ध सामूहिक जीवनक प्रमाण भेटइत अछि।
व्यापार एवँ उद्योग:- अति प्राचीन कालसँ मिथिलामे उद्योग आ व्यापारक काफी प्रगतिभेल छल। मिथिला चारू कात नदीसँ घेरल अछिये आ तैं आवागमनक कोनो असुविधा कहियो रहबे नहि केलैक। विदेहसँ तक्षशिला धरि राजमार्ग बनले छल। जातक सभ तँ मिथिलामे उद्योग–व्यापार सम्बन्धी कथा सभसँ भरल अछि। विदेहमे बाहरोसँ व्यापारी अवइत छलाह आ चीज बिक्रय करबाक हेतु श्रावस्तीक व्यापारी वैशाली आ विदेह मुख्य व्यापारक मार्गपर छल। राजगृह, कौशाम्बी, पाटलिपुत्र, वैशाली, कुशीनगर, कपिलवस्तु, श्रावस्ती आ मिथिलाक बीच आवागमनक मार्ग प्रशस्त छल। कश्मीरसँ होइत गाँधार धरि मिथिलासँ सोझे एक सड़क अबइत छल जकरा मिथिलासँ उज्जैन, बनारस, चम्पा, ताम्रलिप्ति, कपिलवस्तु, इन्द्रप्रस्थ, शाकल, कुशावती, पाटलिपुत्र आदि स्थानक सड़कसँ सम्बन्ध छल। सामुद्रिक व्यापारकेँ इ लोकनि बड्ड महत्व दैत छलाह आ समुद्रमे चलए बला जहाजकेँ ‘वाहनम्’ कहैत छलाह। मैथिल लोकनि दक्षिणी चीनमे अपन एक साँस्कृतिक उपनिवेश सेहो बसौने छलाह आ ओतए किछु स्थानक नाम विदेह आ मिथिला सेहो रखने छलाह। रामायणमे वैशालीकेँ उद्योग व्यापारक केन्द्रक संगहि एकटा बन्दरगाह से कहल गेल अछि। चीन, तिब्बत आ नेपालक संग मिथिलाक व्यापारिक सम्बन्ध छल।
सूती कपड़ाक कारबार ताहि दिनमे मिथिलामे बेसी होइत छल। बौद्ध साहित्यक अध्ययनसँ एहि पक्षपर विशेष प्रकाश पड़इयै–तंतु, ताँती, तंतभण्ड, तंत–वित्थनम्आदि शब्द ताँतीसँ सम्बन्धित काजक संकेत दैत अछि। मिथिलाक ‘कोकटी’ अखनहुँ प्रसिद्ध अछि आ तखनहुँ प्रसिद्ध छल। एकर अतिरिक्त मिथिलाक मुख्य उद्योगमे अवइत अछि चीनी, तेल, हड्डीपर कैल काज, धातु उद्योग, चमड़ा उद्योग, माँटिक बर्तनक उद्योग, वेंत, तारक पातक बनल वस्तु, सिलाई–फराई, इत्यादि। जहिना आई इ सब वस्तुक हेतु मिथिला प्रसिद्ध अछि तहिना प्राचीन कालहुमे छल। कुसियारक चर्च तँ तेरहम शताब्दीक तिब्बती यात्री सेहो कएने छथि। ढ़ोल, बाजा, आ अन्यान्य छोट–मोट उद्योगक निर्माण सेहो मिथिलामे होइत छल। युद्ध कालीन अस्त्र–शस्त्र सेहो बनैत छल आ कहल जाइत अछि जे लिच्छवीक विरूद्ध युद्ध शुरू करबाक कालमे अजातशत्रु रथ मूसल आ ‘महाशील कांतार’ सन यंत्रक व्यवहार केने छलाह। लिच्छवी लोकनि कुंकुम आ सुगन्धित द्रव्यक व्यापार करैत छलाह। कमार लोकनि काठपर तरह–तरहक कलाकारी करइत छलाह आ पाथर धातुक माला सेहो बनबैत छलाह। माँटिक सौन्दर्यपूर्ण वासन आदि बनैत छल आ ओहिपर तरह–तरहक पालिश आ कलाकारी होइत छल। माँटिक बासन एकटा कारी चमकैत पालिश होइत छल जकरा “नादर्न ब्लैक पालिश्ड वेयर” कहल जाइत छलैक आ जे समस्त भारतमे एकर माँग छल। मिथिलाक विभिन्न क्षेत्रसँ इ प्रचुर मात्रामे प्राप्त भेल अछि।
