बाबू साहेब चौधरी (२७ अगस्त, १९१६ – २० अगस्त, १९८८)


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(मिथिलाक आन्दोलनी विभूतिक जीवन-दर्शन)
“बाबूसाहेब चौधरी : व्यक्तित्व एवम् कृतित्व”
– राजकुमार झा, मुंबई ।
– जन्म : २७ अगस्त, १९१६
– मृत्यु : २० अगस्त, १९८८
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पश्चिम बंगालक शस्य शयामल भूमि स्थित कोलकाता महानगर एवम् उपनगरमे मिथिला-मैथिलीक आन्दोलनक श्रीगणेश केनिहार मैथिली सेनानी स्व० हरिश्चचन्द्र मिश्र ‘मिथिलेन्दु’ केर उपरांत मैथिली आन्दोलनक तत्कालिन जनक स्व० बाबूसाहेब चौधरीक जन्म २७ अगस्त, १९१६ ई० कें दुलारपुर, दरभंगामे अत्यन्त साधारण परिवारमे भेल छल । साधारण शिक्षा प्राप्त कय यौवनावस्थामे कोलकाता आबि गेलाह आओर एहिठाम “पश्चिम बंगाल परिवहन विभागमे” बसक टाइम कीपरक चाकरी प्रारम्भ कयलनि । स्व० चौधरीजी मिथिला राज्यक प्रबल समर्थकक अलावा मैथिली भाषाके संविधानक अष्टम् अनुसूचिमे शामिल करेबाक संग मिथिलाक सर्वांगीण विकासक लेल सतत् आकुल-व्याकुल रहैत छलाह । मैथिली भाषा केर प्रति हुनकर आकुलता एहिसँ प्रमाणित होइत अछि जे हुनका समक्ष जे कियो हिन्दीमे बजैत छलाह चौधरीजी बेबाक कहैत छलाह हमरा लSग जे कियो हिन्दी बजैत छथि तS लगैत अछि जे करूक तेल टहकाके हमरा कानमे दS रहल अछि । यौवन अवस्थासँ मृत्युपर्यन्त धरि मैथिलीक प्रति हिनकर समर्पण वस्तुतः मिथिला-मैथिली केनिहार मैथिलसेवीक लेल सदैव स्मरण राखल जायत । मैथिली-भाषा, मैथिली साहित्यक विकास, मैथिलीक धरोहरकें सम्मान प्रदान करेबाक प्रति प्रतिबद्धता, हावड़ासँ मिथिला क्षेत्रमे रेलगाड़ीक परिचालन एवम् बड़ी रेललाइन स्थापित करेबाक हिनक संघर्ष व योगदानकें मिथिलावासी सदैव हृदयमे धारण कयने रहत । अपन मनोभावके बिना कोनो राग-द्वेषके व्यक्त करब हुनक प्राकृतिक स्वभाव छल ।

जँ व्यक्तित्व प्रखर हो तS स्वाभाविक रूपसँ सामाजिक जीवनमे काज केनिहार सेनानीकें अमरत्व प्रदान करैत छैक । एहि तथ्यकें चौधरीजी जीवनमे आत्मसात कयने छलाह । कोमल हृदयक धनिक चौधरीक जीवनकें जँ शूक्ष्म बिम्बसँ अवलोकित एवम् अन्वेषित कयल जाय, सहजहिं सादगीसँ सुसज्जित हुनक जीवनक प्रत्येक क्रियाकलाप संगहिं समाजक प्रगतिक प्रति हुनक अकुलाहट स्पष्टतः परिलक्षित होइत अछि । समस्यासँ झमारल कोनो व्यक्ति जँ हुनका समक्ष समाधानक निमित्त उपस्थित होइत छलाह, हुनक हृदय द्रवित भS जाइत छल आ तत्क्षण समाधानक हेतु जी-जान सँ जुटि जाइत छलाह । हुनक इएह स्वभाव हुनका यशस्वी बनेलक तथा प्रत्येक मैथिलक हृदयमे चौधरीजीक यशोगाथा, स्मरणीय बनि हुनकर कृतित्वकें मिथिलाक धरोहरक रूपमे चिन्हित कयलक । एहिसँ प्रमाणित होइत अछि जे चौधरीजीक व्यक्तित्व एवम् कृतित्व, दुहूक मध्य संबंधक स्वरूप अन्योनाश्रय छल ।

सादगी जीवन, गरीबीसँ ग्रसित व त्रस्त झकझोरल जीवनयापनक अभावक उपरान्तहुँ मृत्युपर्यन्त चौधरीजी कोनो अवस्थामे नञि थकलैथि आ नञि हारलैथि । अखिल भारतीय मिथिला संघ केर अभिभावक बनि एवम् नेतृत्व प्रदान करैत संघरूपी हSरक लागैन सदैव पकड़ि मैथिलित्वक अनुपम सेवाभावकें जागृत करैत जगजियार भS गेलैथ स्व० चौधरीजी । स्व० कॉमरेड भोगेन्द्र बाबूक आन्दोलनात्मक छविक स्पष्ट प्रभाव हिनकर व्यक्तित्वक प्रबल आधार बनल । चौधरीजी अपन यौवनावस्थहिंसँ कोलकाता एवम् उपनगरीय क्षेत्रमे मुख्यरूपें मिथिलाक मध्यम वर्गक संग कनहा सँ कनहा मिलाबैत शिक्षा एवम् रोजगार हेतु कयल गेल काज, तत्कालिन मैथिल समाजमे नव ऊर्जाक संचार संचरित कयलक ।

