ओइनवार वंशक इतिहास

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ओइनवार वंशक इतिहास

कर्णाट वंशक परोक्ष भेलापर मिथिलामे ओइनवार वंशक राज्य प्रारंभ भेल। ओइनवार वंशकेँ ‘कामेश्वर वंश’ तथा ‘सुगौना वंश’सेहो कहल गेल छैक। ‘कामेश्वर वंश’ एहि कारणे कि राज पंडित कामेश्वर एहि वंशक संस्थापक छलाह और ‘सुगौना वंश’ एहि कारणे कि सुगौनामे एहि वंशक राजधानी छल। ओइनवार लोकनि ‘खौआड़े जगत्पुर’ मूलक काश्यप गोत्र मैथिल ब्राह्मण रहैथ। हिनक पूर्वजमे जयपति, हुनक पुत्र हिङ्गु आ हुनक पुत्र ओएन ठाकुर छलाह। ओ अत्यंत विद्वान आ परम तपस्वी छलाह आ हुनके कोनो कर्णाट राजासँ ‘ओइनि’ गाम दानमे भेटल छलन्हि। एहि कारणे एहि वंशक नाम ओइनवार वंश पड़ल। ओएन ठाकुरक पुत्र भेला अतिरूप, अतिरूपक पुत्र विश्वरूप, हुनक पुत्र गोविन्द, हुनक पुत्र लक्ष्मण आ लक्ष्मण ठाकुरक छटा पुत्र छलथिन्ह–यथा
१. राज पण्डित कामेश्वर,
२. हर्षण,
३. त्रिपुरे,
४. तेवाड़ी,
५. सलखन,
६. गौड़
ठाम–ठाम एकटा सातम पुत्रक उल्लेख अवइयै जकर नाम रामेश्वर छल। एहि छःमेसँ एक गोटएक वंश अहुखन मालदह जिलामे विराजमान छथि।
एहेन बुझना जाइत अछि जे कर्णाट शासक हरिसिंह देवक पड़ैलाक बाद मिथिलामे कर्णाट लोकनिक सत्ताक ह्रास भेल आ शासनक उलट–फेर बरोबरि होइत रहल। गयासुद्दीन तुगलक शासनक हेतु अपन प्रबन्ध केलन्हि आ हुनक पुत्र मुहम्मद तुगलकक समयमे मिथिला तुगलक साम्राज्यक एकटा प्रांत बनि चुकल छल आ एकरा तुगलकपुर अथवा तिरहूत सेहो कहल जाइत छलैक। १३२३–२४सँ करीब ३० वर्ष धरि एक प्रकारक अव्यवस्था बनल रहलैक। कर्णाट लोकनि अपन सत्ताकेँ पुनः स्थापित करबाक हेतु प्रयत्नशील एवँ संघर्षशील बनल रहलाह मुदा हुनका लोकनिकेँ कोनो सफलता हाथ नहि लगलन्हि आ छिट–पुट भऽ एम्हर–ओम्हरमे बिखैर गेलाह आ यत्र तत्र अपन क्षेत्र बनाकेँ रहए लगलाह। ओम्हर दिल्लीसँ तिरहूतक शासन करब कोनो आसान काज नहि छल कारण पूवसँ बंगालक गिद्ध दृष्टि सेहो मिथिलापर लगले रहैत छलैक आ जहाँ दिल्लीक दिसिसँ कनिओ ढ़िलाइ भेलैक कि बंगाल बाला सब धर मिथिलापर चढ़ि बैसैत छल। इ एकटा एहेन कटु सत्य छल जकरा दिल्ली नकारि नहि सकैत छल। दिल्लीक हकमे मिथिला दिल्लीक अंग बनल रहब सामरिक दृष्टियें महत्वपूर्ण छलैक कारण तखन दिल्ली मिथिलाकेँ अड्डा बनाए बंगालक मुकाबला कऽ सकैत छल। बंगालक हकमे मिथिलाकेँ बंगालक पक्षमे रहब उचित बुझना जाइत छलैक आ तैं बंगाल आ दिल्ली तथा पश्चिमक आन राज्य एहि दृष्टियें मिथिलाकेँ देखैत छल। मिथिलाक शासक लोकनि एहि अवसरसँ लाभ उठाए अपन स्वतंत्रताक सुरक्षार्थ ताकमे रहैथ छलाह परञ्च ओइनवार वंशमे कर्णाट शासक नान्यदेव अथवा हरिसिंह देव सन केओ योग्य आ कुशल शासक नहि भेला तैं एहि मौकाक लाभ उठेबामे असमर्थ रहलाह। शिवसिंह सबसँ योग्य, कर्मठ, एवँ स्वतंत्र प्रेमी व्यक्ति छलाह आ मिथिलाक स्वतंत्रताक रक्षार्थ अपन प्राणक बाजी लगौलन्हि। ओइनवार वंशमे शिवसिंह आ भैरवसिंहक नाम चिर स्मरणीय रहल कारण ओ दुनू गोटए अपना–अपना ढ़ँगे मिथिलाक स्वतंत्रताक रक्षार्थ किछु उठानहि रखने छलाह।
१३२४ आ १३५५क मध्य मिथिलाक श्रृंखलावद्ध इतिहासक अभाव अछि। तुगलक कालमे मिथिला दिल्लीक प्रांत छल आ एकर उल्लेख हम पूर्वहिं कऽ चुकल छी। बंगालकेँ इ बात पसिन्न नहि छलैक आ बंगालक शासक हाजी इलियास शाह सेहो एकटा महत्वाकाँक्षी शासक छल। तिरहूतपर आक्रमण करबाक ओकर मूल उद्देश्य इ छलैक जे ओहि बाटे ओ नेपाल धरि जाए चाहैत छल आ तैं जखन दिल्लीक ढ़िलाई एम्हर देखलक तखन मिथिलापर आक्रमण कए हाजीपुर धरि पहुँचि गेल आ हाजीपुरक स्थापना अपना नामपर केलक आ पुनः नेपालपर आक्रमण केलक जकर प्रमाण नेपालसँ प्राप्त एकटा शिलालेख अछि। तुगलक लोकनिकेँ इ बात सहाय्य नहि भेलन्हि आ फिरोज तुगलक तुरंत एकर बदला लेबाक हेतु मिथिला बाटे बंगालपर आक्रमणक योजना बनौलन्हि। बरनीक विवरणसँ स्पष्ट अछि जे फिरोज गोरखपुर, खरोसा आ तिरहूतक बाटे बंगाल दिसि गेल छलाह आ संभवतः राजविराज लग कोशी नदीकेँ टपने छलाह। मधुबनी जिलामे अखनो एकटा पिरूजगढ़ नामक स्थान अछि जे फिरोज तुगलकक बाटक संकेत दइयै। १३५५क आसपास इ घटना घटल छल। फिरोज शाह सब स्थितिकेँ देखि एहि निर्णयपर पहुँचल हेताह जे मिथिलाक आंतिरिक स्वतंत्रताकेँ सुरक्षित राखियेकेँ ओ मिथिलाकेँ दिल्लीक मित्र बनाकेँ राखि सकैत छथि। एहि तथ्यकेँ स्वीकार कए ओ एकटा दूरदर्शिता आ कूटनीतिज्ञताक परिचय देलन्हि। मिथिलाक स्वतंत्रताक स्वीकृति दए ओ ओइनवार लोकनिक अधीन मिथिलाक शासन भार छोड़लन्हि आ ओहि क्रम ओ ओइनवार वंशीय ‘भोगिसराय’केँ अपन प्रियसखा कहिकेँ संबोधित केलन्हि। मिथिला पुनः स्वतंत्र रूपें अपन शासन प्रारंभ केलक परञ्च ताहि दिनक समय एहेन छल कि चारूकात दिन राति खट–पट होइते रहैत छल। मैथिली परम्पराक अनुसार फिरोज तुगलक राज पण्डित कामेश्वरकेँ मिथिलाक राज्य देने छलाह आ हुनक पुत्र भोगीश्वरकेँ ‘प्रियसखा’ कहि सम्मान केलन्हि। राजपण्डित कामेश्वर ठाकुर ‘ठाकुर’ कहबैत छलाह तैं किछु