मिथिलामे कपूर, चानन, नोन, रेशमी, ऊन, अफीम, कागज, सोना, तामा, पाथर, चूना, आदि वस्तु बाहरसँ मंगाओल जाइत छल। व्यापारिक दृष्टिकोणसँ मिथिलाक सम्पर्क पूबमे ताम्रलिप्ति आ पश्चिममे भरूकच्छसँ छलैक। मिथिलासँ सभ प्रकार अन्न, दलहन आदि वस्तु बाहर जाइत छल। फल फलिहारी से बाहर पठाओल जाइत छल। व्यापारक दृष्टिकोणे निम्नलिखित पथ महत्वपूर्ण छल–
i) मिथिला–राजगीर
ii) मिथिला–श्रावस्ती
iii) मिथिला–कपिलवस्तु
iv) विदेह–पुष्कलावती
v) मिथिला–चम्पा
vi) मिथिला–सिन्धु
vii) मिथिला–प्रतिष्ठान
viii) मिथिला–ताम्रलिप्ति
ix) मिथिला–नेपाल–तिब्बत
स्थल मार्गक अतिरिक्त इ लोकनि समुद्र मार्गक व्यवहार सेहो करैत छलाह। गण्डकसँ गंगा आ चम्पाक मार्ग बाटे इ लोकनि ताम्रलिप्ति धरि पहुँचैत छलाह आ ओहिठामसँ सुवर्ण भूमि आ अन्यान्य स्थानपर जाइत छलाह। जातकक कथासँ इ ज्ञात होइछ जे सिन्धुक घोड़ाक व्यवहार मिथिलामे होइत छल आ सिन्धुक सम्पर्क भेलासँ मिथिलाक व्यापारिक सम्बन्ध पश्चिमोसँ घनिष्ट हैव बुझि पड़इयै। भारतक व्यापारी लोकनि वेविलोन धरि जाइत छलाह तैं संभव जे मैथिल व्यापारी सिन्धु बाटे आन व्यापारी सब संग ओम्हर जाइत होथि। प्रशस्त स्थल आ समुद्र मार्गक कारणे मिथिलाक व्यापारिक प्रगति अपन उत्कर्षपर छल आ जातक एकर सबूत अछि। (एहि विषयपर विस्तृत अध्ययनक हेतु देखु–मुहम्मद अकीकक लिखल–“इकोनौमिक हिस्ट्री आफ मिथिला”)।
मौर्य युगकेँ मंगलकारी राज्यक युग कहल गेल छैक। एहि युगमे जनताक सर्वांगीण आर्थिक जीवनक नियंत्रण राज्यक माध्यमसँ होइत छल। खान इत्यादिपर राज्यक प्रभुत्व छल। राज्यक जमीन आ कृषि कार्यक निरीक्षणक हेतु अधीक्षक नियुक्त होइत छलाह। राज्यक प्रत्येक विभागक हेतु अलग–अलग निरीक्षक रहैत छलाह। राज्यक दिसिसँ कृषिकेँ विशेष महत्व देल जाइत छलैक आ जनकल्याणकेँ ध्यानमे राखि इ स्वाभाविको छल। बंजर जमीन सभमे खेती करबाक हेतु शूद्र लोकनिकेँ बसाओल जाइत छलैक। पुरोहित आ विद्वान ब्राह्मण लोकनिकेँ दानमे जमीन भेटइत छलैक। सिंचाई–पटौनी आ मालक व्यवस्था राज्यक दिसिसँ होइत छलैक। प्राकृतिक उपद्रवसँ बचबाक हेतु राज्यक दिसिसँ सब प्रबन्ध होइत छल। गाम सभमे सहयोग समितिक व्यवस्था सेहो छल आ केओ एहिमे सम्मिलित नहि होइत छलाह हुनका दण्डित कैल जाइत छल। उद्योग, व्यापार आ वाणिज्य सेहो प्रगतिक पथपर छल। प्रशस्त राजमार्गक व्यवस्थासँ व्यापारक प्रगतिमे सहायता भेटइत छलैक। बाजारमे निर्धारित मूल्यपर सब वस्तुक बिक्री होइत छल आ मूल्य नियंत्रण आ वेतन निर्धारणक सिद्धांतक प्रतिपादन आइसँ २३००वर्ष पूर्व कौटिल्य केने छलाह। जे केओ राज्यकर देबामे असमर्थ छलाह हुनका ओहि बदलामे बेगारी करए पड़ैत छलन्हि। व्यापारीकेँ पूर्ण मात्रामे कर देमए पड़इत छलन्हि।