विद्यापति पर्व समारोहक नाम पर कार्यक्रम आयोजित करैत अखिल भारतीय मिथिला संघ केर माध्यमें सभ मैथिलकें एकठाम जुटान करब इएह एकमात्र हुनक उद्वेश्य रहैत छल । चौधरीजी अपन जीवनयापन हेतु आवासस्थली एवम् कर्मस्थली बनेलथि खैलात घोष लेन स्थित मिथिला आर्ट प्रेस नामक प्रेसक स्थापना कयके । हिनक चाकरीक समय मुख्य सहयोगी छलथिन दरभंगा लSग अवस्थित सुन्दरपुर गामक मैथिली अनुरागी स्व० देवनारायण झा । विदित हो कि स्व० देवनारायण झा ओहि समय चौधरीजीक प्रबल समर्थक छलाह एवम् पश्चिम बंगाल परिवहन निगममे कार्यरत छलाह ।

चौधरीजी अपना समयमे कोलकाताक मैथिली आन्दोलनक एकमात्र उदीयमान नक्षत्र छलाह जकर रश्मि किरण समवेतरूपें सर्वत्र प्रक्षालित होइत छल । इएह कारण अछि जे तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री रामेश्वर ठाकुर, डॉ. जगन्नाथ मिश्र, मृत्युंजय मिश्र समेत दिल्ली आओर बिहारक मंत्रीगण, कोलकाता प्रवासक दरम्यान चौधरीजीसँ बिनु भेंट कयने कोलकातासँ नञि ससरैत छलाह । राजनेता नञि मिथिलाक तत्कालीन विशिष्ट साहित्यक हस्ताक्षर सेहो चौधरी साहेबसँ बिनु सम्पर्क कयने कोलकाता यात्राके सफल नञि मानैत छलाह ।

शैक्षणिक योग्यता बेशी नञि रहला उपरान्तहुँ साहित्यक प्रति हुनक अनुराग जगजाहिर अछि । कोलकातासँ प्रकाशित बंगला समाचार पत्र एवम् बंगालक विभिन्न पत्र-पत्रिकाक नियमित पठन-पाठन हुनक दैनन्दिनीक मुख्य चर्या छल । स्व० चौधरीजी डी एल राय द्वारा बंगलामे लिखित नाटक चन्द्रगुप्तकें मैथिलीमे अनुवाद कयलनि जकर नाम चाणक्य रखलनि । चाणक्य नाटकक जखन मंचन भेल छल तखन चाणक्यक भूमिकामे स्वयं चौधरीजी अभिनय कS के प्रमाणित कयलनि जे ओ नाट्य कलाकार सेहो छलाह । चौधरीजी “कुहेस” नाटकक मूल रचना सेहो कयने छलाह । एहिसँ प्रमाणित होइत अछि जे कोनो प्रकारक श्रेष्ठ रचना एवम् साहित्य सृजनक लेल बहुत बरका विश्वविद्यालयक प्रमाण-पत्रक आवश्यकता नञि होइत छैक ।

गरीबी सदिखन हुनका खिहारैत रहल जकर चर्चा हम कS चुकलौं अछि । अंततः गरीबी हुनका पछाड़ियो देलकनि तैंयो गरीबी आओर मैथिली अनुरागक द्वन्दक मध्य गरीबी जखन जीतS लागल, ताहि समय तत्कालीन तथाकथित धन्नासेठ सेहो हुनकर पाँजरिमे ठाढ़ नञि भेलाह । गरीबीसँ पराजित भS चौधरीजी खैलात घोष लेन स्थित प्रेस एवम् आवास एक अदना गैर मैथिल व्यक्तिक हाथे बेचि अपन पैतृक गाम दुलारपुर चलि गेलाह । गरीबीक झमारल द्वन्दमे कियो मैथिल अनुरागी हुनक संग नञि देलक आ बिना कोनो बाह्य व आंतरिक भाव व्यक्त कयने मैथिली अवधूत दृश्यमान जगतसँ अदृश्य भS गेलाह । चौधरीजी आब थाइक सेहो गेल छलाह । शरीर दुर्बल आ कमजोर भS गेल छलनि । संभवतः विधाताक विधानमे हुनक परम शांतिक समय सेहो लगीच आबि गेल छल । २० अगस्त, १९८८ ई० कें अपन पैतृक गाम दुलारपुरमे मैथिल दधीचि एवम् मिथिलाक सम्मानक प्रति जीवन भरि संघर्षरत, मैथिलरत्न अपना पाछां विपुल समाजकें शोकाकुल करैत हमेशाक लेल एहि धराधामसँ महाप्रस्थान कयलनि । हुनक महाप्रस्थानक समाचार सुनितहिं मैथिल समाज स्तब्ध व शोकाकुल भS गेल । हमरा समाजक रत्न हमेशाक लेल विधाताक शरणापन्न भेलाह । जय श्री हरि ।