गोटए एहिवंशकेँ ‘ठाकुर वंश’ सेहो कहैत छथि। वर्धमानक गंगकृत्य विवेकमे कहल गेल अछि “कामेशो मिथिला मासत”। कामेश्वर स्वयं सिद्धपुरूष एवँ योगी होएबाक कारणे मिथिलाक राज्य गछवा लेल तैयार नहि छलाह तथापि भोगीश्वरक आग्रह ओ गछलन्हि आ किछु दिन शासन केलन्हि। कामेश्वरकेँ ‘राय’ आ ‘राजपण्डित’ दुनू कहल गेल छन्हि। कामेश्वरक बाद भोगीश्वर राजा भेलाह। हुनको ‘राय’ कहल जाइत छलन्हि आ कीर्तिलतासँ ज्ञात होइछ जे ओ फिरोज शाहक परम मित्र छलाह। भोगीश्वरक बाद गणेश्वर शासक भेलाह। हुनक समयमे ओइनवार वंशमे बटवारा हेतु संघर्ष भेल जाहिमे लोग दू दलमे बटि गेलाह–एक दल भोगीश्वरक छोट भाइ भवासिंहक समर्थक छल आ दोसर दल गणेश्वरक। जे भेल हो मुदा हम देखैत छी जे गणेश्वर राजा भेलाह। भवेशक पुत्र द्वय कुमर हरसिंह आ कुमर त्रिपुर सिंहकेँ इ बात अप्रिय बुझि पड़लन्हि आ ओ लोकनि अर्जुन राय आ कुमार रत्नाकरक मदतिसँ गणेश्वरक वध केलन्हि। तत्पश्चात भवेश राजा भेलाह। भवेशक दरबारेमे चण्डेश्वर ठाकुर अपन ‘रत्नाकर’– विशेष कए राजनीति रत्नाकरक रचना केने छलाह।
विद्यापतिक कीर्तिलतामे एहि घटनाक विवरण दोसरा ढ़ंगे अछि। विद्यापतिक अनुसार गणेश्वरक हत्या अर्सलान नामक एक मुसलमानक हाथें भेल छल जे मिथिलाक तत्कालीन अराजक स्थितिसँ लाभ उठाकेँ मिथिलाक राज्यकेँ हथिया लेने छल। मैथिली परम्परामे सेहो एहि प्रश्नपर मतैक्य नहि अछि मुदा सब साधनक वैज्ञानिक अध्ययन केला संता इ स्पष्ट होइछ जे मिथिलामे ताहि दिनमे गद्दीक हेतु गृहयुद्धक स्थिति विराजमान छल। गणेश्वरक दुनू पुत्र कीर्तिसिंह आ वीरसिंह बालिग भेलापर अपन पितामह भ्राता भवसिंहसँ राज्यक हेतु प्रार्थना केलन्हि परञ्च से नहि भेटलन्हि। अपन पिताक हत्याक प्रतिशोध लेबाक हेतु इ दुनू भाइ जौनपुर राजा इब्राहिम शाहक ओतए साहाय्यक हेतु पहुँचलाह। महामहोपाध्याय परमेश्वर झा लिखैत छथि जे कीर्तिसिंह वीरसिंह फिरोज शाहक ओतए नालिस कएल आ फिरोज शाह मिथिलापर चढ़ाइ कए हरसिंह त्रिपुर सिंहकेँ मारि राज्य कीर्तिसिंहकेँ फिरौलन्हि। मुदा विद्यापतिक कीर्तिलतासँ एहि बातक समर्थन नहि होइछ।
बापक वैरिकेँ कीर्तिसिंह सधौलन्हि से बात ठीक अछि मुदा एहि हेतु फिरोजशाह मिथिला पर आक्रमण केने छलाह तकर कोनो प्रमाण नहि आछि। एहि गृहयुद्धक क्रममे दुनू पक्ष तत्कालीन मुसलमानी प्रतिनिधिसँ साहाय्यक अपेक्षा रखने होथि तँ कोनो आश्चर्यक बात नहि आ एहिक्रममे गणेश्वरकेँ अपनेसँ नहि मारि कोनो मुसलमानक हाथे मरबौने होथि सेहो संभव कारण जखन लोक ज्ञान आ तर्ककेँ स्वार्थ वश तिलांजलि दैत अछि तखन ओ कोनो प्रकारक काज (नैतिक–अनैतिक)क बैसइयै। भैय्यारीमे जखन एहि प्रकारक झगड़ा होइत तखन तँ दुश्मन लाभ उठवे करइयै। विद्यापति ओइनवार वंशसँ एत्तेक घनिष्ट छलाह कि ओ एहि घिनौना बातकेँ दाबि देलन्हि आ एकर कतहु चर्चो धरि नहि केलन्हि आ गणेश्वरक हत्याक उत्तरदायित्व अर्सलानपर देलन्हि। मुदा विद्यापतिक विवरणसँ एतवा धरि तैं स्पष्ट अछिये जे ताहि दिनमे मिथिलामे चारूकात अराजकता पसरल छल आ केओ ककरो कहबमे नहि छल। ‘अर्सलान’ अर्थ होइछ ‘वीर’‘बहादुर’, ‘जमामर्द’ इत्यादि। वीर अफगान नामक पदाधिकारी ताहि दिन तिरहूतमे छल आ इहो संभव अछि जे गृहयुद्धक स्थितिकेँ देखि ओ एक पक्षक भऽ गेल हुए आ स्वयं मिथिलाक राज्य हथिया लेने हुए। गणेश्वरक मृत्युक कारण अखनो धरि मिथिलाक इतिहासमे एकटा समस्यामूलक प्रश्न बनल अछि आ विद्यापति ओकरा झँपबाक हेतु सब प्रयास कएने छथि कारण गणेश्वरक पुत्रक प्रति विद्यापति सहानुभूति रखैत छलाह आ हुनक अधिकारक स्थापनाक हेतु हुनका लऽ कए जौनपुर सेहो गेल छलाह। ओ कीर्तिसिंहकेँ ‘पुरूष श्रेष्ठ’क कोटिमे रखने छथि आ मैथिल कवि दामोदर मिश्र अपन छन्द ग्रंथ “वाणी भूषण”मे सेहो कीर्ति सिंहक सम्बन्धमे निम्नलिखित उद्गार प्रगट केने छथि।
“कीर्ति सिंह नृपजीव यावद मृत द्युति–तरणी”
“त्वयि चलति चलति वसुधा वसुधाधिप कीर्तिसिंह धरणी रमणे”।
कीर्तिलता मध्यक विवरण एतवा धरि अवश्य स्पष्ट कऽ दैत अछि जे तत्कालीन स्थिति गंभीर छल आ जौनपुरक शासक मिथिलाक राजकुमारक सहायता केने छलथिन्ह। उपेन्द्र ठाकुरक मत छन्हि जे गणेश्वरक समयमे मिथिलाक बटबारा भऽ गेल छल आ ओइनवार वंश दू भागमे बटिकेँ शासन करैत छल। भवसिंहक शासक हैव तैं चण्डेश्वरक राजनीति रत्नाकरसँ प्रमाणित अछि। परञ्च गणेश्वरक पुत्रक स्थिति कि छल से कहब असंभव। उपेन्द्र ठाकुर मिथिलाकेँ जौनपुरक सामंत राज्य हौएबाक बात कहने छथि मुदा एकर कोनो प्रमाण ओ नहि देने छथि आ कीर्ति सिंहक सम्बन्धमे जे तिथि देल गेल अछि सेहो गलती अछि। भवेशक शासनकाल (भवसिंह) संभवतः मिथिलाक दुर्दशाकेँ देखि समस्त मिथिलाकेँ एक रखबाक ओ यथेष्ट प्रयास केने छलाह। कन्दाहा अभिलेखमे हुनका ‘पृथ्वीपति द्विजवरो’ भवसिंह कहल गेल छन्हि आ विद्यापति अपन शैव सर्वस्वसारमे हुनक वैभवक वर्णन करैत लिखैत छथि–
“गंगोहुंग तरंगिता मललसत् कीर्तिच्छटांक्षालित
क्षोणिक्ष्मातल सर्वपर्वत वरो वीरत्रतालंकृत….”