गुप्त युगमे कोनो विशेष परिवर्त्तन देखबामे नहि अवइयै। कृषि, उद्योग, व्यापारक प्रगति अहुयुगमे भेल। वैशालीसँ प्राप्त मुद्रा एहि युगक आर्थिक जीवनपर प्रकाश दैत अछि। फाहियान आ हियुएन संगक यात्रा विवरणसँ इ ज्ञात होइछ जे मिथिलाक आर्थिक अवस्था ओहि युगमे बेजाय नहि छल। एहि युगमे सामंतवादी प्रथाक विकास भेल। लोककेँ आब जमीन्दारी प्रथाक अनुभव होमए लागल छलन्हि। जनताक विशिष्ट समूह अहुखन गामेमे बसैत छल आ कृषि आजीविकाक प्रधान आधार छल। ‘कर’क मात्रामे हेर–फेर आब जमीनक अनुसारे हैव प्रारंभ भेल। जाहिठाम पटौनीक व्यवस्था छल ताहिठाम कर बेसी लगैत छलैक आ वंजर जमीनक कम। हियुएन संगक अनुसार एहिठामक किसान परिश्रमी होइत छलाह आ अधिक अन्न उपजबैत छलाह। जमीन मूलरूपसँ तीन भागमे बाँटल जाइत छल–
i) गोचर–जाहिमे भिन्न प्रकारक घास उपजैत छल।
ii) बंजर–कोनो प्रकारक उपजा नहि होइत छल।
iii) उपजाऊ।
हाटक व्यवस्था सेहो प्रारंभ भऽ गेल छल। हाटक निरीक्षणक हेतु ‘हट्टपति’ नामक एकटा अधिकारी सेहो नियुक्त होइत छलाह। ब्राह्मणआ क्षत्रियकेँ कर रहित जमीन दानमे भेटइत छलन्हि। एहि युगमे जमीन छोट–छोट टुकड़ामे बँटि चुकल छल। भूमि नापबाक प्रणाली प्रचलित भऽ चुकल छल आ गुप्तयुगमे एकरा कुलवाप्य कहल जाइत छल। अन्न नापबाक प्रणाली सेहो प्रचलित भऽ चुकल छल आ ओकरा ‘द्रोण’ कहल जाइत छलैक। खेतीबारी हरसँ होइत छल।
एहि युगमे व्यापारक प्रगति सेहो खूब भेल छल। एहियुगमे बहुतो गोटए मिथिलासँ काशी जाइत छलाह। सिक्काक रूपमे कौड़ीक प्रचलन सेहो भऽ चुकल छल। लहना–तगादाक वेश बढ़ल–चढ़ल छल आ सूदक दर ९% सँ १२% धरि छल। भोजन वस्त्रक सामग्री एकठामसँ दोसर ठाम पठाओल जाइत छल। कैक प्रकारक आभूषण बनाओल जाइत छल। एक स्थानसँ दोसर स्थान सामान बैलगाड़ी आ नावपर पठाओल जाइत छल। आ सभपर चूंगीकर सेहो लगैत छलैक। एक बैलगाड़ीपर बीस बोझसँ बेसी सामान लदलासँ दू टाका शुल्क लगैत छल। किराना वाला बैलगाड़ीपर एक टाका शुल्क लगैत छल। कथा सरित्सागरसँ ज्ञात होइत अछि जे काशीक चारूकात रस्ताक जाल बिछाओल छल। पुण्ड्रवर्द्धनसँ पाटलिपुत्र धरि मिथिले बाटे रस्ता छल। एहि सबसँ स्पष्ट होइछ जे प्राचीन मिथिला सब तरहे सम्पन्न छल। आ देश–विदेशसँ ओकर सम्पर्क बनल छलैक। सामान्य मनुक्खक जीवनमे कोनो विशेष परिवर्त्तन नहि भेल छलैक। धनी लोकनि अपना धनकेँ गारिकेँ रखैत छलाह।