भवसिंह एतेक प्रतापी शासक छलाह जे छोट–छोट सामंत शासक हुनका डरे थर–थर कंपैत छल। ओ सब सतत अपन माथ हिनका पैर टेकने रहैत छल। भवसिंह प्रतापी राजा छलाह आ दानी सेहो। वाग्मतीक तटपर ओ अपन पार्थिव शरीरकेँ त्यागलन्हि आ ओहिठाम हुनक दुनू पत्नी सेहो सती भेलथिन्ह।
भवसिंहक बाद देवसिंह राजा भेलाह। परमेश्वर झाक अनुसार ओइनिमे कीर्ति सिंहक राज्य भेने राति दिन खट पट होइतन्हि तैं महाराज भवसिंह अपन अंतिम समयमे ओहि स्थानकेँ त्यागि दरभंगासँ दक्षिण वाग्मती तटपर अपन स्कन्धावार बनौने छलाह। देवसिंह जखन राजा भेलाह देकुलीमे अपन राजधानी बनौलन्हि जाहिठाम अखनो स्मार्त निबन्धकर्त्ता धर्माधिकारी अभिनव वर्धमान उपाध्यायक स्थापित “वर्धमानेश्वर” नामक महादेवक मंदिर अछि। देवसिंहक विरूद ‘गरूड़नारायण’ छलन्हि। हुनक पत्नीक नाम छलन्हि हासिनी देवी। पुरूष परीक्षा आ शैवसर्वस्वसारक अनुसार देवसिंह एक कुशल प्रशासक आ सफल विजेता छलाह। मिथिलाक एक उदारशासकक रूपमे ओ सेहो प्रसिद्ध छथि कारण ओ ‘तुला पुरूषदान’ सेहो करौने छलाह। कृषि आ जनकल्याणक हेतु ओ अपना राज्यमे बड्ड पैघ–पैघ पोखरि सेहो खुनौने छलाह। एक पोखरिक नाम देवसागर छल आ ओहिसँ सटल बस्तीक नाम सगरपुर छल। ओ विद्या आ संस्कृतिक समर्थक सेहो छलाह आ विद्यापतिक अनुसार ओ “वीरेषु मान्याः सुधियाँ वरेण्योः” छलाह। हुनके कहलापर विद्यापति “भूपरिक्रमा” लिखने छलाह जाहिमे नैमिष्य जंगलसँ मिथिला धरिक बलदेवक यात्रा विवरणक उल्लेख अछि। संगहि एहिमे नीतिपरक कथा सेहो कहल गेल अछि। देवसिंहक अनुमतिसँ श्रीदत्त एकाग्निदान पद्धतिक रचना केलन्हि। हुनके समयमे मुरारिक पितामह हरिहर प्रधान न्यायाधीश छलाह। हिनके दरबारमे स्मृति तत्वामृतक रचयिता अभिनव वर्द्धमान रहैत छलाह आ ओ धर्माधिकारी सेहो छलाह।
देवसिंहक समयमे आबिकेँ मिथिलाक दुर्व्यवस्थामे थोड़–बहुत सुधार भेल आ आब ओ लोकनि एहि बातकेँ बुझए लगलाह जे जाधरि ओइनवार वंश पुनः एकजूट भऽ प्रयत्नशील नहि रहत ताधरि मिथिलाक दुर्व्यवस्था बनले रहतैक। देवसिंह एहि दिशामे विशेष प्रयास केने छलाह आ अपना चारूकातक क्षेत्रपर अपन प्रभावकेँ दृढ़ करबामे किछु उठा नहि रखने छलाह। कीर्तिसिंहक ओहिठामसँ देवसिंहक दरबारमे विद्यापतिक आएब एकटा विचारणीय विषय अछि। विद्यापति ओइनवार कुलक सब किछु छलाह आ ओइनवारक नेतृत्वमे मिथिलाक स्वतंत्रताकेँ सुरक्षित देखए चाहैत छलाह। तैं जखन देवसिंहक प्रयाससँ विद्यापतिकेँ इ विश्वास भेलैन्ह जे इ समस्त मिथिलाक एकता एवँ स्वतंत्रताक हेतु प्रयत्नशील छथि तखन ओ कीर्तिसिंहक संग छोड़ि देवसिंहक ओतए आबि गेलाह एतए आतहियासँ यावज्जीवन हुनके वंशजक संग रहलाह। जे विद्यापति गणेश्वरक हत्याक वाद कीर्तिसिंहक हकक हेतु सब किछु केने रहैथ सैह विद्यापति जखन देखलन्हि जे कीर्तिसिंहक नेतृत्वमे मिथिलाक एकता संभव नहि होएत आ मिथिलाक स्वतंत्रता सेहो नहि वाँचत तखन ओ अपन निर्णय बदलि देलन्हि आ देवसिंहक प्रयासमे सहयोग देलन्हि। ‘घर फुटे गँवार लूटे’क कहावत मिथिलामे चरितार्थ भऽ चुकल छल आ एकर कि परिणाम होइछ से विद्यापति देखि चुकल छलाह तैं ओ देवसिंहक वंशजक संग अपन भाग्यकेँ सटादेलन्हि आ तहियासँ अपन मृत्यु धरि ओ मिथिलाक एकता एवँ स्वतंत्रताक हेतु तल्लीन रहलाह आ स्वयं युद्ध एवँ शांतिमे एक रंग बहादुर जकाँ ठाढ़ रहलाह। देवसिंहक ज्येष्ठ पुत्र शिवसिंह विद्यापतिक अभिन्न छलथिन्ह आ शिवसिंह मिथिलाक इतिहासपर जे अमिट छाप छोड़ने छथि तकरा विद्यापति अपन लेखनीसँ आ अमर बना देने छलथिन्ह।
शिवसिंह:- ओइनवार वंशक सर्वश्रेष्ठ, सर्वप्रसिद्ध आ एतिहासिक दृष्टिकोणसँ सबसँ महत्वपूर्ण शासक छलाह शिवसिंह। हिनक विरूद्ध छलन्हि रूपनारायण। इ दुनू भाइ छलाह अपने आ पद्मसिंह। बाल्य कालहिसँ इ राजदरबारमे रहैत छलाह आ बालिग भेलापर अपन पिताक सबटा राज्यक कार्य करैत छलाह। इ बड्ड तीक्ष्ण बुद्धिक लोक छलाह आ राजनीतिमे सर्वथा निपुण सेहो। योग्य राजकुमार बनेबाक विचारे हिनक पिता देवसिंह हिनका विद्यापतिक संग लगौने रहथिन्ह आ नीतिमे निपुणता प्राप्त करेबाक हेतु विद्यापति शिवसिंहक आदेशानुसार ‘पुरूष परीक्षा’क रचना केने छलाह। विद्यापतिक गीतमे १२९ पदमे (११२+१७) शिवसिंहक नाम अछि।
१५ वर्षक अवस्थहिंसँ इ राज्यक प्रशासनमे हाथ बटबैत छलाह। जखन ओ राजा भेलाह तखन ओ देकुली (देवकुली)सँ अपन राजधानी हटाकेँ गजरथपुर अनलन्हि। ओकरा शिवसिंहपुर सेहो कहल जाइत छैक। एहिठाम गजरथपुरसँ शिवसिंह विद्यापतिकेँ दान देने छ्लथिन्ह। राज्य प्रशासनमे हाथ बटेबा काल हुनका अपन परम मित्र एवँ अभिन्न विद्यापतिसँ सेहो सहयोग भेटइत रहन्हि। शिवसिंह परम विद्वान, उदार, सुन्दर, तथा प्रतापी छलाह। हुनक खुनाओल पोखरि वारि भड़ौरामे रजोखरि नामसँ प्रसिद्ध अछि आ हुनक बनाओल सड़क सब रजबान्ह (राजबन्ध) शिवसिंहपुरसँ राजवाड़ा घोड़ दौड़ धरि हुनक गजरथक सड़क अत्यंत सुदृढ़ आ चाकर अछि। पोखरि आ सड़क ओ प्रजाक कल्याणार्थ बनौने छलाह। एहि प्रसंगमे हुनका सम्बन्धमे एकटा लोकोक्ति निम्नांकित अछि–
“पोखरि रजोखरि आ सब पोखरा, राजा शिवसिंह आ सब छोकड़ा।
तालते भूपाल ताल आरो सब तलैया, राजा ते शिवसिंह आरो सब रजैया”॥
शिवसिंहक समयमे तिरहूतक राज्य शक्तिशाली भऽ गेल छल। अपना चारूकातक परिस्थितिकेँ ध्यानमे राखि ओ अपन राजधानी गजरथपुरमे अनने छलाह आ राज्यक विभिन्न भागसँ सड़क द्वारा ओकरा जोड़ने छलाह। गौड़ आ गज्जनक विरूद्ध ओ संघर्ष केने छलाह जकर प्रमाण हमरा पुरूष परीक्षासँ भेटइयै। देवसिंहक समयमे सेहो मिथिलामे मुसलमानी प्रकोप छल। परम्पराक अनुसार अपन पिताक शासनकालमे मुसलमानी सेनासँ लड़बाक हेतु ओ पठाओल गेल छलाह आ ओहिमे पराजित भेलाक कारणे गिरफ्त भेल छलाह। हुनके छोड़ेबाक हेतु विद्यापति गेल छलथिन्ह आ मुसलमानी शासक विद्यापतिक काव्य प्रतिभासँ प्रभावित भए शिवसिंहकेँ छोड़ि देने रहैन्ह आ विद्यापतिक बहुत सम्मान केने रहैन्ह। राजा भेलाह शिवसिंह एहि अपमानकेँ बिसरल नहि छलाह आ तैं अपन स्वाभिमान आ मिथिलाक स्वतंत्रताक रक्षार्थ हुनका कतेको मुसलमान शासकसँ संघर्ष करए पड़लन्हि।
जेना कि हम पूर्वहिं कहि चुकल छी जे मध्य युगमे मिथिलापर पश्चिम आ पूब दुनू दिसिसँ दबाब पड़इत छल आ मिथिला ‘वेत्तसिवृत्ति’क नियम पालन करैत छल। दिल्ली, जौनपुर, बंगाल, सभहिक नजरि मिथिलापर छलैक। शिवसिंहक पूर्ण इच्छा छलन्हि जे मिथिलाकेँ पूर्णरूपेण स्वतंत्र राज्यक रूपमे राखल जाए आ ताहि प्रयासमे ओ कोनो कसैरि उठा नहि रखलन्हि। अपन कम दिनक शासनमे ओ जाहि निपुणताक परिचय देने छथि से कोनो देशक राजाक हेतु एकटा गौरवक विषय। शिवसिंहकेँ पँचगौड़ेश्वर सेहो कहल गेल छन्हि। बंगालोमे मिथिला जकाँ अराजक स्थिति छल आ ओतहु शिवसिंह जकाँ राजा गणेश ओहि स्थितिसँ लाभ उठाकेँ ओतए अपन शासन स्थापित कऽ लेने छलाह। हुनक पुत्र जदुसेन मुसलमान भऽ गेलाह आ जलालुद्दीनक नामे ओतुका राजा बनलाह। ओ शिवसिंहक समकालीन छलाह। शिवसिंह हिनका विरूद्ध अभियान शुरू केलन्हि आ हिनका पराजित केलन्हि आ हिनक राज्यक किछु अंशकेँ अपना राज्यमे मिलौलन्हि। बंगालपर विजय प्राप्त करबाक हेतु इ पंचगौड़ेश्वर कहाओल गेल हेताह से संभव। ताहि कालमे पश्चिममे जौनपुरक इब्राहिम शर्कीक बड्ड प्रभाव छलैक आ बंगालमे जखन मुसलमानी शासनक पराभव भेल तखन ओतए गणेशक उत्थान भेल। मिथिलामे शिवसिंह आ बंगालमे गणेशक प्रादुर्भावसँ पश्चिमक मुसलमान शासनक कान ठाढ़ भेल आ बंगालक मुसलमान संत लोकनि इब्राहिम शर्कीकेँ एहि बातक हेतु चेतौलन्हि। बंगालक निमंत्रण पर इब्राहिम शर्की बढ़लाह जाहिसँ ओहिठाम पुनः मुसलमानी शासनक पुनर्स्थापित भऽ सकए।
एहिक्रममे मिथिलामे हुनका शिवसिंहसँ झंझट हैव स्वाभाविक कियैक तँ शिवसिंह बंगालक जलालुद्दीनकेँ पराजित कए ओतए धरि अपन राज्यक विस्तार कऽ लेने छलाह आ संगहि मिथिलाकेँ पूर्णरूपेण स्वतंत्र सेहो। इब्राहिमकेँ एहि दूमेसँ कोनो बात पसिन्न नहिये पड़ल होएतन्हि आ तैं मिथिलापर आक्रमण करब हुनक बंगाल नीतिक एकटा प्रमुख अंग रहल होएत। शर्की कालीन अभिलेख तिरहूतमे मुल्ला तकिया देखने छलाह आ ताहिसँ इ बुझना जाइत अछि जे शिवसिंहकेँ परास्त करबाक हेतु अथवा बदला लेबाक हेतु इब्राहिम शाह तिरहूतपर आक्रमण केने हेताह। हुनक समर्थक कीर्तिसिंहक प्रताप आब मिथिलामे नहि छलैक आ स्वाभिमानी एवँ स्वतंत्रता प्रेमी शिवसिंहक शासन पूब–पश्चिम दुनूकेँ चैलेंज कऽ रहल छलैक। एहना स्थितिमे इब्राहिम शर्की चुप्प बैसनिहार नहि छलाह। दुनूक बीच संघर्ष भेल जकर परिणाम हमरा लोकनिकेँ ज्ञात नहि अछि आ एकर बादे ओ वंगाल दिसि बढ़ल होएताह। एहो संभव जे बंगालसँ घुरबो काल (जतए ओ शिवसिंहक महत्वाकाँक्षाक विषयमे सुनने होथि) ओ मिथिलापर आक्रमण कए गेल होथि। मुदा तत्कालीन साधनक आधारपर एहि सम्बन्धमे कोनो ठोस निर्णय देव असंभव अछि।
शिवसिंह स्वतंत्र रूपें लगभग ३–४ वर्ष धरि शासन केलन्हि परञ्च कहियो ओ निश्चिंत भऽ सुति नहि सकलाह कारण सब दिन हुनका कोनो ने कोनो समस्या लगले रहैन्ह। दिल्ली आ जौनपुर हुनका बरोबरि तंग करैत रहैन्ह जो ओ पसिन्न नहि करैत छलाह। मुसलमान शासककेँ जे तिरहूतसँ कर भेटइत रहैक से देव ओ वंद कऽ देलैन्ह आ ओ अपनाकेँ पूर्णरूपेण स्वतंत्र घोषित कऽ देलैन्ह। इ शासककेँ छलाह से सम्प्रति कहब असंभव मुदा कर बन्द केलाक बाद ओ खिसिया गेलाह आ शिवसिंहक संगहि युद्ध बजरब स्वाभाविक भऽ गेल। एतवे नहि अपन स्वतंत्रताकेँ व्यापक बनेबाक हेतु शिवसिंह अपना नामे सोनाक सिक्का बहार केलन्हि आ एहिक्रममे ओ इ सिद्ध कऽ देलैन्ह जे मिथिलाक कोनो दोसर महाप्रभु शिवसिंह छोड़िकेँ आ केओ नहि छल। एहिसँ मिथिलाक गौरवमे वृद्धि भेल आ शिवसिंह नान्यदेवक परम्परामे आबि गेला। शिवसिंहक एहि काजसँ तत्कालीन छोट–छोट राजाकेँ प्रेरणा भेटलैक आ शिवसिंहक शासन काल धरि मिथिलाक स्वतंत्रता सेहो अक्षुण्ण रहलैक। इ मिथिलाक इतिहासक हेतु एकटा गौरवक विषय मानल जाइत अछि।