मध्ययुगीन मिथिलाक आर्थिक इतिहासक जनबाक हेतु साधनक अभाव अछि तथापि तत्कालीन साहित्यक अध्ययनसँ हमरा लोकनिकेँ पर्याप्त ज्ञान प्राप्त होइछ। ज्योतिरीश्वरक वर्णरत्नाकरमे एहि युगक आर्थिक स्थितिक विवरण भेटइत अछि। ओहि ग्रंथसँ इ प्रतीत होइछ जे ताहि दिनमे मिथिलाक ग्रामीण स्वर प्राञ्जल भऽ उठल छल। चाउर, जौ, विभिन्न प्रकारक दालि, बाजरा, मटर, तेलहन, कुसियार, रूई, पिआज, लहसून, दाना इत्यादि मिथिलामे प्रचुर मात्रामे उपजैत छल। चूड़ा आ चाउरक भूजाक उल्लेख सेहो भेटइत अछि। सोआ, मेथी, मंगरैल आ सोंफक खेती सेहो होइत छल। आम, खजूर, नेमो, नारंगी, अनार, अंजीर, जामून, कटहर, सपाटु, लताम, पपीता आदि फलक उल्लेख सेहो भेटइत अछि। चूड़ा दहीक प्रथा विशेष प्रचलित छल। अन्न रखबाक हेतु बखारी बनैत छल। चीनी आ गूड़क प्राचुर्य छल। एहिठामसँ मधु नेपाल जाइत छल। ताड़ी–दारू सेहो बनैत छल। महुआक दारू बड्ड प्रचलित छल। पानक बड़का व्यवसाय मिथिलामे होएत छल। पान लगेबाक विधिपर ज्योतिरीश्वरतँ विभिन्न प्रकारक विधानो बतौने छथि। ओहिमे तरह–तरहक मशाला पड़इत छलैक आ ओ सभ मशाला देशक विभिन्न भागसँ मँगाओल जाइत छलैक।
तीस प्रकारक वस्त्रक वर्णन ज्योतिरीश्वर स्वयं कएने छथि। दामी वस्त्रक अंगपोछा बनैत छल। ओ रंगरेज आ मुशहरीक उल्लेख सेहो कएने छथि। विभिन्न प्रकारक धातुसँ अनेकानेक प्रकार बासन–बर्त्तन बनैत छल। वर्णरत्नाकरमे अष्ट धातुक उल्लेख सेहो भेल अछि लोहा आ अन्यान्य धातु गलेबाक कलामे मैथिल निपुण होइत छलाह। एहिठामक लोहार लोहा गलाकेँ हर, खुरपी, कैंची, चक्कू, कुरहड़ि आदि बनबैत छलाह। खपरैल घरक उल्लेख सेहो भेटइत अछि। कमार लोकनि काठक अनेको वस्तु बनबैत छलाह। ज्योतिरीश्वर ३६प्रकार शस्त्रास्त्रक उल्लेख केने छथि।
वर्णरत्नाकरसँ ज्ञात होइछ जे मैथिल लोकनि तंजोर, सिलहट, अजमेर, काँची, चोलप्रदेश, कामरूप, बंगाल, गुजरात, काठियावाढ़, तेलंगना, आदि स्थान सभसँ अपन वस्त्र मंगबैत छलाह। ओहिमे श्रीखण्ड, मलय आ सूरतक उल्लेख सेहो अछि। नाव बनेबामे मैथिल लोकनि सिद्धहस्त छलाह। एकर विवरण धर्मस्वामी सेहो उपस्थित केने छथि। नाव सबमे सिंह, बाघ, घोड़ा, बत्तक, साँप, माँछ आदिक चेन्ह रहैत छल। नाव बनेबामे मैथिल लोकनि अपन सौन्दर्यबोधक परिचय दैत छलाह।
स्वास्थ्यपर सेहो विशेष ध्यान देल जाइत छल। मिथिला ताहिदिनमे दूध दहीक हेतु प्रसिद्ध छल आ ओहिठाम लोग स्वस्थ होइत छल। देहक श्रृंगारक संग देहक सेवाक विन्यास सेहो छल। देह मालिश कएनिहारकेँ मरदनिया कहल जाइत छलैक। भोजनमे गरम मशालाक प्रयोग होइत छल। आ शरीरक सौन्दर्यक हेतु अगुरू, कर्पूर आदिक व्यवहार प्रचुर मात्रामे होइत छल। जीवनक एहन कोनो अंश अथवा सौन्दर्य सामग्रीक एहेन कोनो अवयव नहि जकर उल्लेख वर्णरत्नाकरमे नहि हो। पंचशायकमे एक दिसि स्त्रीक प्रसाधनक सभ विषयक वर्णन अछि तँ दोसर दिसि परिवार नियोजन आ गर्भ निरोधक तकक विधि लिखल अछि। कामसूत्रसँ कोनो अंशमे एहि ग्रंथक महत्व कम नहि अछि। ज्योतिरीश्वरक वर्णरत्नाकर, पंचशायक आ विद्यापतिक कीर्तिलता एवँ लिखनावली पढ़लासँ बहुत बातक ज्ञान होइछ।
विद्यापतिक लिखनावलीसँ इ ज्ञात होइत अछि जे राजस्वकर सेहो वसूल होइत छल। भूमि नपबाक उल्लेख सेहो ओहिमे अछि। दानपत्रक सूची सेहो राखल जाइत छल। एहि ग्रंथमे ऋण–पत्र, खेती–व्यवस्थापत्र, बन्धकी–व्यवस्थापत्र आदिक विवरण भेटइत अछि। दानवाक्यावलीमे राहरि, साठी आ लतामक चर्च अछि आ ओहिमे कैक प्रकारक वस्त्रक उल्लेख सेहो भेल अछि–कार्पासिक वस्त्र, समेम वस्त्र, क्षौम वस्त्र, कौशेय वस्त्र, कुश वस्त्र, कृमिज वस्त्र, मृगलोमजवस्त्र, वृक्षावक् संभव वस्त्र आ आविक वस्त्र। कीर्तिलतामे बाजार, हाट, नगर, आदिक विशिष्ट वर्णन अछि। बजारमे पनहट्टा, धनहट्टा, सोनहट्टा, पकवानहट्टा, मछहट्टा इत्यादिक उल्लेख अछि। ओहि ग्रंथमे दरिद्रताक उल्लेख सेहो अछि। तत्कालीन दरिद्रताक विवरण ओहिमे अछि। कीर्तिपताकामे विद्यापति कहने छथि जे राजाक मुख्य कर्त्तव्य होना चाही दरिद्रताकेँ खतम करब। ऋणक उल्लेखो कीर्तिलतामे अछि आ दरिद्रताक विवरण तँ पदावलीक कतेको गीतमे। आर्थिक इतिहासक दृष्टिकोणसँ इ युग अखनो एकटा विशिष्ट अध्ययनक अपेक्षा रखइयै कारण ने तँ उपेन्द्र ठाकुर आ ने मोहम्मद अकीक एहि कालपर कोनो प्रकाश देने छथि। थोड़ बहुत विवरण हम मिथिला इन द एज आफ विद्यापतिमे कैल अछि। मुसलमानी प्रसारसँ आर्थिक जीवनक रूपरेखामे सेहो थोड़ेक परिवर्त्तन भेलैक मुदा तइयो मैथिल अपन कट्टरताक कारणे आन प्रांतक अपेक्षा एहिठाम अपनाकेँ फराके रखलन्हि आ अपन विधि–विधानकेँ यथाशक्ति सुरक्षित सेहो।
मुसलमानी शासन कालमे मिथिलाक आर्थिक जीवनमे कोनो विशेष उल्लेखनीय प्रगति नहि भेलैक अपितु स्थिति यथावते रहलैक। शाहजहाँक समयमे जखन समस्त भारतमे अकालक स्थिति उत्पन्न भेलैक तँ मिथिलो ओहिसँ वाँचल नहि रहल। कास्तकार आ सामान्य किसानक स्थिति बड्ड दयनीय भऽ गेलैक। तिरहूतमे ताहि दिनमे बंजारा लोकनिक उपद्रव जोरपर छल। बरनिअरक यात्रा विवरणसँ ज्ञात होइछ जे बंजारा समस्या उभरिकेँ ऊपर आएल छल आ ओकरा दबेबाक हेतु संगठित प्रयास भऽ रहल छल। कृषक लोकनिक स्थिति बदत्तर भऽ गेल छल आ औरंगजेबक परोक्ष भेलापर तँ स्थिति आर चिन्तनीय आ दयनीय भऽ गेल छल। भारतमे अंग्रेज आ अन्यान्य विदेशी लोकनिक कारबार