मुसलमान सुल्तान शिवसिंहक एहेन विद्रोही रूप देखि आश्चर्यचकित भऽ गेलाह। शिवसिंह सेहो अपन गिरफ्त होएबाक अपमानकेँ बिसरने नहि छलाह। दुनू अपन–अपन जिद्दपर छलाह जकर नतीजा इ भेल जे दुनूक बीच युद्ध अवश्यम्भावी भऽ गेल। एहि युद्धक परिणाम तँ बुझल नहि अछि परञ्च एकर बाद शिवसिंह हारि गेला, अथवा मारल गेलाह या लापता भऽ गेलाह से बुझल नहि अछि। मारलो गेल होथि से असंभव बात नहि। किछु गोटएक मत छन्हि जे शिवसिंह नेपालक जंगलमे भागि गेलाह अथवा ओम्हरे लापता भऽ गेलाह। एकर अर्थ किछु लेल जा सकइयै। एहि पराजयक बाद लखिमा देवी विद्यापतिक संगे द्रोणवार राजा पुरादित्यक ओतए सप्तरी परगन्नामे चल गेला। नेपालमे सेहो एकटा शिवराजगढ़ अछि जकरा लोक शिवसिंहसँ जोड़ैत अछि आ किछु गोटएक विचार छन्हि जे रानी लखिमा अपन पतिक स्मारक स्वरूप एहि गढ़क निर्माण करौने छलीह। विद्यापति एहि युद्धक वर्णन जाहि रूपें केने छथि ताहिसँ बुझना जाइत अछि इ भयंकर युद्ध छल। विद्यापति सेहो शिवसिंहक संगे युद्धमे शरीक भेल छलाह। युद्धक स्वरूप विद्यापतिक निम्नलिखित कवितासँ स्पष्ट होएतः–
“दूर दुग्गमदमसि भज्जे,
ओ गाढ़ गड़ गूठीअ गण्जेओ।
पातिसाह ससीम सीमा समदरसे ओरे।
ढोल तरल निसान सद्दहि भेरि काटल संख नद्दहि।
तीन भूअन निकेतकेँतकि सनभरि ओरे॥
कोहे नीरे पयान चलियो वायुमध्य सयगरूओ।
तरणि तेअ तुलाधार परताप गहि ओरे॥
मेरू कनक सुभेरू कम्पिय धरणि पूरिय गगन झम्पिय।
हाति तुरय पदाति पयभर कमन सहि ओरे॥
तरल तर तखारि रङ्ग़े विज्जुदाम छटा तरंगे,
घोरघन संघात वारिस काल दरस ओरे॥
तुरय कोटी चाप चूरिय चारदिस चौविदिशपूरिय।
विषम सार असारधारा धोरनी भरि ओरे॥
अन्धकुअ कबन्ध लाइअ फेखी फफफरिस गाइअ।
रूहिरमत्त परेत भूत वेताल विछलि ओरे॥
पारभइ परिपन्थ गज्जिय भूमि मण्डल मुण्डे मण्डिअ।
चारू चन्द्रकलेब कीर्तिसुकेत की तुलि ओरे।
रामरूपे स्वधरम राखिअ दान दप्पे दधीचि खीखिअ।
सुकवि नव जयदेव भनि ओरे॥
देवसिंह नरेन्द्र नन्दन शत्रु नखइ कुल निकन्दन, सिंह
समशिवसिंह मया सकल गुणक निधान गणि ओरे”॥
शिवसिंह मात्र एक विजेतेटा नहि अपितु कला, संस्कृति आ साहित्यक संरक्षक सेहो छलाह। हुनक दरबार विद्वान, पण्डित, कवि, दार्शनिक एवँ चिंतक लोकनिसँ भरल रहैत छल आ एहि मानेमे ओ राजा विक्रमादित्य आ भोजसँ एक्को पाइ कम नहि छलाह। विद्यापति, वाचस्पति, अमृतकर, जयंत, लखिमा आदिक नामसँ सब केओ परिचित छथिओ। विद्यापति तँ हुनक सब किछु छलथिन्ह आ पदावलीक रचना शिवसिंहक राज दरबारमे भेल। शिवसिंहक मंत्रीगण छलाह अच्युत, महेश (महेश्वर) आ रतिधर। शंकर नामक एकटा प्रमुख अधिकारी सेहो हुनका दरबारमे रहैत छलाह। तरौनीक एक पोखरिक अंगनइमे शिवसिंह कालीन एतिहासिक अवशेष सब सुरक्षित अछि। ओहि समयक एकटा पोखरि ‘भटोखरि’क नामसँ प्रसिद्ध अछि। मिथिलामे ओ प्रथम राजा छलाह जे स्वर्ण मुद्राक प्रचलन चलौने छलाह आ जकर दूटा अवशेष अखनो प्राप्य अछि। शिवसिंहक सम्बन्धमे कहल गेल अछि जे ओ अपना समयक समकालीन राजा सभहिक मध्य एकटा अद्वितीय प्रतिभाक व्यक्ति छलाह जे एतवे कम दिनमे समस्त उत्तरी भारतमे अपन धाक जमा लेने छलाह। परञ्च सबहिक दिन सबखन एक्के रंग नहि रहैत अछि तैं शिवसिंह एकर अपवाद कोना होइतैथ।
शिवसिंहक परोक्ष भेलाहपर पद्मसिंह मिथिलाक शासक भेला आ मैथिल परम्पराक अनुसार ओ दिल्ली सुल्तानकेँ कर देब स्वीकार केलन्हि। हुनका समएमे विद्यापति हुनक सलाहकार छलथिन्ह। ताहि कालमे विद्यापति ठाकुरकेँ मंत्री सेहो कहल गेल छन्हि। ओ पद्मा, पद्मौलि आदिक स्थापना केलन्हि आ चम्पारणमे पद्मकेलि नामक स्थानक सेहो। विद्यापति हिनका नृपति पद्मसिंह कहिकेँ उल्लेख केने छथि। विद्यापतिक अनुसार पद्मसिंह भीम जकाँ बहादुर छलाह आ दानीक हिसाबे कल्पवृक्षे बुझल जाइछ। शैवसर्वस्वसारमे विद्यापति लिखने छथि–“संग्रामांगन सीम भीम सदृश….दाने स्वल्पित कल्पवृक्ष”।
पद्मसिंहकेँ कोनो पुत्र नहि छलन्हि। पद्मसिंहक बाद महारानी लखिमा मिथिला राज्यक भार अपना हाथमे लेलन्हि। उपेन्द्र ठाकुर लिखने छथि जे शिवसिंहक पछाति लखिमा उत्तराधिकारिणी भेलीह मुदा से बात विश्वास करबा योग्य नहि अछि कारण हम देखि चुकल छी जे विद्यापतिक संग लखिमा द्रोणवार पुरादित्यक दरबारमे चल गेल छलीहे आ मिथिलामे बचि गेल छलाह, पद्मसिंह जे मुसलमानी महाप्रभुकेँ कर देबाक वचन दए मिथिला राज्यक आंतरिक स्वतंत्रता सुरक्षित रखबामे समर्थ भेल छलाह। मैथिली परम्परामे एकटा कथा सुरक्षित अछि जाहिसँ एहि बातपर प्रकाश पड़इयै। शिवसिंहक लापता भेलापर कायस्थ चन्द्रकरक पुत्र एवँ शिवसिंहक मंत्री अमृतकर पटना गेला आ ओतए जाए सुल्तानक प्रतिनिधिसँ भेट कए मिथिलाक स्वतंत्रताक भीख मंगलन्हि। तखन जे समझौता भेल तदनुसार पद्मसिंह राजगद्दीपर बैसलाह। पद्मसिंह बछौर परगन्नामे पदुमा नामक स्थानपर अपन राजधानी बनौलन्हि। एहि परम्पराकेँ ध्यानमे राखिक स्पष्ट होइछ जे शिवसिंहक बाद मिथिलाक गद्दीपर पद्मसिंह बैसलाह आ तत्पश्चात लखिमा रानी।