आ व्यापार शुरू भऽ गेल छल आ शोषण प्रक्रियामे एकटा नव गति आबि गेल छलैक। १७५७मे पलासीक लड़ाईक बादक स्थितिकेँ भारतीय अर्थनीतिक इतिहासमे अंधकारपूर्ण कहल गेल अछि। अंग्रेज, मुसलमानी अमला–फैला, हिन्दू–जमीन्दार, बंजारा, सन्यासी सभ मिलिकेँ जनताकेँ लूटबामे लागल छल आ संगहि अपन–अपन जेबी गरम करबामे। देशक चिन्ता ककरोनहि छलैक। चारूकात हाहाकार आ अकालक स्थिति छल। १७५७क पछातिमे मिथिलामे बरोबरि अकाल पड़इत रहल। बेकारीक समस्या उत्पन्न भऽ गेल। कृषि आ उद्योगक स्थिति दिन–प्रतिदिन खसए लागल। तिरहूतक गामक गाम उजार होमए लागल।
१७७०मे बड़का अकाल पड़ल आ ओहिठामक लोग खेती बारी छोड़िकेँ पड़ाए लागल। ओहि वर्षमे दरभंगाक विशेष भागमे चासक कोनो काज नहि भऽ सकल आ स्थिति एहेन भऽ गेल जे १७८३मे दरभंगाक कलक्टर एहि आशयक प्रस्ताव रखलन्हि जे अवध प्रांतसँ खेतिहर मंगाकए दरभंगामे खेतीक व्यवस्था कैल जाइक। एहि अकालक कारण मुजफ्फरपुरक कलक्टरीसँ प्राप्त कागज सभसँ ज्ञात होइछ। हाजीपूरसँ पुर्णियाँ धरि अभूतपूर्व अकाल पड़ल छल। एकर मुख्य कारण इ छल जे सरकार अकारण सभ बातमे हस्तक्षेप करैत छल, आवागमन एवँ यातायातक असुविधा छल आ ताहि दिनमे केओ एहेन योग्य नेता नहि छलाह जे एहि सभहिक निराकरणक कोनो प्रयास करितैथि। एहेन अराजक स्थितिमे जकरा जतए जे हाथ लगैक से सैह करे आ जमीन्दारी अत्याचार आ शोषणक तँ कोनो कथे नहि छल। १७८२मे बाध्य भऽ कए इ नियम बनबे पड़लैक जे बिना अंग्रेजी सरकारक अनुमतिकेँ केओ जमीन्दार अपन जमीनकेँ एम्हर–ओम्हर नहि कऽ सकइयै। वार्थहस्ट्र साहेब १७८७मे तिरहूतक शासक भेला। दरभंगाक महाराज आ इस्ट इण्डिया कम्पनीक बीच एहि प्रश्नकेँ लऽ कए बरोबरि झंझट होइते रहलन्हि (देखु–हमर ‘द खण्डवलाज आफ मिथिला’)। स्थिति एहेन विभत्स भऽ गेल छल जे परगन्ना पचही, आलापुर आ भौरमे किछु उपजावारी नहि होइत छल आ इ सभ जंगलमे परिवर्त्तित भऽ गेल छल। एहि सभ क्षेत्रमे जंगली जानवरक वास भऽ गेल छल। अंग्रेजकेँ अपन राज्यक सुरक्षाक चिंता छलन्हि आ जमीन्दार लोकनिकेँ अपन सम्पत्तिक आ बीचमे पिसाइत छल दरिद्र जनता जकरा हेतु चारूकात अन्हारे अन्हार छलैक। सरकार आ जमीन्दारक अतिरिक्त महाजन लोकनि सेहो निर्दय भऽ कए जनताक पसीनाक कमाई छीन लैत छलैक।
मानव–कृत शोषण यंत्रकेँ साहाय्य देनिहार प्रकृति सेहो छलैक। अतिवृष्टि आ अनावृष्टि तँ अपन रूप देखिबते छल आ ताहिपर नदीक बाढ़ि तँ अपन नङटे नाच देखिबते छल। मिथिलामे नदीक तँ अभाव अछि नहि आ प्रति वर्ष एकर बाढ़ि अखने जकाँ ताहि दिनमे अबैत छल। गंगा, गण्डक, वाग्मती, कमला, कोशी, बलान, करेह, लखनदै आदि नदीक बाढ़ि बरसातमे तीन मास धरि मिथिलाकेँ समुद्रमे बदैल दैत छलैक जाहिसँ एकर आर्थिक जीवन अस्त–व्यस्त भऽ जाइत छलैक। कोशीकेँ तँ सहजहि ‘दुखक नदी’ कहले गेल अछि। एहिसँ सब फसिल नष्ट भऽ जाइत छल, महामारीक प्रकोप बढ़ैत छल आ आवागमन एवँ यातायातक सुविधा लुप्त प्राय भऽ जाइत छल। एहना स्थितिमे बरोबरि अकाल हैव स्वाभाविके–१५५५सँ १९७५धरि मिथिलामे कतेको बेर अकाल पड़ल अछि आ महामारीक प्रकोप बढ़ल अछि–१५७३–७४, १५८३–८४, १५व९५–९६, १६३०, आ अंग्रेजक समय १७७०सँ १९००क बीच १५–२०बेर अकालक दर्शन लोककेँ भेल छलैक। १६३०क अकाल तँ अद्वितीय छल। ओहि साल मिथिलासँ बहुत रास लोगकेँ दोसर ठाम चल गेल छल। मिथिलामे बाढ़ि तँ वार्षिक क्रम जकाँ अबैत अछि आ एहेन शायद कोनो वर्ष होएत जाहिमे बाढ़ि नहि आएल हो। बाढ़ि आ अकाल मिथिलाक आर्थिक इतिहासक एकटा अभिन्न अंग मानल जाइत अछि।
१७७०क अकाल मिथिलाक इतिहासमे अद्वितीय छल आ मिथिलाक जनसंख्या घटिकेँ एक दम्म कम्म भऽ गेल छल। १८७३–७४मे पुनः एकटा ओहने अकाल मिथिलामे भेल छल जकर विवरण हमरा फतुरी लाल कविक अकाली कवितसँ भेटइयै–अकाली कवित अप्रकाशित अछि। अकालकेँ दूर करबाक हेतु आ मजूरकेँ राजे देबाक हेतु ताहि कालकेँ रेलगाड़ीक योजना चलाओल गेल जकरा सम्बन्धमे फतुरीलाल लिखैत छथि–
“कम्पनी अजान जान कलनको बनाय शान।
पवन को छकाय मैदानमे धरायो है॥
छोड़त है अड़ादार बड़ा बीच धाय–धाय।
सभेलोग हटाजात केताजात खड़ा है॥
तारकी अपारकार खबरि देत वार वार।
चेत गयो टिकसदार रेल की उवाई है॥
करत है अनोर शोर पीछे कत लगत छोर।
जोर की धमाक से मशीन की बड़ाई है॥
कम्पूसन पहरदार कोथी सब अजबदार।
कोइला भर करल कार धूआँसे उड़ायो है॥
बाजा एक बजन लाग हाथी अस।
पिकन लाग जैसा जो चढ़नदार वैसाधर पायो है॥
गंगाकेँ भरल धार उतरि गयो फतूर पार गाड़ीकी।
अजबकार कवित्त यह बनाया है”॥
अकाल, अतिवृष्टि, अनावृष्टि, बाढ़ि, अभाव, एवँ प्राकृतिक प्रकोपसँ मिथिलाक आर्थिक जीवन परम्परागत रूपें प्रभावित रहल अछि आ अहुखन अछिये।
अंग्रेजक अमलमे आबिकेँ जखन रेलगाड़ीक सुविधा बढ़ल आ आवागमन एवँ यातायात आ संचार व्यवस्थामे सुधार भेल तखन मिथिलाक आर्थिक इतिहासक रूपरेखामे परिवर्त्तन हैव स्वाभाविक भऽ गेल। उद्योग आ व्यापारक प्रगति सेहो भेल परञ्च ओकरा अखनो पर्याप्त नहि कहल जा सकइयै। प्राचीन कालहि मिथिलामे उद्योग–व्यापार विकसित अवस्थामे छल आ मध्य कालक विशिष्ट भागमे एकर से स्थिति बनल रहलैक मुदा इस्ट–इण्डिया कम्पनीक समयमे आबिकेँ एहिमे थोड़ेक ह्रास अवश्य भेलैक। खाद्य सामग्रीक अतिरिक्त मिथिलाक क्षेत्रमे कुसियार, तम्बाकु आ पाट आ मिरचाई बेस मात्रामे