लखिमा रानीकेँ गद्दीपर बैसबाक मूल कारण इ छल जे पद्मसिंह सेहो अपुत्रे मरल छलाह। बारह वर्ष धरि ओ शिवसिंहक प्रतीक्षा नियमानुसार केलन्हि आ तदुपरांत शिवसिंहक श्राद्धादि कए विद्यापतिक विचारसँ ओ राजगद्दीपर बैसलीह। लखिमा देवी नीति, धर्मनिष्ठा, उदारता, एवँ विद्वता आदिमे निपुण छलीहे आ विद्यापतिक सहयोगसँ नीक जकाँ करीब नौ वर्ष धरि राज्य केलन्हि। एकर बाद पद्मसिंहक पत्नी विश्वास देवीक शासन भेलन्हि। ओ विसौली गाममे अपन राजधानी बनौलनि आ बहुत रास धार्मिक कृत्य केलन्हि। विद्यापति हिनका समयमे बहुत रास पोथी लिखलन्हि।
देवसिंहक वंशज अंत एहिठाम भऽ गेल आ तत्पश्चात हुनक वैमात्रैय भाए कुमर हरसिंहक शाखाक शासन पुनः प्रारंभ भेल। इ बहुत कम दिन धरि शासन केलन्हि आ हिनका समयमे कोनो खास घटनो नहि घटल। विभागसार (विद्यापति), कृत महार्णव एवँ महादान निर्णय (वाचस्पति), विवाद चन्द्र (मिसारुमिश्र) तथा गंगकृत्य विवेक (वर्द्धमान) आदि पोथी सबमे हिनक नामक उल्लेख भेटइयै। कन्दाहा अभिलेखमे सेहो हिनक उल्लेख अछि। ओ विद्वान उदार एवँ योद्धा छलाह।
हिनक बाद हिनक पुत्र रत्न सिंह प्रसिद्ध नरसिंह दर्पनारायण राजगद्दीपर बैसलाह। नरसिंह अत्यंत प्रतापी राजा छलाह आ तैं हिनका दर्पनारायणक विरूद मंत्री लोकनि देने रहथिन्ह। कहल जाइत अछि जे ओ अपने मंत्री विद्यापति ठाकुरसँ विभागसागर नामक कानूनी ग्रंथक निर्माण करौने छलाह आ तदनुसार न्यायालयमे कार्य करबाक आज्ञा देने छलाह। कन्दाहा (सहरसा)क सूर्य मन्दिर पर एखनो हिनक लिखाओल उपलब्ध अछि आ ओकर तिथि देल अछि शक १३७५ (१४५३–५४ ई.) ओहि शिलालेखक पाठ एवँ प्रकारे अछि–
“पृथ्वीपति द्विजवरो भव (सिंह) आसी दाशी विषेन्द्र वपुरूज्जवल कीर्तिराशिः।
तस्यात्मजः सकल कृत्य विचार धीरो वीरो वभूव वि (हरसिंह देवः)॥
(दोः ?) स्तंभद्वय निर्जिनाहिततप श्रेणी किरीटोपल ज्योत्सनावर्द्धित पाद पल्लव नख श्रेणी मयुखावलिः॥
दाताततनयोमयोक्त विधिना भूमण्डलं पालयत् धीरः श्री नरसिंह भूपतिलकः कांतोधुना राजते।
विदेशतोस्यायतनं खेरिदम चीकरत्। विल्व पंचकुलोदभुतः श्रमदवंशधरे कृती….”॥
एहिलेखमे नरसिंहक पूर्वज उल्लेख अछि आ इहो कहल गेल अछि जे ओ अपन दुनू शक्तिशाली भुजासँ अपन दुश्मनकेँ दबौने छलाह आ सब हुनके पैरपर लोट पोट करैत छल। कामन्दकीय नीर्तिसारक अनुसार ओ अपन राज्यकेँ रक्षा करैत छलाह। एहिमे हुनका ‘भूपति तिलक’ सेहो कहल गेल छन्हि। दुर्गा भक्ति तरंगिनीमे विद्यापति हिनका योद्धा कहने छथिन्ह। इ अपने आ हिनक पत्नी धीरमति एक्के रंग उदार छलाह। कहल जाइत अछि जे धीरमतिक आदेशानुसार काशीमे एकटा वापी खुनाओल गेल छल आ धर्मात्माक हेतु एकटा धर्मशालाक निर्माण सेहो कैल गेल छल। हिनके आदेशपर विद्यापति दानवाम्यावली ग्रंथक निर्माण कएने छलाह। एहिमे नरसिंह देवक हेतु निम्नलिखित वाक्यक प्रयोग भेल अछि।
“श्री कामेश्वर राज पण्डित कुलालंकार सारः श्रिया
मावासो नरसिंह देव मिथिला भूमण्डलाखण्डलः।
दृव्यद् दुर्धखौरिदर्पदलनोऽभूद्दर्पनारायणो।
विख्यातः शरदिन्दु कुन्द धवल भ्राम्यद्यशो मण्डलः।
तस्योदार गुणाश्रस्य मिथिला क्ष्मापाल चूड़ामणेः॥
हिनके समयमे विद्यापति व्याढ़िभक्तितरंगिणी सेहो बनौने छलाह। व्याढ़िभक्तितरंगिणी आ विभागसारक मूल अपन पोथी ‘मिथिला इन द एज ऑफ विद्यापति’क परिशिष्टमे छपने छी। हिनका समयमे बहुत रास विभिन्न विषयक ग्रंथक रचना सेहो भेल।
नरसिंहक बाद धीरसिंह राजा भेलाह। नरसिंहकेँ चारिटा पुत्र छलथिन्ह–
धीरसिंह हृदय नारायण (प्रथम पत्नीसँ)
भैरवसिंह रूपनारायण
चन्द्र सिंह (द्वितीय पत्नीसँ)
दुर्लभ सिंह (रण सिंह)
धीरसिंह अपने पिता जकाँ एकटा योग्य शासक छलाह। ई. १४६० क आसपास गद्दीपर बैसलाह आ विद्यापति हिनको हेतु प्रशंसाक पुल बान्हने छथि। मर्यादा, पराक्रम आ प्रज्ञा तीनुमे इ अपूर्व छलाह। हिनको दरबारमे बहुत रास विद्वान रहैथ छलथिन्ह। हिनके छोट भाए चन्द्रसिंह चनौर (चन्द्रपुर)क निर्माता छलाह। चन्द्र सिंहक आदेशपर कृष्ण मिश्रक प्रबोध चन्द्रोदय नाटकपर रूचि शर्मा अपन टीका लिखने छलाह। धीरसिंहक कंसनारायण सेहो कहल जाइत छलन्हि।
भैरवसिंह देव:- मिथिलामे शिवसिंहक बाद ओइनवार वंशमे सबसँ प्रसिद्ध शासक भेलाह भैरव सिंह देव जे पुनः एक बेर शिवसिंह जकाँ समस्त मिथिलाक एकीकरण केलन्हि आ मिथिलाकेँ पूर्ण स्वतंत्र घोषित केलन्हि। उहो शिवसिंह जकाँ अपन चानीक सिक्का चलौने छलाह आ ओहि सिक्काक आधारपर इ निर्विवाद रूपें कहल जाइत अछि जे ओ १४७५ ई. मिथिलाक गद्दीपर बैसलाह। हुनक स्त्री जयाक अनुरोधपर वाचस्पपति मिश्र द्वैत निर्णयक रचना कएने छलाह। शिवसिंह जकाँ इहो पंचगौड़ेश्वरक उपाधिसँ विभूषित छलाह। हिनका सम्बन्धमे निम्नलिखित शब्दावली ध्यान देबाक योग्य अछि।
विद्यापति:-
शौयावर्जित पंचगौड़धरणी नाथोप नम्रीकृता–
नेर्को तुङ्ग तुरंग संग सहितच्छत्राभि रामोदयः
श्रीमद भैरव सिंह देव नृपतिर्यस्यानुजन्मा जय