उपजैत अछि एहि लऽ कए मिथिलाक व्यापारो अछि। सब प्रकारक खादीक कपड़ा सेहो एहिठाम बनैत अछि। कोकटीक हेतु तँ मिथिला सर्वप्रसिद्ध अछिये। मिथिलामे व्यापारक प्रसिद्ध केन्द्र छल–हाजीपुर, लालगंज, बगहा, गोविन्दपुर, सतराघाट, दरभंगा, कमतौल, खगड़िया, रोसरा, पूसा, समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर, रानीगंज, नबाबगंज, नाथपुर, साहेबगंज, राजगंज, रामपुर, अलीगंज, खबासपुर, दुलालगंज, कलियागंज, देवगंज, किसनगंज, बहादुरगंज, बारसोई, बेगूसराय, तेघड़ा, दलसिंहसराय इत्यादि। एहिमे नाथपुर तँ अंतराष्ट्रीय व्यापारक मुख्य केन्द्र छल जाहिठाम प्रचुरमात्रामे नेपाली लोकनि सामान लऽ कए अबैत छलाह आ एहिठामसँ सामान लऽ कए जाइत छलाह। अंग्रेजक अमल धरि नाथपुर एक प्रख्यात व्यापारिक केन्द्र छल। १८३६ नारेदिगर आ नाथपुरक सर्वेक्षण अंग्रेज द्वारा कैल गेल जकर रेकर्ड सम्प्रति सुरक्षित अछि। सिन्दूर, कागज, आ अफीमक व्यापार बेस होइत छल। अफीमक कारखाना विदुपुर, लालगंज, दरभंगा, वैगनी नवादा, आदि स्थानमे छल। पाटक कारबार पुर्णियाँ आ सहरसामे सबसँ बेसी होइत छल आ नीलक सम्बन्धमे पूर्ण विवरण हम पूर्वहिं दऽ चुकल छी।
एतवा होइतहुँ मिथिलामे २०म शताब्दीमे कोशीक प्रकोपक बढ़लासँ आर्थिक स्थिति दयनीय भऽ गेल छल। रेलमार्ग सबटा टूटि फाटि गेल, गामक गाम उजरि गेल छल। नाथपुरक व्यापारिक महत्व नष्ट भऽ गेल छल आ जे प्राचीन उपलब्धि आर्थिक दृष्टिकोणे मिथिलाक छल से आब इतिहासक वस्तु बनिकेँ रहि गेल। राष्ट्रीय आन्दोलन आ स्वदेशीक पुनरूत्थानक क्रममे कोकटीक हेतु प्रसिद्ध तिरहूत (मिथिला)केँ पुनः अखिल भारतीय खादीक प्रधान केन्द्र बनाओल गेल आ मधुबनीमे एकर मुख्यालय राखल गेल। बहुत गोटएक गुजर एखनो एहिसँ चलि रहल अछि। १९५५मे कोशीकेँ बन्हबाक प्रयास भेल आ वीरपुरमे कोशी बैरेजक निर्माण भेलासँ दरभंगा, सहरसा, पूर्णियाँ आ उत्तर मूंगेर आ भागलपुर पूर्णतः लाभान्वित भेल अछि। मिथिलामे आ सब नदीकेँ जँ बान्हल आ नियंत्रित कैल जाइक तँ मिथिलाक आर्थिक स्थितिक रूप रेखा बदलि जेतैक। पूर्णियाँ–सहरसा जतबे कष्ट कोशीक कारणे भोगने छल अखन ततबे सुभ्यस्त आ सम्पन्न भऽ गेल अछि। स्वर्गीय ललित नारायण मिश्र जखन रेल मंत्री बनलाह तखन ओ एहि सभ क्षेत्रक टुटल फाटल रेलवे लाइनकेँ चालू करौलन्हि। एहिसँ एहि क्षेत्रक आर्थिक विकासक संभावना आ बढ़ि गेल आ दुर्भाग्यक गप्प इ एहने एक लाइनक उद्घाटनक हेतु जखन ओ ०२/०१/७५केँ समस्तीपुरमे पहुँचलाह तँ ओतए एक संदिग्ध स्थितिमे बम बिस्फोटक कारणे मारल गेलाह।

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