त्याचन्द्रार्कमखण्डकीर्ति सहितः श्री रूपनारायणः।
रूचि शर्मा (प्रबोधचन्दोदयक टीकामे):-
न्यायेनावति तीरभुक्ति वसुधां श्री धीरसिंह नृपे
श्रीमद भैरव सिंह भूमिपतिना भ्रात्रानुजेनांविते।
वर्द्धमान (दण्डविवेक):-
गौड़ेश्वर प्रतिसरीरमति प्रतापः
केदार राय मवगच्छति दार तुत्यम्॥
संभवतः शिवसिंह जकाँ भैरवसिंह सेहो अपन पिताक समयसँ शासनमे हाथ बटबैत छलाह। हिनका समयक सबसँ मुख्य घटना इ अछि जे इ बंगाल सुल्तान द्वारा कैल गेल मिथिलाक अप्राकृतिक बटवाराकेँ तोड़लन्हि आ पुनः समस्त मिथिलाकेँ एक कए ओहिपर अपन एक क्षत्र राज्यक स्थापना केलन्हि। बछौड़ परगन्नाक बरूआ ग्राममे ओ अपन राजधानी बनौलन्हि कारण इएह सबसँ सुरक्षित स्थान हिनका बुझि पड़लन्हि।
एतए इ स्मरण रखबाक अछि जे हाजी इलियास १३४६ ई.मे मिथिलापर आक्रमणक क्रममे हाजीपुर तक बढ़ल छल आ मिथिलाक ओइनवार राजाकेँ पराजित कऽ कए मिथिलाकेँ दू भागमे बाँटि देने छल। गंडकक उत्तरी भागमे ओ ओइनवार लोकनिकेँ शासन करैत छोड़ि देलकन्हि आ गण्डकक दक्षिणी भाग समस्तीपुर, बेगूसराय, बछवाड़ा, महनार, हाजीपुर आदि क्षेत्रकेँ ओ अपना अधीन रखलक। गण्डकपर अपना दिसि ओ समस्तीपुर (शमसुद्दीनपुर) नामक नगरक स्थापना केलक। तिरहूतक ओइनवार शासककेँ इ सब दिन खटकैत रहैन्ह। एहि आप्राकृतिक बटबाराकेँ किछु दिनक हेतु शिवसिंह नष्ट कए समस्त मिथिलाक एकीकरण कएने छलाह परंतु शिवसिंहक परोक्ष भेलापर पुनः यथास्थितिक स्थापना भेल आ केओ मैथिल शासक एहि दिसि ध्यान नहि देलन्हि। भैरव सिंह एक महत्वाकाँक्षी व्यक्ति छलाह आ मिथिलाक अप्राकृतिक बटवारा हुनका बरोबरि खटकैत रहैन्ह तैं ओ राजगद्दीपर एला उत्तर सबसँ पहिने एहि दिसि ध्यान देलन्हि आ एहिमे सफल सेहो भेला।
धीरसिंहक समयसँ बंगालसँ खटपट होइत छल आ इ बात भैरवसिंह देखैत छलाह। बेर–कुबेरमे हुनके बंगालक विरूद्ध अभियानमे जाइयो पड़इत छलन्हि तैं जखन ओ शासक भेलाह तखन ओ एहि दिसि अपन ध्यान देलन्हि। हुनका समय बंगाल सुल्तानक प्रतिनिधि केदार राय हाजीपुरमे रहैत छल। भैरव सिंह केदार रायकेँ पराजित कए ओहि क्षेत्रपर अपन आधिपत्य स्थापित केलन्हि आ समस्त मिथिलाक एकीकरण करबामे समर्थ भेला।
ओ सौसँ उपर पोखरि खुनौलन्हि। एहिमे जरहटिया गामक पोखरि सबसँ पैघ छल। हिनका दरबारमे चौहान केसरी सिंह आ संग्राम सिंह प्रसिद्ध सिपाही छलथिन्ह आ परम्परागत कथाक अनुसार ओ एहि दुनू सिपाही लंका पठौने छलाह। जरहटिया पोखरिक यज्ञोत्सव बड्ड पैघ भेल छल आ ओहिमे तत्कालीन राजा महाराजा आ विद्वान लोकनिकेँ आमंत्रित कैल गेल छलन्हि। ओहि क्रममे उपरोक्त दुनू दूतकेँ लंको पठाओल गेल छलन्हि। ताहि दिनमे बंगाली विद्वान रघुनाथ शिरोमणि सेहो एहिठाम पढ़ि रहल छलाह आ एहि यज्ञमे नुकाकेँ सब किछु देखैत छलाह। यज्ञमे गलती मंत्र पढ़ल जा रहल छल आ से हुनका नहि रहल गेलन्हि तो ओ बाजि उठलाह–“साखती कथिता कर्विता पण्डितराज (रत्न) शिरो मणिना”– एहिसँ लोग हुनका चिन्ह लेलक।
पोखरिक अतिरिक्त भैरवसिंहक समयमे बहुत रास नगर पट्टनक स्थापना सेहो भेल छल। ‘तुलापुरूषदान’क चर्च सेहो भेटइत अछि। संस्कृत साहित्यमे बहुत रास ग्रंथक रचना एहि कालमे भेल। विद्यापति, वाचस्पति, पक्षधर आदि सन धुरन्धर विद्वान हुनका दरबारमे छलथिन्ह आ राजा स्वयं संस्कृत साहित्यक बड्ड पैघ पृष्टपोषक छलाह। हुनका दरबारमे वाचस्पति ‘परिषद्’ रहथिन्ह, आ वर्द्धमान धर्माधिकरणिक रहथिन्ह। हिनक विरूद छलन्हि ‘रूपनारायण’।
भैरवसिंहक वाद रामभद्र शासक भेला आ हिनको विरूद रूपनारायणे छलन्हि। इहो अपन राजधानी रामभद्रपुर नामक गाममे बनौलन्हि। कहल जाइत अछि जे हिनका पटनामे सिकन्दर लोदी संगे भेट भेल छलन्हि आ दुनूमे बेस दोस्ती सेहो छलन्हि। इ हुनका संग शतरंज इत्यादि सेहो खेलाइत छलाह। सुल्तान रहस्य नृत्य देखबा काल हुनकहुँ अपना समीपमे स्थान देथिन्ह। गौड़, बंगाल, मालदह, मुर्शिदाबाद आदि स्थानकेँ ओ जीतने छलाह। सिकन्दर लोदी बंगालकेँ ध्यानमे राखि मिथिलाक शासककेँ अपना दिसि पटियाकेँ रखने होथि से संभव। विभाकर द्वैतविवेक नामक ग्रंथसँ निम्नलिखित वाक्य स्पष्ट अछि।
“सिकन्दर पुरन्दरो गुरूदुरोदरक्रीड़या
दिनं गमयति ध्रुवं विविध नागरी विभ्रमैः।
पचण्ड रिपुमण्डली मुकुट कोटि प्रभा।
समजित पदाम्बुजं यमिह मित्र भावंनयन्॥
येना खानि समुद्रखात सदृशं वापीगतं निजेले।
येनादायि च तानि तान्यथ महादानानि पुण्यत्मना।
जागेत्येद्भुत विक्रमः संजगती कन्याकर ग्राहको।
गौड़ोवीवलयेन्द्रदविदहनः श्री रामभद्रो नृपः॥
रामभद्र अत्यंत विद्याप्रिय छलाह। वाचस्पति हिनको समयमे जीवित छलाह। सिकन्दर लोदीकेँ रामभद्रपर बड्ड विश्वास छलन्हि आ तैं आवश्यकता पड़लापर हिनक बजाहटि होइत रहैन्ह। रामभद्र उदार, दानी आ विद्याप्रेमी छलाह आ ओइनवार परम्पराक अनुसार इहो बहुत रास पोखरि इत्यादि खुनौने छलाह। हिनका समयमे भट्ट श्री राम नामक एक यात्री गयासँ तीरभुक्ति तीर्थ करबाक हेतु आयल छलाह आ ओ रामभद्रक दानप्रियता एवँ उदारतासँ बड्ड प्रभावित भेल छलाह। मिथिला होइत ओ प्रयाग घुरल छलाह। ओ तीरभुक्तिक विद्वत समाजसँ एत्तेक प्रभावित भेल छलाह जे एहि बातक उल्लेख ओ अपन पोथी ‘विद्वत प्रबोधिनी’मे सेहो केने छथि–
“गयाया निर्गता रामस्तीर्भूक्त्यारव्यदेशपम्।
रूपनारायणं विप्रं संतुष्टं स्वागिराकरोत्॥
रूपनारायणाद् भूपादाज्ञां प्राप्य सुतान्वितः।
तीरभूक्त्यारव्यदेशाश्च प्रयागं समुपागतः”॥
एहिवंशक सबसँ अंतिम शासक छलाह लक्ष्मी नाथ देव कंस नारायण जनिका समयक अभिलेख भगीरथपुरसँ प्राप्त भेल अछि। १५१३ ई.मे इ मिथिलामे शासन करैत छलाह। १५१० ई.मे गद्दीपर बैसल होथि से संभव कारण ओहि वर्षमे हिनके शासन कालमे देवी माहात्म्यक एकटा पाण्डुलिपि तैयार भेल छल।
भगीरथपुर अभिलेखमे हिनका ‘राजाधिराज’ कहल गेल छन्हि–“यवनपति भयाधायकस्तीरभुक्तौ राजा राजाधिराजः समर–सः कंसनारायणो सौ”। हिनका डरे यवन लोकनि थर–थर कंपैत छलाह। कहल जाइयै जे हिनक चरित्र संदेहास्पद छल आ इ अपन कोनो मंत्री श्री धरक पत्नीसँ सम्बन्ध रखैत छलाह। हिनका समयमे मिथिलापर मुसलमानी आक्रमण भेल। १५२६ ई.मे हिनक मृत्यु भेल जेना कि निम्नलिखित श्लोकसँ स्पष्ट अछि–“अंकाब्धिवेदशशि (१४४९) सम्मित शाकवर्षे, भाद्रेसिते, प्रतिपदिं क्षिति सुनुवारे हा हा निहात्य इव कंसनारायणौऽसौ, त्याज्य देवसरसीनिकटे शरीरम्”– १४४९ शाक अथवा १५२६ ई.मे अपन पार्थिव शरीर त्यागलन्हि। संभवतः बंगालक नशरत शाहक हाथे इ पराजित भेल छलाह किएक तँ नशरत शाहक एकटा अभिलेख बेगूसरायक मटिहानी अंचलसँ प्राप्त भेल अछि। नशरत दिल्लीक सुल्तान संग भेल संधिकेँ नहि मानि मिथिलापर आक्रमण केलन्हि आ लक्ष्मीनाथ कंसनारायणकेँ पराजित कए अपन जमाए अलाउद्दीनकेँ एहिठामक राज्यपाल नियुक्त केलन्हि।
एकर बादक इतिहास पूर्णरूपेण ज्ञात नहि अछि। ओइनवारक शक्तिक ह्रास भऽ गेलैक। तथापि ओइनवार वंशक लोग यत्र तत्र मिथिलामे राज्य करैत रहलाह आ एम्हर अराजकता सेहो बढ़े लागल। केन्द्रीय सत्ता टुटि गेलासँ चारूकातक राजा–सामंत अपन स्वतंत्रता घोषित कऽ लेलन्हि आ मुसलमान लोकनि सेहो एहि क्षेत्रमे अपन अधिकार बढ़ेबामे प्रयत्नशील भऽ गेलाह। ओइनवार वंशक एकटा इन्द्रसेन (शालिहोत्रसारसंग्रहक लेखक)क नाम भेटइत अछि जकरा सम्बन्धमे हमरा लोकनिकेँ कोनो विशेष ज्ञान नहि अछि। १४३४–३५मे चम्पारणमे राजा पृथ्वीनारायण सिंह देवक राज्य छल (महाराज पृथ्वीनारायण सिंह देव भुज्यमान राज्ये चम्पकारण्यनगरे)। हिनक उत्तराधिकारी छलथिन्ह शक्तिसिंह आ तकर बाद हुनक पुत्र मदन सिंह। मदन सिंह, मदन–रत्न–प्रदीपक लेखक छलाह। इ सब राजा अपन सिक्का सेहो चलौने रहैथ जाहिपर लिखल अछि–“गोविन्द चरण प्रणत–श्री चम्पकारण्ये”। हिनक मुद्रा हिमालय तराइसँ दिल्ली धरि भेटइत अछि। मदन सिंहक राज्य गोरखपुर धरि छलन्हि। नरसिंह पुराणक पाण्डुलिपिक पुष्पिकामे एकर प्रमाण अछि–“….महाराजाधिराज श्रीमन्मदन सिंह देवानाम् विजयिनाम् शासति गोरक्षपुरे…..”। चम्पारणक लौरिया नंदनगढ़मे अशोकक स्तंभपर एकटा लेख अछि–“नृपनारायण सुत नृप अमरसिंह”। इ केँ छलाह आ कतुका राजा छलाह से कहब असंभव।
महाराज लक्ष्मीनाथ अपुत्र छलाह तैं हुनक बाद हुनक कायस्थ मंत्री केशव मजूमदार राजक भार सम्हारलन्हि आ उएह राजा भेला। ओइनवारक परंपराक निर्वाह करैत उहो जन–कल्याणक हेतु पोखरि खुनौलन्हि आ दानादिक नीक व्यवस्था केलन्हि। मजलिश खाँ नामक व्यक्ति सेहो एहि स्थितिसँ लाभ उठाए किछु दिन मिथिलापर शासन केलन्हि। केशव मजूमदार कुशल व्यक्ति छलाह आ ओइनवार शासनक सब बातसँ अवगत रहबाक कारणे ओ मिथिलाकेँ अपना शासन कालमे यथासाध्य स्वतंत्र रखलन्हि आ मैथिल परम्परा निर्वाह करैत जन कल्याणार्थ बहुत किछु केलन्हि। ओइनवार वंश आपसी कलह आ बटवारासँ खण्डित भऽ चुकल छल। राजकुलक सम्बन्धसँ ओइनवार मूलक ब्राह्मण लोकनि “कुमार”पदवी धारण करए लगलाह आ ‘कुमार’ पदवी धारी ओइनवार ब्राह्मण लोकनिक एक शाखा अहुखन मालदह जिलाक अराइदंगा गाममे छथिन्ह। ओइनवार वंशक अनेक शिलालेख आ किछु मुद्रा सेहो अछि जाहिपर हमरा सब इ कहि सकैत छी जे ओइनवार लोकनि कर्णाट वंश जकाँ मिथिलाक स्वतंत्रताक सुरक्षाक हेतु किछु उठा नहि रखलन्हि आ हुनका शासन काल मैथिलक प्रसार चारूकात भेल। एहि वंशक तत्वाधानमे साहित्य, कला, व्याकरण, स्मृति, निबंध, दर्शन, इत्यादिक विकास भेल। महाकवि विद्यापति देवसिंहक समयसँ भैरव सिंहक शासन काल धरि ओइनवार राजनीतिक एकटा प्रमुख स्तंभ छलाह। राजकाजमे एतवा व्यस्त रहितो ओ अपन लिखब–पढ़ब नहि छोड़लन्हि आ मातृभाषाकेँ सेहो नहि बिसरलाह। एहिवंशक समयमे गोनू झा सेहो भेल छलाह। एहिवंशक परोक्ष भेलापर मिथिलामे मुसलमानी प्रभावक वृद्धि भेल। (एहि प्रसंगमे हमर “हिस्ट्री ऑफ मुस्लिम रूल इन तिरहूत” देखल जा सकइयै आ देखु हमर निबन्ध–“द ओइनवारज ऑफ मिथिला”)

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